Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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जैन संस्कृति का आलोक
समान आश्रय प्रदान कर पार कर देता है, वह भी बिना कुछ लिये - इस भाव को कवि ने अपनी सरल सुबोध भाषा में अभिव्यंजित किया है, देखिये -
जहाज समान ते संत मुनिश्वर, भव्य जीव बेसे आय रे प्राणी। पर उपकारी मुनि दाम न मांगे देवे मुक्ति पहुंचाय रे प्राणी।। साधुजी ने वंदना नित-नित कीजे....।।' साधु मात्र उपदेशक ही नहीं होता वरन् ज्ञानी संयमी, तपस्वी एवं सेवाभावी भी होता है। किसी संत में किसी गुण की प्रधानता है, तो किसी में किसी अन्य गुण की।
एक-एक मुनिवर रसना त्यागी एक-एक ज्ञान-भंडार रे प्राणी एक-एक मुनिवर वैयावच्चिया-वैरागी जेहनां गुणां नो नावे पार रे प्राणी साधुजी ने वंदना नित-नित कीजे....।।२
इस प्रकार संत जीवन पर श्रद्धा और पूज्यभाव प्रगट कराने वाले ये १० पद आचार्य जी ने 'बूसी' गाँव (राजस्थान) के चातुर्मास में बनाये हैं और स्वयं को "उत्तम साधु का दास" कहकर गौरवान्वित किया हैं। ३
कवि श्री हरजसरायजी की साधु गुणमाला
संवत् १८६४ में पंजाब के महाकवि श्री हरजसराय जी ने साधु गुणमाला १२५ पद्यों में रची। इस रचना में मुनि के गुणों का उत्कृष्ट काव्य शैली में वर्णन किया गया है।
साधु के अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह प्रधान जीवन शैली तथा पंचेन्द्रिय संयम, क्रोध, अहंकार कपट और लोभ रूपी महाभयंकर विषधर से मुक्त मुनि
धर्म को जिस अलंकारिक ढंग से वर्णन किया है, उसे पढ़कर कवि के अगाध ज्ञान, संतों के प्रति अपूर्व निष्ठा एवं आदरभाव का भी सहज ही परिचय प्राप्त हो जाता है। काना, मात्रा से रहित एक पद्य दर्शनीय है -
कनक रजत धन रतन जड़त गण सकल लषण रज समझत जनवर हय गय रथ भट बल गण सहचर सकल तजत गढ़ वरणन मयधर। वन-वन बसन रमण सत गत मग भव भय हरन चरण अघ रज हर उरग अमर नर करन हरष जस जय-जय भण भव जनवर यशकर।।१२१।।
आपकी कृतियों के परिशीलन से यह पता चलता है कि आप एक अद्वितीय साहित्य स्रष्टा तथा विलक्षण प्रतिभा संपन्न पुरुष थे। साधु गुणमाला का एक दोहा देखिये जिसमें प्रत्येक शब्द का आदि अक्षर क्रमशः १२ स्वरों से प्रारंभ होता है।
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दि | स
श की | त्तम | चो | क
ओ | ढक
औ र नहीं
अं अः त न | जग टेक।।
अलख आदि इस ईश की, उत्तम ऊँचो एक। ऐसे ओढ़क और नहीं, अंत न अः जग टेक।। एक दोहे में अनुप्रास की छटा दर्शनीय है - मुनि मुनिपति वरणन करण शिव शिवमग शिव करण
१. छोटी साधु वंदना, पद ६
२. छोटी साधु वंदना, पद ४
३. छोटी साधु वंदना, पद १०
| प्राचीन जैन हिंदी साहित्य में संत स्तुति
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