Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
माह स्थिरता रही। मध्याह्न में तीन बजे तपाचार्य श्री जी का मनोमालिन्य धुल गया। अपूर्ण स्थानक भवन को म. का मंगलपाठ होता था। श्रोताओं की भीड़ अत्यधिक शीघ्र ही पूरा करने का संकल्प सभी भाइयों ने लिया। होती थी। साध्वी श्री धर्मशीला जी म. ठाणा ५, साध्वी होसर से आप कृष्णगिरि, वगरूर, वानियमबाड़ी श्री शांताकंवर जी म. ठाणा ६, साध्वी श्री कौशल्याकंवर
___ होते हुए तिरपातुर पधारे। यहां कुछ दिन विराजने के जी म. ठाणा ५, एवं प्रवर्तक श्री रमेश मुनि जी म. ठाणा
पश्चात् आप पुनः वानियमबाड़ी पधारे। वहां से आम्बूर ६ का यहां पदार्पण हुआ। धर्म मेला लगने लगा।
आदि क्षेत्रों को स्पर्शते हुए गुडयातम पधारे जहाँ श्री महावीर जयंति समारोह
सुरेश मुनि जी म. शास्त्री ठाणे ३ से मधुर सम्मिलन शिवाजी नगर स्टेडियम में जैन युवक संगठन की हुआ। ओर से महावीर जयंति का सामूहिक आयोजन हुआ। गुडयातम से प्रस्थान करके आप केवीकुप्पम, आचार्य श्री स्थूल भद्र सूरीश्वर जी भी अपनी शिष्य- विरंजीपुरम्, बैलूर, रत्नगिरि, आरकाट, वालाजा, शिष्या सम्पदा के साथ इस आयोजन में पधारे । विशाल वालचेट्टीछत्रम्, कांजीवरम्, राजकुलम, तथा सुंगाछत्रम् जन समूह के मध्य महावीर-जन्म-कल्याणक दिवस मनाया आदि छोटे-छोटे क्षेत्रों में धर्मोद्योत करते हुए राजीव गांधी गया।
की शहीद-स्थली श्री पैरम्बदुर में पधारे। वहाँ से तण्डलम्
भवन होते हुए आपने तमिलनाडु की राजधानी मद्रास में के पारणे भी गणेश बाग शिवाजीनगर
प्रवेश किया। पुनमल्ली, पोरूर, आलन्दूर होते हुए टी.नगर बैंगलोर में ही सम्पन्न हुए।
माम्बलम् में पधारे। तपाचार्य श्री सहज मुनि जी म. का पारणा २ मई १६६८ को सानन्द सम्पन्न हुआ।
विदेह साधक परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री सुमन कुमार जी म. का
टी. नगर में आप अस्वस्थ हो गए। ज्वर ने देह पर मद्रास चातुर्मास हेतु विहार ६ मई १६६८ को हुआ।
अधिकार जमा लिया। शायद यह प्रलम्ब विहार की
परिणति रही हो। देह सुविधा चाहती है। विश्रान्ति उसे ...फटे मन सी दिए
प्रियकारी होती है। पर श्रेय का साधक मुनि देह की चाह बैंगलोर से विहार कर हेबोगुड़ी, होसुर पधारे। होसुर
से परिमुक्त होता है। वह देह का उपयोग एक साधन की में श्री राजेन्द्र बोरा के घर ठहरे। वहां के जैन बन्धुओं में
तरह करता है । वह देह को साध्य नहीं मानता है। ऐसे
में देह यदा-कदा बगावत कर देती है। उसी बगावत का स्थानक की भूमि को लेकर परस्पर भ्रांति बनी ही थी। मन फटे हुए थे। आपने सभी सामाजिक सदस्यों को
___ फल था यह ज्वर। एकत्रित किया और बड़ी कुशलता से उनके फटे हुए मनों ज्वर देह तक रहे तो पीड़ा नहीं देता है। जब वह को सी दिया अर्थात् भूखण्ड की अधिकृत पत्रावली दिखाकर मस्तिष्क में प्रवेश पा जाता है तो व्यक्ति को अस्थिर बना फैली हुई भ्रान्ति को मिटा दिया। आपके उपदेश से सभी देता है। चरितनायक पूज्य गुरुदेव ने ज्वर को अनुभव
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