Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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जैन संस्कृति का आलोक
परिशीलन के गूढ़तम रहस्य को अनुभव करना स्वाध्याय तप ध्यान है। ऐसे धर्म का जो पालन करता है उसे देवता
भी नमस्कार करते हैं। ध्यान क्यों करें ?
अतः धार्मिक, सामाजिक एवं दैनिक जीवन के हर
कार्य में ध्यान आवश्यक है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने कहा ‘मन वायु की गति के समान चंचल है, उसे बाँधना, उसे वश में करना बड़ा ध्यान कैसे करे ? कठिन है।'
केवल आँखें बंद करने से ही ध्यान नहीं होता। यह उत्तराध्ययन सत्र में भगवान महावीर ने कहा “मन तो प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में जब आप पक जाते हैं, तो दष्ट घोडे के समान है, उसे साधना कठिन है।" जितनी आप २४ घण्टे समाधि अवस्था में, ध्यान अवस्था में रह भी धर्म की साधनाएँ हैं, वे मन के द्वारा होती हैं। आज सकते हैं। हमारी भाव सामायिक लुप्त हो गई है। हमारा भाव प्रतिक्रमण/
जैसे प्रारंभ में कार चलाना सीखनेवाले को बहुत कायोत्सर्ग की साधना नहीं रही। आज आम शिकायत
ध्यान रखना पड़ता है, ब्रेक्स कहाँ है? गाड़ी को कैसे यह है कि सामायिक में मन नहीं लगता। माला में मन नहीं
चलाना है? परंतु जब वह उस काम में निपुण हो जाता लगता। धर्म-क्रियाओं में मन नहीं लगता। मन हमेशा बिखरा-बिखरा रहता है। दुकान में हैं तो आधा मन घर
है, तब उसके लिए गाड़ी चलाना सहज हो जाता है। में रहता है, टी.वी. देख रहे हैं तो आधा मन दूसरे कामों इसी प्रकार प्रारंभ में आपको मौन रखते हुए, एक में लगा रहता है। बच्चे पढ़ रहे हैं तो उनका आधा मन स्थान पर स्थिर बैठकर, आहार की शुद्धि करते हुए ध्यान खेल में लगा रहता है। जो भी कार्य हम कर रहे हैं, उसे करवाना पड़ता है। लेकिन वास्तव में ध्यान तो सहज एकाग्रतापूर्वक कैसे करे? जीवन के हर क्षण में समता, होता है, कराना नहीं पड़ता है। हमारी आत्मा का स्वभाव शांति, सुख, चैन से कैसे रहें....? इसके लिए है - ध्यान। है - ध्यान, यह सामायिक ध्यान ही है। सामायिक समता
__ हमारी भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों ने वर्षों तक __ है। समता आत्मा का निज गुण है। इसको बाहर से लाया साधना करके मन को साधा। हिन्दू संन्यासी, बौद्ध भिक्षु, नहीं जा सकता। वह तो भीतर से प्रकट होता है। जैसे जैन साधु, भगवान् महावीर या गौतम बुद्ध, सभी ने ध्यान नींद को लाना नहीं पड़ता, भोजन को पचाना नहीं पड़ता, के माध्यम से अपने मन को साधा।
नींद आती है, भोजन पचता है। केवल हमें वातावरण धम्मो मंगल मुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो।
बनाना पड़ता है। वैसे ही हम ध्यान के लिए वातावरण देवा वि तं नमस्संति जस्स धम्मे सया मणो।।
बनाते है। (दशवकालिक सूत्र)
ध्यान की पूरी विधि... ठाणेणं, मोणेणं, झाणेणं, धर्म मंगल है, उत्कृष्ट है। कौन-सा धर्म? अहिंसा - अप्पाणं वोसिरामि से आती है। ठाणेणं अर्थात् शरीर से अर्थात् प्राणीमात्र के प्रति प्रेम-मैत्री, संयम यानी मन एवं स्थिर होकर, मोणेणं अर्थात् वाणी से मौन होकर, झाणेणं इंद्रियों को साधना। तप से तात्पर्य है अंतर तप.... यही अर्थात् मन को ध्यान में नियोजित कर, अप्पाणं वोसिरामि
आत्मसाक्षात्कार की कला - ध्यान
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