Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
फेरी का आयोजन प्रातःकाल में हुआ। सामूहिक व्याख्यान आने लगी। एक दिन वह भी आ ही गया आप श्री ने बैंगलोर सिटी में आयोजित किया गया। समारोह के अपार जनमेदिनी के साथ मंगलमयी पावन बेला में चातुर्मासार्थ मुख्य अतिथि थे बैंगलोर के महापौर श्री के.सी. विजय के.जी.एफ. में प्रवेश किया। कुमार। जिन्होंने कन्नड़ भाषा में अपना शोधपूर्ण भाषण
दैनिक नित्यकर्म धर्म ध्यान में अभिवृद्धि करने लगे। दिया। प्रो. प्रताप कुमार टोलिया श्री ज्ञानराज जी मेहता
प्रातः कालीन प्रार्थना में भक्ति स्वर, व्याख्यान में वीतराग आदि वक्ताओं ने भी सभा को सम्बोधित किया।
वाणी के स्वर श्रद्धेय श्री के मुखारविन्द से निसृत हो अध्यापक श्री शान्तिलाल जी गोलेच्छा के नेतृत्व में । गुञ्जित होने लगे। जिज्ञासुओं की तत्त्वज्ञान की पिपासा सुन्दर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। 'तत्व-चर्चा' के माध्यम से आप श्री मिटाने लगे एवं धर्म
पं. रत्न श्री सुमन मुनि जी म. ने भ. महावीर स्वामी क्रिया के माध्यम से धर्म प्रेमियों में जागरणा आने लगी। के जीवन एवं तत्त्व दर्शन पर ओजस्वी एवं प्रेरक प्रवचन वर्षावास में आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी दिया। साथ ही साथ समाजोत्थान की भी अपील की। म.सा. की जन्म जयन्ति एवं श्रमण सूर्य प्रवर्तक मरुधर
दिनांक २५ मार्च २६ को श्रद्धेय आचार्य प्रवर श्री केसरी श्री मिश्रीमल जी म.सा. की जन्म जयन्ति तप त्याग श्री नानालाल जी म.सा. की शिष्या मरुधरा सिंहनी श्री के साथ मनाई तथा उनके महान् जीवन दर्शन का दिग्दर्शन नानुकुंवर जी म.सा. आदि ठाणा ३७ की पावन सन्निधि में कराते हुए गुणकीर्तन किया। अनेक वक्ताओं ने भी विरक्तात्मा श्रीमती इन्दु बाईं की भागवती दीक्षा सानन्द महापुरुषों की जीवन गाथा का गुणगान करके श्रद्धा भाव सम्पन्न हुई-गणेश बाग में। इस शुभ प्रसंग पर श्रद्धेय मुनि आपत किए। श्री ने भी विरक्तात्मा के प्रति आशीर्वचन प्रदान किया तीर्थ वन्दना, प्रवर्त्तना, रथयात्रा जो कि भगवान
और मुमुक्षु आत्मा के संयमी जीवन के प्रति मंगलकामनाएँ महावीर के सिद्धान्तों का समूचे भारत में प्रचार प्रसार प्रकट की। मुनिश्री को दीक्षा पर आमंत्रित करना (साधुमार्गी करती हुई दिनांक ३१-८-६१ मध्याह्न ३ बजे के.जी.एफ. संघ एवं स्वयं साध्वी श्री जी द्वारा यह सामुदायिक सद्भावना में पहुंची थी। जैन स्थानक में सार्वजनिक सभा सम्पन्न का प्रतीक) और मुनि श्री जी के व्यक्तित्व का भी हुई। पंडित रत्न श्री सुमनमुनि जी म. ने भी अपने परिचायक था।
आशीर्वचनों से सभी को कृतार्थ किया। के.जी.एफ. चातुर्मास स्वीकृत
पर्युषण पर्व तदनंतर अन्य स्थानों में धर्मोपदेश करते हुए मुनि श्री पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की आराधना भी तप जी की विहार यात्रा आरंभ हुई। सन १६६१ का वर्षावास जप के साथ सोत्साह सम्पन्न हुई। परम श्रद्धेय मंत्री मुनि परम श्रद्धेय श्री ने के.जी.एफ. के लिए स्वीकृत किया श्री जी ने इन आठ दिवसों में अन्तगड दशासूत्र के आधार के.जी.एफ. का संघ स्वीकृति पाकर गद्-गद् हो गया। पर निम्न विषयक प्रवचन प्रदान किया - चातुर्मास की भव्य तैयारियाँ संघ ने प्रारंभ की।
१. पर्युषण पर्वाराधना (प्रथम वर्ग) २. आसक्तिपरम श्रद्धेय सलाहकार मंत्री जी म. का विहार भी विरक्ति (द्वितीय पक्ष) ३. संयोग वियोग-सहिष्णुता (तृतीय चातुर्मास, स्थल की ओर हुआ। शनैः शनैः मंजिल निकट वर्ग) ४. अमरता का रहस्य (चतुर्थ वर्ग) नारी भी भारी
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