________________
गर्भ-कल्याणक
जिनेन्द्र भगवान के जननी के गर्भ में आने के छह माह पूर्व से ही इस वसुन्धरा में भावी तीर्थंकर के मङ्गलमय आगमन की महत्ता को सूचित करने वाले अनेक शुभ कार्य सम्पन्न होने लगते हैं
जन्मपुरी का सौन्दर्य
__ भगवान ऋषभदेव के माता मरुदेवी के गर्भ में आने के छह माह पूर्व ही इन्द्र की आज्ञानुसार देवों ने स्वर्गपुरी के समान अयोध्या नगरी की रचना की थी। उसे साकेता, विनीता तथा सुकोशलापुरी भी कहते हैं। उस नगरी की अपूर्व रमणीयता का कारण महाकवि जिनसेन स्वामी के शब्दों में यह था--
स्वर्गस्यैव प्रतिच्छंदं भूलोकेऽस्मिन् विधित्सुभिः। विशेषरमणीयैव निर्ममे सामरैः पुरी ॥१२--७१॥
देवों ने उस अयोध्या नगरी को विशेष मनोहर बनाया । इसका कारण यह प्रतीत होता है कि देवताओं की यह इच्छा थी, कि मध्यलोक में भी स्वर्ग की प्रतिकृति रही आवे ।
उस नगरी के मध्य में सुरेन्द्रभवन से स्पर्धा करने वाला महाराज नाभिराज के निवासार्थ नरेन्द्रभवन की रचना की गई थी। उसकी दीवालों में अनेक प्रकार के दीप्तिमान मणि लगे थे। वह सुवर्णमय स्तम्भों से समलंकृत था तथा पुष्प, मूंगा, मुक्तादि की मालाओं से शोभायमान था।
सर्वतोभद्र प्रासाद
हरिवंशपुराण में लिखा है कि उस राजभवन का नाम सर्वतोभद्र था। उसके इक्यासी मंजले थे। वह परकोटा, वाटिका उद्यानादि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org