Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
महावीर जैसा गैरदावेदार आदमी ही नहीं हुआ इस जगत् ही कहना होगा। यहाँ गौण रखने का अभिप्राय उसकी में। उनका एकदम असाम्प्रदायिक चित्त था। इसी कारण विशेषताओं का अस्वीकार नहीं है और न संशय या वे सत्य को विभिन्न कोनों से देख सके हैं। महावीर के अनिश्चय ही। बल्कि व्यावहारिकता का निर्वाह है। पूर्व उपनिषद् कहते थे कि ब्रह्म की व्याख्या नहीं हो। अतः किसी वस्तु का युगपद् कथन न जरूरी है और न सकती। बड़ा अद्भुत है उसका स्वरूप। महावीर ने कहा सम्भव । फिर भी उसकी पूर्णता अवश्य बनी रहती है। ब्रह्म तो बहुत दूर की चीज है, तुम एक घड़े की ही वस्तुओं के इस अनेकत्व को मानना ही अनेकान्तवाद है। व्याख्या नहीं कर सकते। उसका अस्तित्व भी अनिर्वचनीय है। इसे महावीर ने विस्तार से समझाया।
स्यावाद कोई संशयवाद नहीं
पदार्थों की अनेकता स्वयं द्रव्य के स्वरूप में छिपी सप्तभंगी
है, प्रत्येक द्रव्य उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्य से युक्त होता महावीर के पूर्व सत्य के सम्बन्ध में तीन दृष्टिकोण थे
है। प्रत्येक क्षण उसमें नयी पर्याय की उत्पति, पुरानी (क) कानी और दोनों ही पर्याय का नाश एवं द्रव्यपने की स्थिरता बनी रहती है। भी। घट के सम्बन्ध में यह कहा जाता था कि वह घट है,
इसी बात को कहने के लिए महावीर ने अनेकान्त की बात कोई कपड़ा आदि नहीं। घट नहीं है, क्योंकि वह तो
कही। वस्तु का अनेकधर्मा होना अनेकान्तवाद है तथा मिट्टी है। तथा घड़े के अर्थ में वह घड़ा है तथा मिट्टी
उसे अभिव्यक्त करने की शैली का नाम स्याद्वाद कोई के अर्थ में घड़ा नहीं है। इस प्रकार वस्तु को इस त्रिभंगी
संशयवाद नहीं है। अपितु स्यात् शब्द का प्रयोग वस्तु के से देखा जाता था। महावीर ने कहा कि सिर्फ तीन से
एक और गुण की सम्भावना का द्योतक है। काम नहीं चलेगा। सत्य और भी जटिल है। अतः उन्होंने स्याद्वाद महावीर के जीवन में व्याप्त था। उनके इसमें चार सम्भावनाएं और जोड़ दी। उन्होंने कहा कि बचपन में ही स्याद्वादी चिंतन प्रारम्भ हो गया था। कहा घट स्यात् अनिर्वचनीय है, क्योंकि न तो वह मिट्टी कहा
जाता है कि एक दिन वर्द्धमान के कुछ बालक साथी उन्हें जा सकता है और न घड़ा ही। इसी अनिर्वचनीय को खोजते हुए माँ त्रिशला के पास पहुंचे। त्रिशला ने कह महावीर ने प्रथम तीन के साथ और जोड़ दिया। इस दिया - वर्द्धमान भवन में ऊपर है। बच्चे सबसे ऊपरी प्रकार सप्तभंगी द्वारा वे पदार्थ के स्वरूप की व्याख्या खण्ड पर पहँच गये। वहाँ पिता सिद्धार्थ थे, वर्द्धमान करना चाहते थे।
नहीं। जब बच्चों ने पिता सिद्धार्थ से पूछा तो उन्होंने कह इस सप्तभंगी नय को महावीर ने अनेक दृष्टान्तों द्वारा
दिया - वर्द्धमान नीचे है। बच्चों को बीच की एक मंजिल समझाया है। उनमें छह अन्धों और हाथी का दृष्टान्त
में वर्द्धमान मिल गये। बच्चों ने महावीर से शिकायत की प्रसिद्ध है। आप इसे अन्य उदाहरण से समझें। एक ही
कि आज आपकी माँ एवं पिता दोनों ने झूठ बोला। व्यक्ति पिता, पुत्र, पति, मामा, भानजा, काका, भतीजा वर्द्धमान ने अपने साथियों से कहा - तुम्हें भ्रम हुआ इत्यादि सभी हो सकता है। एक साथ होता है। किन्तु है। माँ एवं पिताजी दोनों ने सत्य कहा था। तुम्हारे उसे ऐसा सब कुछ एक साथ नहीं कहा जा सकता। समझने का फर्क है। माँ नीचे की मंजिल पर खड़ी थी। उसकी एक विशेषता को मुख्य और शेष को गौण रखकर अतः उनकी अपेक्षा मैं ऊपर था और पिताजी सबसे
अनेकान्तवाद : समन्वय का आधार |
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