Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
एवं प्रचारित यह सर्वोदय तीर्थ मानव मात्र का उन्नायक लालन-पालन ऋषभ ने किया और असि, मसि, कृषि के एवं कल्याण कर्ता है।"
साथ प्राणि विज्ञान दिया। उनसे वैदिक संस्कृति ने जन्म डॉ. रवीन्द्र कुमार जैन के अनुसार – "ऋग्वेद में ।
नहीं तो स्वरूप अवश्य प्राप्त किया। श्रमण संस्कृति के तो वातरशना मुनियों और केशी से सम्बन्धित कथाएँ भी
वे आदि पुरुष ही है। कर्म और ज्ञान योग के सफल जैनधर्म की प्रागैतिहासिक प्राचीनता का पुष्कल प्रमाण
व्याख्याकार और जैन तीर्थंकर होना ही उनकी इतिमत्ता प्रस्तुत करती है। ऋषभदेव और केशी का साथ-साथ
नहीं है, अपितु उनकी महत्ता तो आदि धर्म के मूलाधार उल्लेख भी इसी प्राचीनता का द्योतक है। वैदिक साहित्य
समूची आर्य जाति के उपास्य तथा समूचे विश्व के प्राचीनतम में मुनियों के साथ यतियों और व्रात्यों का वर्णन पर्याप्त
व्यवस्थाकार होने में है।" मात्रा में प्राप्त होता है। ये तीनों मूलतः श्रमण परम्परा के आचार्य सुशील मुनि जी ने अपनी पुस्तक 'इतिहास ही हैं। इनके आचरण और स्वभाव में तथा वैदिक के अनावृत पृष्ठ' में जैन धर्म की ऐतिहासिक खोज विषयक ऋषियों के सामान्य स्वभाव और आचरण में जो व्यापक शोध सामग्री प्रस्तुत की है। जिसमें अनाग्रहभाव से अतीत अन्तर है, वह सहज ही स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। आहार, को देखा और खोजा है। इस पुस्तक से पाठकों को एक तप और यज्ञादि की हिंसात्मक या शिथिल प्रवृत्ति में तलस्पर्शी दृष्टि निश्चित रूप से प्राप्त होगी। देखिए पुस्तक श्रमण साधु विश्वास नहीं रखते थे। वे स्वभावतः अधिक का एक अंश- 'प्रश्न उठ सकता है कि विश्व के विराट शांत और संयमी थे।
प्रांगण में वैचारिक क्रांति के जन्मदाता और मानवीय ___डॉ. ज्योति प्रसाद जैन के अनुसार - “जैन परम्परा
मर्यादाओं के व्यवस्थापक कौन है ? यद्यपि प्राचीनता का के मूल स्रोत प्रागैतिहासिक पाषाण एवं धातु पाषाण
व्यामोह रखना विशेष अर्थ नहीं रखता क्योंकि श्रेष्ठता युगीन आदिम मानव सभ्यताओं की जीववाद (एनिमिज्म)
और उच्चता प्राचीनता से नहीं आ सकती तो भी ऐतिहासिक प्रभृति मान्यताओं में खोजे गए हैं। सिंधु उपत्यका में जिस ।
दृष्टि से होने वाली खोज का महत्व है। मेरा मानना है कि धातु/लोह युगीन प्रागऐतिहासिक नागरिक सभ्यता के अवशेष
वेद किसी एक परम्परा की निधि नहीं है और न ही वेदों प्राप्त हुए हैं उसके अध्ययन से एक संभावित निष्कर्ष यह में कोई एक ही विचार-व्यवस्था है। कहीं यज्ञ समर्थक निकाला गया है कि उस काल और क्षेत्र में वषभ लांछन मंत्र है, कहीं यज्ञ-विरोधी। एकदेव, बहुदेव और बहुदेवों दिगम्बर योगीराज ऋषभ की पूजा-उपासना प्रचलित थी। में एकत्व की प्रतीति कराने वाली तात्त्विक पृष्ठभूमि वेदउक्त सिंधु सभ्यता को प्राग्वैदिक एवं आर्य ही नहीं, विहित होने से ही उनमें यम, मातरिश्वा, वरुण, वैश्वानर, प्रागार्य भी मान्य किया जाता है, और इसी कारण सुविधा रुद्र, इन्द्र आदि नाना देवों का स्थान है। के लिए बहुधा द्राविडीय संस्कृति की संज्ञा दी जाती है।" वेदों से ब्राह्मण धर्म का बोध कराना, वेदों के ___ 'विश्वधर्म' पुस्तक में आचार्य सुशीलमुनि जी ने जैन विविधमुखी दृष्टिकोणों एवं आर्य-अनार्य ऋषियों के विभिन्न धर्म का परिचय देते हुए लिखा है – “आदि युग जितना विचारों का अपमान करना है। क्योंकि वेद भारत की प्राचीन है, उतना ही अज्ञात भी है। सभ्यता के स्वर्ण समस्त विभूतियों, संतों, ऋषियों मुनियों, मनीषियों की विहान का शुभ अरुणोदय यदि आदि दिवस मान लिया पुनीत वाणी का संग्रह है। यही कारण है कि श्रमणों ने जाय तो उसी दिन जैनत्व अस्तित्व में आया। उसका अन्य ग्रंथों का निर्माण नहीं किया। सबके विचारों का
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विश्व का प्राचीनतम धर्म
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