Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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जैन संस्कृति का आलोक
सहिष्णुता तितिक्षा का लक्षण है "तितिक्षा.... शीतोष्णादि द्वन्द्व सहिष्णुता यह भी कहा गया है – सहनं । सर्वदुःखानां...तितिक्षा निगयते। क्षमावान् अभय रहता है। योगी याज्ञवल्क्य कहते हैं - क्षमा धृति मिताहार ...क्षमा सेवेति । गीता में (१२ - १३ में) श्री कृष्ण कहते हैं -
अद्वेष्टा सर्व भूतानां मैत्रः करुण एव च । निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी।। ऐसा मनुष्य ही “स मे प्रियः”।
हिंदुओं में पितृतर्पण के उपलक्ष्य में पूर्व जन्म के शत्रुओं को भी जलदान देना क्षमा - साधना की पराकाष्ठा । है “ये बान्धवाऽबान्धवा ते तृप्ति मखिलां यान्तु"। (द्रष्टव्य विष्णु पुराण - ४-१०-२५७)।
यदा न कुरुते भावं सर्वभूतेषु पापकम् ।
सम दृष्टेस्तदा पुंसः सर्वास्सुखमया दिशः।। अर्थात् जो किसी भी प्राणी के प्रति पापमयी भावना नहीं रखता, उस समय उस समदर्शी के लिए सभी दिशाएँ सुखमयी हो जाती हैं। (पुनः वाल्मीकि सुन्दर कांड ५५) हनुमान कहते हैं – धन्याः खलु महात्मानो ये बुद्ध्या कोपमुत्थितम् । वस्तुतः जो हृदय में उत्पन्न क्रोध को क्षमा के द्वारा निकाल देता है जैसे सांप पुरानी केंचुल को; वही वास्तव में पुरुष है -
यः समुत्पतितं क्रोधं क्षमां चैव निरस्पति। यथोरगस्त्वचं जीर्णा स वै पुरुष उच्यते।। क्षमा ही क्रोध का उपचार है : उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे। मायं च उजुभावेण, लोभं संतोसओ जिणे।।
क्रोध को क्षमा से, मान को मार्दव से, माया को आर्जव से और लोभ को संतोष से जीता जाता है। उत्तम क्षमा धर्म के दस लक्षणों में प्रथम है -- “उत्तमखममदवजव"। भयंकर से भयंकर उपसर्ग पर भी जो क्रोध नहीं करता है,
वही "तस्स खमा णिम्मला होदि"। जैन धर्मावलम्बियों का यह प्रथम कर्तव्य है कि वे समस्त जीवों से क्षमा याचना करें और उन्हें क्षमा भी करें। सभी प्राणियों के प्रति समभाव का यह प्रथम उपकरण है, जिसमें किसी से भी वैर भाव नहीं। यह संकल्प वस्तुतः क्षमा, मैत्री और अप्रमाद का ही संकल्प है (क्रोध का कारण द्वेष है – “दोसे दुविहे पण्णत्ते तं जहा-कोहे य माणे य"। द्वेष समाप्त करो, क्रोध स्वतः नष्ट हो जाएगा। (ठाणं-२-३-२) शान्तसुधारस में भी "क्रोध क्षान्त्या मार्दव नाभिमान" कहा है। क्षमा मनुष्य का भूषण है। क्षमा मानसिक शांति का महत् और अचूक अस्त्र है। सभी तत्व चिन्तकों ने क्षमा को मनुष्य की अप्रतिम शक्ति माना है। "क्षमते आत्मोपरिस्थिता जीवानाम् अपराध या"। पृथ्वी का एक नाम क्षमा है। दुर्गा को भी "दुर्गा शिवा क्षमा" कहा गया है, "क्षमा तु श्रीमुखे काया योग-पट्टोत्तरीयका"। क्षमा केवल वाणी से नहीं वरन् अन्तर्मन से होती है और वही सार्थक है। एकादशी तत्त्वम् में कहा है -
बाह्ये चाध्यात्मिके चैव दुःखे चोत्पादिते क्वचित् । . न कुष्पति न वहन्ति सा क्षमा परिकीर्तिता"।।
भगवान् महावीर उत्तराध्ययन सूत्र २६वें अध्य. में कहते हैं - खन्तीएण “परीसहे जिणइ" - क्षमा से समस्त परीषहों पर विजय प्राप्त होती है। इसी में २२-४५ में कहा गया है कि क्रोधादि कषायों का पूर्ण निग्रह, इंद्रियों को वश में करने से अनाचार से निवृत्त होना ही श्रामण्य है। राजमती का रथनेमि से यह उद्बोधन प्राणिमात्र के लिए सत्य है। भावपाहुड़ में धीर और धीर पुरुष का यही गुण बताया गया है, जिन्होंने चमकते हुए क्षमा खङ्ग से उद्दण्ड कषाय रूपी योद्धाओं पर विजय प्राप्त कर ली है। मूलाचार के अनुसार -
जइ पंचिदिय दमओ होज जणो रूसिदब्वय णियतो तो कदरेण कयंतो रूसिज जए मणूमाणं (२६६)
कषाय : क्रोध तत्त्व
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