Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री श्री सुमन मुनि
भी न्यूनतर हो रही हैं।” श्री सुमनमुनिजी की दीक्षा स्वर्ण- | प्रिय नहीं। संसार के सभी प्राणी चाहे वो त्रस (चलने जयंति के पुनीत अवसर पर मेरा श्रावक-श्राविकाओं से फिरनेवाले) या स्थावर (पृथ्वी, पानी, अग्नि, हवा, वनस्पति) यह अनुरोध है कि वे आस्था को सम्यक् एवं सुदृढ़ बनाएं | एक स्थान पर स्थिर होते हुए भी समस्त उनकी रक्षा एवम् योग्य व्यक्तियों/अपनी योग्य सन्तान को जिनशासन करना अपना दायित्व समझे। यही अहिंसा है। यह सिद्धांत के प्रति समर्पित करें। संकल्प और वास्तविक त्याग का प्राणिमात्र के प्रति मैत्री भाव की शिक्षा देता है। “अहिंसा जीवन जीने से ही कुछ कारगर एवं स्थायी होता है। । परमो धर्मः" अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। भगवान् ऋषभदेव आप अपने आयोजन एवम् उद्देश्य में सफल हों।
से लेकर अंतिम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर तक के ग्रंथ पाठक को निर्ग्रन्थ होने की प्रेरणा देनेवाला बने ।
चौबीस तीर्थंकर भगवंतों ने 'विश्व बंधुत्व की भावना' को इन्हीं सद्भावों के साथ !
विश्व व्यापी बनाने हेतु अहिंसा का मंगलमय मार्ग बताया 0 दिलीप धींग
है जिसको अपनाकर आज भी विश्व शांति की सांस ले
सकता है। बम्बोरा
__ आज का मानव अहिंसा के महत्त्व को भूला बैठा | उद्बोधन के माध्यम से...!
है। यही कारण है आज विश्व में हिंसा, झूठ, चोरी,
व्यभिचार, मासांहार, लूट-खसोट का तांडव नृत्य हो रहा श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री मुनिश्री सुमनकुमारजी
है। जनजीवन पूर्ण तथा अशांत एवं संत्रस्त है। राजनीतिज्ञों म.सा. के प्रवचनों से मैं अत्यंत अभिभूत हुआ हूँ-उनके
की कुटिल राजनीति से जनता असुरक्षित है। इन सबका प्रवचन जिनवाणी महिमा के गान से प्रारंभ होता है तथा
एक मात्र कारण हम धर्म एवं नीति के मार्ग से भटक गए अनेक विषयों को व्याख्यायित करते हुए लोगों के दिल में
हैं। धर्म को जीवन से जोड़ने पर ही शांति की राह मिल अहिंसा-मानवता आदि के भाव उत्पन्न करते हैं - यथा
सकती है।
भारतवर्ष धर्म प्रधान व कृषि प्रधान देश है। इसमें जिनवाणी सर्वोदय सिद्धान्त की प्रतिपादक है। जैन
महान् ऋषि-मुनियों एवं महात्माओं ने जन्म लिया है। यह संस्कृति के संस्थापक तीर्थंकर भगवंतों ने जगद् जीवों के
धर्मभूमि है, यहां विविध संस्कृतियाँ फली-फूली एवं मानव कल्याण के लिए धर्म-संघ की संरचना की है। साधु
को मानवता का संदेश देती रही हैं तथा दे रही हैं। साध्वी श्रावक-श्राविका को चतुर्विध संघ का आधार स्तंभ
भारतीय संस्कृति में जैन संस्कृति का सर्वोपरि स्थान रहा है बताया। प्राणिजगत् में मानव को सर्वोपरि स्थान दिया
जैन संस्कृति के संस्थापक सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी परिपूर्ण क्योंकि मानव मननशील विवेकशील एवं सर्वप्रज्ञा संपन्न
पुरुष रहे हैं जिन्हें अरिहंत एवं तीर्थंकर कहा गया है। है। मानव का दायित्व है कि वह प्राणिमात्र की रक्षा करे।
इन्होंने जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया वे सर्वकालिक, जीवन जीने के रूप में मानव को यह उद्बोधन दिया कि
सर्वदेशिक, सर्वहिताय एवं सर्वसुखाय है। उन्होंने अहिंसा "तुम स्वयं सुखपूर्वक रहते हुए प्राणिमात्र के सुखपूर्वक
संयम व तप को उत्कृष्ट धर्म बताया। “अहिंसा का अर्थ जीने में सहयोगी बनो। यही मानवता का मार्ग है।"
समस्त प्राणियों की रक्षा एवं उनके साथ मैत्री भाव की संसार के सब जीव जीना चाहते हैं, मरना किसी को | शिक्षा देता है। संयम का अर्थ अपने आप पर अपना
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