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तीर्थंकर
गज लौकिक गजेन्द्रों से भिन्न था। वह देव सामर्थ्य का सुमधुर प्रदर्शन
था ।
ऐरावत का स्वरूप चिन्तन करते ही बुद्धिजीवी मनुष्य में अद्भुत रस उत्पन्न हुए बिना न रहेगा । यदि वह सोचे कि स्थूल रूपधारी छोटे दर्पण में बड़े-बड़े पदार्थ प्रतिबिम्ब रूप से अपना सूक्ष्म परिणमन करके प्रतिबिम्बित होते हैं । छोटे से केमरा द्वारा बड़ी वस्तु का चित्र खींचा जाता है, तब इससे भी सूक्ष्म वैक्रियिक शरीरधारी देव रचित ऐरावत गज का सद्भाव पूर्णतया समीक्षक बुद्धि के अनुरूप है । सभ्यग्दृष्टि जीव की श्रद्धा पदार्थों की अचित्य शक्ति को ध्यान में रखकर ऐसी बातों को शिरोधार्य करने में संकोच का अनुभव नहीं करती है । सर्वज्ञ, वीतराग, हितोपदेशी भगवान के द्वारा कथित तत्व होने से ऐसी बातें सम्यक्त्वी सहज ही स्वीकार करता है । इन बातों को काल्पनिक समझने वाला आगम की विविध शाखाओं का मार्मिक ज्ञाता होते हुए भी सम्यक्त्वशून्य ही स्वीकार करना होगा, कारण सम्यक्त्वी जीव प्रवचन में कथित समस्त तत्वों को प्रामाणिक मानता है । एक भी बात को न मानने वाला आगम में मिथ्यात्वोदय के अधीन माना गया है तथा श्रद्धाशून्य कहा गया है । विवेकी सम्यक्त्वी जीव आगमोक्त आश्चर्यप्रद बातों के विरुद्ध श्रद्धा का भाव त्यागकर यह सोचता है
सूक्ष्मं जिनोदितं तत्वं हेतुभिर्नैव हन्यते ।
श्राज्ञासिद्धं च तद् प्राह्यं नान्यथावादिनो जिनः ।।
सर्वज्ञ जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित तत्व अत्यन्त सूक्ष्म है । उसका युक्तियों द्वारा खंडन नहीं हो सकता । उसे भगवान की आज्ञा रूप से प्रामाणिक मानकर ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि जिनेन्द्र अन्यथा प्रतिपादन नहीं करते हैं । रागद्वेष तथा अज्ञान के द्वारा मिथ्या कथन किया जाता है । जिनेन्द्रदेव सर्वज्ञ, वीतराग एवं हितोपदेशी हैं; अतः उनकी वाणी में मुमुक्षु भव्य संदेह नहीं करता है ।
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