Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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प्रवचन - पीयूष - कण
शास्त्र और शस्त्र
अगर हम शास्त्रों को ठीक से समझ लें तो हमारे जीवन की सभी कठिनाइयां मिट सकती हैं। सारे दुख सारे उलझाव सुलझ सकते हैं। शास्त्राध्ययन से, उनको सम्यक् रूप से समझने से हमारे हृदय में सुविचार उत्पन्न होंगे। फिर हम जो बोलेंगे वह भी सम्यक् होगा, जो करेंगे वह सम्यक् अर्थात् सदाचरण होगा।
हमारे उलझाव और कठिनाइयों का कारण हमारा अज्ञान ही तो है । शास्त्र प्रकाश पुंज शब्दों के संग्रह हैं । उनका मात्र पठन पर्याप्त नहीं है । उनको समझ कर पढना आवश्यक है। समझ कर पढ़ा हुआ शास्त्र आपके सारे दुखों - समस्याओं को काट देगा। इसके विपरीत असमझ से पढ़ा गया शास्त्र आपके अहं का ही पोषक होगा। वह आपके हाथ में पड़कर शस्त्र बन जाएगा। शस्त्र भी काटता है पर वह स्थूल अंगोपांगों को काटता है और हिंसा का हेतु बनता है। शास्त्र भी काटता है पर वह कर्म समूह को काटता है, हिंसा, द्वेष और ईर्ष्या को काटता है । मेरी आपसे यही प्रार्थना है कि शास्त्र को शस्त्र मत बनाना । उसे शास्त्र रूप में ही ग्रहण करना । ••
गुरु बिन ज्ञान न होई
आज पुस्तकों का युग है । प्रतिदिन नई-नई पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। प्राचीन धर्मग्रन्थ भी बड़े पैमाने पर प्रतिदिन छप रहे हैं । परन्तु मैं समझता हूँ कि जितनी अधिक मात्रा में पुस्तक छप रही हैं मनुष्य उतना ही अज्ञानी होता जा रहा है। उसके पास बाह्य (संसार की ) जानकारियां तो बढ़ रही हैं परन्तु स्वयं की जानकारी के नाम पर वह शून्य होता जा रहा है।
प्रवचन - पीयूष - कण
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प्रवचन - - पीयूष - कण
इसका क्या कारण है? इसका कारण है गुरु का अभाव | गुरु के बिना आप विद्वान तो बन सकते हैं पर ज्ञानी नहीं बन पाएंगे। पुस्तकीय ज्ञान को मस्तिष्क में संचित करनेवाला विद्वान होता है, ज्ञानी नहीं । ज्ञानी तो वह होता है जो स्वयं को जान लेता है और वह ज्ञान आप पुस्तकों से या अध्यापकों से नहीं पा सकते हैं । वह तो आप गुरु से ही पा सकते हैं।
गुरु वह है जो अन्धकाराछन्न पथों से पार हो चुका है जो आत्मज्ञान को उपलब्ध हो चुका है। जिसका स्वयं के भीतर का अन्धकार विलीन हो चुका है वही तो आपके भीतर के अन्धकार को दूर सकता है।
आप शास्त्रों का स्वाध्याय करते हैं पर उनसे आप केवल यही सीख पाते हैं कि साधु को यह करना है, यह नहीं करना है ...... । शास्त्र पढ़कर आप भी बोझिल हो जाते हैं, जबकि आपको बोझ से उन्मुक्त होना चाहिए।
आप शास्त्र पढ़िए पर गुरु की सन्निधि में बैठकर | गुरु ही आपको आगमों का नवनीत दे पाएंगे। आप स्वयं पढ़ेंगे तो आपको छाछ ही हाथ लगेगी ।
कहावत है
गुरु बिन ज्ञान न होई ।
गुरु के बिना आपको ज्ञान नहीं मिल सकता है। यह बात केवल मैं ही नहीं कह रहा हूँ । समस्त ज्ञानी पुरुषों ने यही बात कही है। •••
साहसी बनिए.... मनः जेता बनिए
मानसिक दुर्बलता के कारण हम अपने आप भय खड़ा कर लेते हैं। जिन लोगों में मानसिक दुर्बलता नहीं
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