Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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जैन संस्कृति का आलोक
दी गई थी। उन लोगों ने निरपराध श्रमण (जैन) साधुओं को सूली पर चढ़ा कर मार दिया था। इस प्रसंग को पुराण में भी लिख रखा है और दक्षिण में मथुरा में आज तक उसका उत्सव भी मीनाक्षी मंदिर में मनाते हैं। देखिए कैसी मानसिकता है ?
समझने की वात यह है कि खास कर जैन साधुओं को खत्म करने का कारण यह था कि उन साधुओं के कारण से ही श्रमण (जैन ) धर्म का प्रचार होता था। अतः उन साधुओं को खत्म कर दें तो अपने आप जैन धर्म खत्म हो जाएगा। इसी कारण से श्रमण साधुओं को खत्म कर दिया गया था। तथा जैन धर्म के अनुयायिओं को मारपीट कर भगा दिया गया था। उनकी जमीन जायदाद छीन ली गई, महिलाओं का शीलभंग किया गया। इस तरह जैन लोगों पर भयंकर अत्याचार किया गया था। जैसे पाकिस्तान में हिंदुओं पर हुआ था। इसका आधार उन्हीं लोगों के शैवपेरिय पुराणं तेवारं आदि है। खैर हुआ सो हुआ। हमें तो मत द्वेष कितना भयंकर है, इस पर ध्यान देना है। यह सारी बातें सातवीं सदी एवं आगे पीछे की है।
जैन धर्म पर क्रमशः आपत्ति पर आपत्ति आती रहीं। दूसरा उपद्रव यह था करीब तीन सौ साल के पहले जिंजी प्रदेश को वेंकटप्प (कृष्णप्प) नायक नाम का छोटा राजा राज्य करता था, वह विजयनगर साम्राज्य के अधीन था। उससे भी धर्म की बड़ी हानि हुई थी? ___ इस तरह जैनों और जैन साधुओं पर कई आपत्तियाँ आई । जैन साधु लोग कीड़े-मकोड़े से लेकर मनुष्य तक के किसी भी जीव को किसी तरह का दुख या कष्ट देने वाले नहीं थे, “जिओ और जीने दो" - इस सिद्धांत (महामंत्र) को पालने वाले थे। ऐसे संतों पर भी अत्याचार एवं अनाचार होता है, हुआ था। इसका ही नहीं, निर्दयता के साथ हजारों साधुओं को कत्ल किया गया था। खास कर साधुओं के प्रति विद्रोह करते थे। अफसोस! कैसा भयंकर मत द्वेष रहा। काश! हर धर्मवाले आनंद के साथ अपने-अपने धर्म का आचरण कर सकते ! न जाने अन्य धर्म के विनाश में क्यों खशी मनाते थे? यही बात समझ में नहीं आती है। खैर, क्या करे ? मनुष्य का स्वभाव है। उसे मिटाया नहीं जा सकता। सब धर्मों में ऐसा होता है। जो हुआ सो हुआ अब कहना-करना क्या है ? कुछ . नहीं केवल पछताना है। इसके सिवाय और कुछ नहीं।
1 श्री मल्लिनाथ जी जैन 'शास्त्री' तमिल, संस्कृत, हिन्दी, प्राकृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान् हैं। आपने शास्त्री, न्यायतीर्थ, प्रवीण प्रचारक की परीक्षाएं उत्तीर्ण की। त्यागराय कॉलेज-मद्रास में ३० साल तक हिन्दी के प्राध्यापक रहे। तमिल में २५ ग्रन्थों के प्रकाशक तथा प्रसिद्ध जैन ग्रंथों के समीक्षक। हिन्दी भाषा में भी आपके पाँच ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं। संप्रति : लेखन -संपादन एवं अनुवादक, 'जैन गजट' के सह संपादक, मद्रास सम्यग्दर्शन जैन संघ तथा कर्नाटक जैन विद्वद् संघ के अध्यक्ष।
-सम्पादक
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१ समणमुत्तं तमिलु पेज -८१ २ समणसुत्तं तमिलु पेज -८३
| तमिलनाडु में जैन धर्म
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