Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
शिक
सकते हैं। यत्र-तत्र अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करके इस कृति को और निखार दिया है।
वस्तुतः आप जो भी लेखन - सम्पादन का कार्य हाथ में लेते हैं उसे इस तरह सुसम्पन्न करते हैं कि पाठक के हृदय में पूर्णता से रम जायें, उतर जाये !
श्रमसाध्य कार्य के लिए आपको कोटिशः साधवाद! मैं आपका सदैव ऋणी हूँ ये पुस्तकें प्राप्त करके। आपकी सत्य-वात्सल्य से युक्त छत्रछाया बनी रहे ।
झूमरमल सिंघवी ___ ताम्बरम, चेन्नई
समीक्ष्य कृति का सम्पादन विद्यार्थियों के पठन-पाठन को ध्यान में रखकर किया गया है। भाषा की शुद्धता का पूर्णतः ध्यान रखा गया है । (यथा स्थानों पर पारिभाषिक शब्दों के अंग्रेजी नाम भी देकर, विद्यार्थियों (कॉनवेन्ट) के लिये उपयोगी बनाया गया है। तत्वों का आगमिक आधार भी साथ में दिया गया है।
पच्चीस बोल का थोकड़ा, नवतत्व, लघुदण्डक को विस्तार से भेद-प्रभेद द्वारा समझाया गया है। परिशिष्ट के माध्यम से पांच समिति को भी समझाया गया है। पुस्तकें विद्यार्थियों की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी होने से “विद्यार्थी संस्करण” कहे तो कोई अनुचित नहीं होगा।
पुस्तक स्वाध्यायी एवं जिज्ञासु बंधुओं के लिये अत्यन्त लाभकारी है।
0 ज्ञानराज मेहता मंत्री - श्री वर्द्ध.स्था. जैन श्रावक संघ
बेंगलोर सिटी
जैन पारिभाषिक शब्दों का लघुकोष ___ तत्त्व-चिन्तामणि (तीन भागों में विभक्त) जैन पारिभाषिक शब्दों को समझने का लघु कोष है। जैन पारिभाषिक शब्दों के ज्ञान के अभाव में आगमों को समझना अत्यन्त कठिन है। तत्वों के निरुपण से पारिभाषिक शब्द ज्ञान, विवेचन, विस्तार ज्ञात होकर, आगम समझने में सुलभता हो जाती है। प्रस्तुत कृति में सहज, सरल एवं सुबोध रीति से तत्वों को समझाने का प्रयास किया गया
___ प्रथम भाग में पच्चीस बोल, दूसरे भाग में नवतत्व, एवं तीसरे भाग में छब्बीसद्वार (लघुदण्डक का थोकडा) सम्पादित किये गये हैं। प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादक विद्वान् लेखक श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री श्री सुमनकुमारजी म.सा. हैं। मुनिश्री जी स्थानकवासी पंजाब परम्परा के लब्ध प्रतिष्ठित संतरल हैं। आप श्री की साहित्यिक एवं आध्यात्मिक विषयों पर लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
वृहदालोयणा 'वृहदालोयणा' अर्थ सहित पुस्तक अत्यन्त पसंद आई। आप श्री की यह अनमोल देन हम जैसे ज्ञान पिपासुओं के लिए अत्यन्त ही उपयोगी है।
'शुक्ल प्रवचन' भी आप श्री की अनमोल कृति है। ऐसा आत्मपरक साहित्य हमारे ज्ञान-विकास में अवश्य ही उपयोगी है।
श्रीमती सज्जन के. बोथरा पुणे - ४११००६ (महाराष्ट्र)
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तत्त्व चिंतामणि : एक दृष्टि में |
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