Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
मुक्त बने। भगवान ने स्पष्ट उद्घोषणा की – 'न वि मुंडिएण मुणी होइ' अर्थात् मुंडन करा लेने मात्र से कोई मुनि नहीं हो जाता है। मुंडन करा लेना बड़ी बात नहीं है। जरा सा कष्ट सहकर मुंडन अथवा लुंचन कराया जा सकता है। वस्तुतः केशलुंचन मुनि की पहचान नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि तुंचन करा लिया तो मुनि हो गए।
वेश परिवर्तन तथा केशलुंचन साधुत्व / मुनित्व की कसौटी नहीं है। मुनित्व की कसौटी है अन्तरात्मा का परिवर्तन तथा कषाय का मुण्डन । आगमों में शब्द प्रयुक्त हुए हैं - क्रोधमुंड, मानमुंड, मायामुंड, लोभमुंड। अर्थात् क्रोध-मान-माया और लोभ का मुण्डन करने वाला ही मुनि होता है। __जहां आपको क्रोध दिखाई दे, अहंकार, छल या लोभ दिखाई दे समझ लेना वहां मुनित्व घटित नहीं है। वहां मात्र वेशविन्यास बदला है। अन्तर नहीं बदला है।
आप अपने जीवन में ऋजता. सरलता. विनम्रता. सन्तोष वृत्ति को धारण करके मुनित्व में जी सकते हैं। सागारी होते हुए भी आप अनगार वृत्ति के आनन्द को अनुभव कर सकते हैं। क्योंकि मुनि/अणगार का सम्बन्ध संयम से है - "मोणेण मुणि होइ" -- मौन से अर्थात् संयम से मुनि होता है। ‘मौनं-संयमम्' - मौन का अर्थ है संयम। ... सहिष्णुताःसफलता की कुंजी
सहिष्णुता से क्या लाभ है इस पर हम थोड़ा विचार करें। घर में, परिवार में, समाज में कुछ ऐसे छोटे बड़े आदमी मिलेंगे जो किसी भी बात को सुनकर अपना मानसिक सन्तुलन खो देते हैं, क्रोधित हो उठते हैं। जिनमें सुनने का माद्दा नहीं होता है। ऐसे व्यक्ति अपनी तुनकमिज़ाजी अथवा क्रोध से पूरे परिवेश को क्लेशमय
बना देते हैं। घर में और समाज में ऐसी अनेक बातें सुनने में आती हैं, जो अप्रिय होती हैं, जो मात्र सुनने के लिए ही होती हैं, जो एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देने के लिए ही होती हैं। अगर उन्हें सुनकर हम तुनकते रहे तो अपना जीवन और अपना घर विषाक्त बना लेंगे। जीवन अशांति का पर्याय बन कर रह जाएगा।
सहिष्णुता एक गुण तो है ही, यह एक कला भी है जीवन को मधुरता से जीने की। आपके जीवन में यदि सहिष्णुता का गुण है तो आप अपने जीवन में जो चाहें हो सकते हैं। बड़ी से बड़ी सफलताएं सहिष्णुता के बल पर आप अर्जित कर सकते हैं। जन साधारण की पिचानवें प्रतिशत एनर्जी क्रोध में भस्म हो जाती है। उस एनर्जी को आप सुरक्षित रख सकते हैं। उसके बल पर बड़ी से बड़ी मंजिल को पा सकते हैं।
महावीर की कैवल्य की साधना का प्राण तत्त्व सहिष्णुता ही तो था। यदि उनमें सहिष्णुता न होती तो कदापि उनकी साधना को मंजिल न मिल पाती। उनके साधना काल में कदम-कदम पर ऐसी परिस्थितियां निर्मित होती रही कि साधारण व्यक्ति उलझ कर रह जाए। पर महावीर कहीं न उलझे। वस्तुतः जो भीतर से सुलझ जाता है उसकी समस्त उलझनें मिट जाती हैं। भूलभुलैय्या में भी वह भटक नहीं सकता है। उसके कदम जहां-जहां पडते हैं वहां-वहां राजमार्ग निर्मित होता जाता है।
आपने संतों से सुना होगा....अथवा आगमों में पढ़ा होगा कि महावीर जहां जाते.....जिस राह से गुजरते उस राह के कांटें ओंधे हो जाते थे। यह असत्य नहीं है। इस कथन में प्रतीकात्मक सत्य छिपा है। इसका अर्थ हैमहावीर जहां जाते उनके सम्पर्क में आने वाले.....उन्हें कष्ट तक देने वाले दुष्ट सज्जन हो जाते थे...महावीर अपनी सहिष्णुता के बल पर उनके हृदय कण्टकों को ओंधा कर देते थे.... अति पवित्र कर देते थे।
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प्रवचन-पीयूष-कण |
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