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तीर्थकर से शोभायमान था। हरिवंशपुराणकार के शब्द इस प्रकार हैं--
सर्वतोभद्रसंज्ञोसौ प्रासादः सर्वतो मतः । सैकाशीति पदः शालवाप्युद्यानाद्यलंकृतः ॥सर्ग ८-४॥ शातकुंभमयस्तंभो विचित्रमणिभित्तिकः । पुष्पविद्रुम-मुक्तादिमालाभिरुपशोभितः ॥३॥
तीर्थंकर आदिनाथ भगवान जिस नगरी में जन्म लेने वाले हैं, तथा जहाँ सभी देव, देवेन्द्र निरन्तर आया करेंगे, उसकी श्रेष्ठ रचना में संदेह के लिये स्थान नहीं हो सकता । इसका कारण महापुराणकार इस प्रकार प्रगट करते हैं--
सुत्रामा सूत्रधारोऽस्याः शिल्पिनः कल्पजाः सुराः। वास्तुजातं मही कृत्स्ना सोद्धा नास्तु कथं पुरी॥१२--७५।।
उस जिनेन्द्रपुरी के निर्माण में इन्द्र महाराज सूत्रधार थे, कल्पवासी देव शिल्पी थे, तथा निर्माण के योग्य समस्त पृथ्वी पड़ी थी, वह नगरी प्रशंसनीय क्यों न होगी ? वह नगरी द्वादश योजन प्रमाण विस्तारयक्त थी।
जिनसेन स्वामी का कथन है--'उस अयोध्या नगरी में सब देवों ने हर्षित होकर शुभ दिन, शुभ मुहूर्त, शुभ योग तथा शुभ
१ इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है, कि वैज्ञानिक जैन संस्कृति में मुहर्त शोधन आदि ज्योतिष-शास्त्रोक्त बातों का सम्मानपूर्ण स्थान है। जैनागम के द्वादश अङ्गों में ज्योतिर्विद्या की भी परिगणना की गई है। जो व्यक्ति यह कह दिया करते हैं कि मुहर्त आदि विचार सब व्यर्थ की बाते है, इसमें कुछ सार नहीं है, वे जैन-दृष्टि से अपरिचित है। प्राचार्य वीरसेन ने धवला टीका में बताया है कि महाज्ञानी मुनीन्द्र धरसेनाचार्य ने भूतवलि पुष्पदंत मुनियुगल को जो महाकम्म पयडिपाहुड का उपदेश देना प्रारम्भ किया था, वह शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र, शुभवार में सम्पन्न किया गया, भा। धवला टीका (पृ.७०, भाग १) के ये शब्द ध्यान देने योग्य है
"धरसेण-भडारएण सोम-तिहि-णखत्त-वारे गंथो पारद्धो"
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