Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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जैन संस्कृति का आलोक
। भगवान् महावीर ने इन सभी समानताओं के साथ- साथ नारी समानता अर्थात् नारी के अधिकारों के प्रति भी आवाज उठाई। महावीर के समय में मानव समाज में नारी को पुरुष से हीन समझा जाता था, उसे सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक सभी स्तरों पर पुरुष के अधीन समझा जाता था। उन्होंने उपेक्षित नारी चन्दनबाला को दीक्षा देकर नारी जाति के गौरव को फलीभूत किया। समता : दुराग्रह से परे
महावीर ने मानवीय एकता की व्याख्या की उसमें साम्प्रदायिक दुराग्रह को कोई स्थान नहीं दिया। उनके अनुसार कौन व्यक्ति, किस सम्प्रदाय में दीक्षित है? यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि उसका आचार-विचार कितना पवित्र है? सम्प्रदाय तो सीमित और संकुचित होता है जबकि समता का सन्देश सबके लिए होता है। इसमें सभी का विकास एवं कल्याण सुनिश्चित है। जहाँ समता होगी, वहाँ शान्ति-सुख और प्रेम का साम्राज्य होगा। समता : सद्भाव की जननी
आज भारतीय समाज जो विश्व के श्रेष्ठतम मूल्यों वाला माना जाता है। वह अपनी मान्यताओं, मर्यादाओं की पूंजी को खोता जा रहा है, जिससे राष्ट्रीयता, कर्तव्य. प्रेम, समर्पण का ढांचा ही गिर रहा है और समाप्रदायिकता की आग दिनों दिन भयंकर रूप लेती जा रही है। आज
इस विषम स्थिति में भगवान् महावीर का समता सिद्धान्त सबसे अधिक आवश्यक हो गया है। समता, समन्वय, समर्पण, सहयोग, सहिष्णुता, सह अस्तित्व से ही साम्प्रदायिकता पर विजय पाई जा सकती है और सामाजिक समरसता की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
इसीलिए महावीर ने इस समता के सिद्धान्त को साम्प्रदायिक सद्भाव अर्थात् मानव समाज के साथ ही, मनुष्य के अनन्य सहयोगी पशु-पक्षियों के लिए भी बताया। उनके समोसरण में सभी को समान रूप से शरण प्राप्त थी। श्रावक, श्राविकाएं, विद्वानों, साधुओं, साध्वियों के साथसाथ पशु-पक्षियों को भी समोसरण में समान स्थान प्राप्त था। महावीर ने सभी प्राणियों की आत्मा को समान कहा है। सभी आत्माएं, परम-पद की ओर अग्रसर हो सकती हैं, कोई छोटा-बड़ा नहीं है।
इस तरह उन्होंने सामाजिक समरसता रूप प्रकाशस्तंभ से विश्व को रोशनी प्रदान करते हुए विश्वबंधुत्व की भावना का प्रसार किया। उन्होंने कहा कि इस समरसता रूप सामाजिक समता द्वारा ही मानव के मन से राग-द्वेष अहंकार, हठाग्रह, जैसी दुष्प्रवृत्तियों का अंत होगा और ., मैत्री, प्रेम, करूणा, सहयोग, सह अस्तित्व, समर्पण, समन्वय, सर्वधर्म समभाव जैसे गुणों का विकास होगा और फिर निश्चित ही सम्पूर्ण विश्व में सुख-शान्ति का प्रसार हो सकगा।..
- वाराणसी
0 श्रीमती डॉ. मुन्नी पुष्पा जैन मूलतः दमोह (म.प्र.) निवासी है। विवाहोपरान्त एम.ए., आचार्य, जैनदर्शनाचार्य, बी.लिट्.बी.एड., नेट में सफलताएं अर्जित करके “हिन्दी गय के विकास में जैन मनीषी पण्डित सदासुखदास का योगदान" विषय पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपके 'शोध प्रबंध' को कुन्दकुन्द शिक्षण संस्थान, बंबई ने १६६६ में रजत पदक से पुरस्कृत किया।
जैन धर्म दर्शन एवं साहित्य की मर्मज्ञा डॉ. जैन ने अनेक शोधपरक निबंध एवं एक दर्जन से भी अधिक ग्रन्थों का प्रणयन एवं सम्पादन किया है। कतिपय ग्रंथ पुरस्कृत भी हुए हैं। अनेकों संगोष्ठियों में शोधपत्रों का वाचन भी किया है। आप एक विदुषी नारी रत्न है। जैन समाज इस प्रतिभा से गौरवान्वित है।
- सम्पादक
सामाजिक समरसता के प्रणेता तीर्थंकर महावीर ।
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