Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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जैन संस्कृति का आलोक
शारीरिक, सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक प्रदूषणों से बचा जा सकता है। लेख के विस्तार के भय से इन पर यहाँ विवेचन नहीं किया जा रहा है।
आयंविल से मिट जाते हैं। रूस में तो सभी रोगों के लिये उपवास चिकित्सा संचालित ही है। पूज्य श्री घासीलालजी म.सा. ने हजारों रोगियों का रोग आयंबिल तप से ही दूर किया था। आयंबिल में एक ही प्रकार का विगय रहित भोजन किया जाता है जिससे जितनी भूख है उससे अधिक भोजन से बचा जा सकता है। एक ही रस के भोजन में आमाशय को अनजाईम बनाने में - जिनसे भोजन पचता है कठिनाई नहीं होती है, इसीलिये आस्ट्रेलिया निवासी प्रायः एक समय में एक ही रस का भोजन करते हैं यदि मीठे स्वाद की वस्तुएँ खाते हैं तो उनके साथ खट्टे नमकीन आदि स्वाद की वस्तुएँ नहीं खाते हैं। शारीरिक रोगरूप प्रदूषण को दूर करने की दृष्टि से तप का बड़ा महत्व है।
इसी प्रकार रात्रि भोजन त्याग, मांसाहार त्याग, मद्य त्याग, शिकार त्याग आदि जैन धर्म के सिद्धान्तों से
उपसंहार
प्राणी के जीवन के विकास का संबंध प्राण शक्ति के विकास से है न कि वस्तुओं के उत्पादन से तथा भोगपरिभोग सामग्री की वृद्धि से। आध्यात्मिक, शारीरिक, मानसिक, भौतिक, पारिवारिक, सामाजिक जगत् में पर्यावरणों में शक्ति का ह्रास या विनाश प्राप्त वस्तुओं के दुरुपयोग से, भोग से होता है क्योंकि भोग से ही समस्त दोष पनपते हैं जो प्रदूषण पैदा करते हैं और भोग के त्याग से, संयम मय मर्यादित जीवन से उपर्युक्त सभी क्षेत्रों में विकास या पोषण होता है। पर्यावरण प्रदूषण से बचे तथा पर्यावरण का समुचित पोषण हो, यही जैन धर्म के तत्त्वज्ञान का निरूपण है। इसी में मानव जीवन की सार्थकता व सफलता है।
0 श्री कन्हैयालाल लोढ़ा सुविख्यात विद्वान्, लेखक एवं जैन दर्शन के गम्भीर व्याख्याता हैं। आप एक ध्यान साधक हैं तथा श्री जैन सिद्धांत शिक्षण संस्थान, जयपुर के अधिष्ठाता हैं। आपका जन्म वि.सं. १६६६ में धनोप (भीलवाड़ा) में हुआ। जैन दर्शन के विभिन्न आयामों पर आपने शताधिक चिंतनपूर्ण निबंध प्रस्तुत किये हैं। विज्ञान और मनोविज्ञान से सम्बन्धित आपकी पुस्तक “जैन धर्म दर्शन" पुरस्कृत हुई है। -सम्पादक
वेष-व्यवस्था / संयम-यात्रा के निर्वाह और ज्ञान आदि साधना के लिए तथा लोक में साधक और संसारी के भेद को स्पष्ट करने के लिए है। यह व्यावहारिक साधन है। निश्चय में / तत्त्व दृष्टि से साधनज्ञान-दर्शन-चरित्र ही हैं।
- सुमन वचनामृत
| जैनागम : पर्यावरण संरक्षण
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