Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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सुमन साहित्य : एक अवलोकन
जैन आगमों और ग्रन्थों के जो संदर्भ दिए गए हैं शुक्ल प्रवचन के चार भाग तथा तत्व चिंतामणि के उन्हें देख कर लगता है यह तो शोध प्रबन्ध है। ३ भाग देखकर आत्मविभोर हो उठा। आप श्री की
निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये चार ग्रन्थ विषय के प्रस्तुतीकरण एवं प्रतिपादन की शैली अद्भुत पूज्य श्री सुमन मुनि जी म. के विशाल अनुभूत अध्यात्म, है। विषय में प्रवेश सरलता से हो जाता है तथा विषय गहन अध्ययन एवं विविध भाषाओं पर उनकी गहरी पैठ का प्रतिपादन अनुभव कर अति आनन्द होता है तथा का दिग्दर्शन कराते हैं। साथ ही उनकी अनूठी प्रवचन प्रेरणा मिलती है। ..... शैली का भी परिचय देते हैं। इनमें न केवल सिद्धांत की
...अब तो यही आकांक्षा है कि आप हमारे नगर में अपितु लौकिक जीवन का रहस्य और दार्शनिकता का
चातुर्मास अवश्यमेव करें। आप जैसे महापुरुषों के चातुर्मास सहज बोध प्राप्त होता है। इन प्रवचनों में आध्यात्मिकता
से हमारा जीवन भी सार्थक बन जाएगा तथा युवापीढ़ी के के साथ सामाजिक और धार्मिकता के साथ लौकिक व्यवहारों एवं कर्त्तव्यों का प्रामाणिक तथा सुलभ विश्लेषण हुआ
जागरण का प्रमुख कारण बनेगा। है। यह ग्रन्थ महाराज श्री की अपूर्व विद्वता का द्योतक आपके साहित्य सृजन में मैं भी यत्किञ्चित् सहयोग
योगदान दे पाऊँगा तो अपने को कृतकृत्य समझूगा। आत्मसिद्धि के विषयों की जैनागमों से तुलना करके
___ कृपादृष्टि बनाये रखें ! पुनः वंदन के साथऔर अपने युक्तियुक्त तर्को से विद्वान् प्रवचनकार ने आत्मसिद्धि का आधार आगम वचन है, यह सिद्ध करके एक बहुत बड़ी
चमनलाल मूथा, भ्रांति को दूर करने का प्रशंसनीय कार्य बड़ी निपुणता से
रायचूर (कर्नाटक) किया है, इसके लिए संघ, समाज उनका अतीव आभारी रहेगा।
तत्त्व चिंतामणि : एक दृष्टि में ____ गहन गूढ़ आध्यात्मिक विषयों को सरलीकरण करके महाराज श्री ने बुद्धीजीवी और सर्व साधारण जिज्ञासुओं 'तत्त्व चिन्तामणि' के तीनों भाग प्राप्त कर मन गद्पर बड़ा उपकार किया है। विषय का प्रतिपादन, भाव, गद् हो उठा ! तत्त्व-विषयक ऐसी ही पुस्तकों की मुझे भाषा, शैली एवं सुन्दर सम्पादन सभी कुछ स्तुत्य बन पड़ा तलाश थी। है। इसके लिए महाराज श्री का जितना अभिनन्दन किया
दार्शनिक ज्ञान से ओतप्रोत हैं ये तीनों पुस्तकें । जाए उतना कम है।
'आगम ज्ञान की कुज्जी' भी इन्हें कह दिया जाय तो कोई अन्त में पूज्य महाराजश्री से मेरा यही विनम्र निवेदन ।
अतिशयोक्ति नहीं होगी। है कि वे अपने अन्य प्रवचन भी इसी भाँति प्रकाशित
साध्वी सरिता करावे जिससे दूरस्थ धार्मिक लोग भी उनकी ज्ञान गरिमा
एम.ए., पी.एच.डी., डी.लिट. और वीतराग वाणी का अध्ययन कर आत्मस्वरूप में स्थित हो सकें।
'तत्त्व चिंतामणि' के तीनों भाग स्वाध्यायियों के डॉ. सुव्रत मुनि (पंजाब) लिये अति उत्तम एवं ज्ञानवर्द्धक है। सरलभाषा एवं
विश्लेषण के कारण विद्यार्थी भी इसे आसानी से समझ
| तत्त्व चिंतामणि : एक दृष्टि में
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