Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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समाज के लिए विभिन्न धार्मिक विषयों पर गोष्ठियां एवं भाषण का आयोजन रहेगा। समाज के सभी चिन्तन शील बन्धुओं से अपेक्षा की जाती है कि इस शिक्षण कार्य का अवलोकन करते हुए तन-मन धन से योगदान देते रहें ।
मैसूर के चातुर्मास के पश्चात् अग्राहर होते हुए हुर पधारे। चातुर्मास काल में श्री उदयलाल जी पारसमल दी दक तथा अन्य श्रावकों का उनके क्षेत्र को स्पर्शने का विशेष आग्रह रहा था । सो उनकी भावना पूर्ण हुई। यह मैसूर से ५० कि.मी. की दूरी पर है। यहां तीनों श्वेताम्बर परम्पराओं के संघों का सुन्दर समन्वय है । यहां अतिस्नेह भाव और भक्ति है। यहां पर आप श्री १५ दिन विराजे । यहीं पर गोंडल सम्प्रदाय के मुनियों श्री जसराज जी स्वामी तथा श्री देवेन्द्र मुनि जी से सुमधुर सम्मिलन भी हुआ ।
वहां से आप श्री पुनः मैसूर पधारे। वहां पर साध्वी डा. श्री ज्ञानप्रभा जी के अतिरिक्त श्वेताम्बर मुनियों तथा आर्याओं से सुमधुर भेंट हुई। आप श्री की प्रेरणा से वहां पर भगवान महावीर प्राकृत भाषा जैन विद्या पीठ का विधिवत् उद्घाटन हुआ ।
बैंगलोर में महासती श्री प्रमोदसुधा जी म. की दो बैरागनों की दीक्षा सुनिश्चित हुई थी । साध्वी जी के विशेष आग्रह तथा श्री संघ की पुरजोर प्रार्थना को ध्यान में रखते हुए आप मैसूर से बैंगलोर पधारे । आर्ट कालेज के मैदान में दीक्षा का भव्य आयोजन हुआ ।
तदनन्तर आप ने बैंगलोर के उपनगरों में विचरण किया। चामराजपेठ होते हुए हनुमंतनगर पधारे। आपकी मंगल प्रेरणा से स्थानक भवन के ऊपर विशाल हाल की योजना पूर्ण हुई जिसका सौजन्य श्री कुन्दनलाल जी भण्डारी ने ग्रहण किया। इसी अवसर पर श्री पन्नालाल चौरड़िया
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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
ने जैन भवन निर्माण का दायित्व संघ अपने कन्धों पर लिया और इसे शीघ्र ही मूर्त रूप देने का संकल्प ग्रहण किया ।
वहां से आप श्री जयनगर पधारे। वहां पर आपकी प्रेरणा से स्थानक भवन के पुनर्निर्माण की योजना बनी। वहीं पर ६ मार्च ६७ को अम्बाला नगर में सुदीर्घ काल तक स्थानापति रहे स्थविर, वयोवृद्ध उपप्रवर्तक तपस्वी श्री सुदर्शन मुनि जी महाराज के देहावसान की सूचना प्राप्त हुई ।
शांतिसभा जयनगर में ही रखी गई। आपने अपने हृदयोद्गार प्रगट करते हुए तपस्वी जी म. के जीवन पर प्रकाश डाला। आपने कहा - श्रद्धाधार श्री तपस्वी जी म. आचार्य श्री सोहनलाल जी म. के हाथों से दीक्षित हुए अन्तिम मुनिराज थे। उन्होंने बासठ वर्षों तक निष्कलंक संयम पाला और तिरानवें वर्ष की अवस्था पाई। उनकी जन्म तथा दीक्षा तिथि एक ही थी । बसन्त पञ्चमी के शुभ दिन ही उन्होंने संसार में आंखें खोली थीं तथा इसी शुभ दिन उन्होंने संयमी जीवन में प्रवेश किया था । उनका देहावसान भी चैत्रमास में हुआ। वे परमतपस्वी संत सरल मुनिराज थे। बालक हो या वृद्ध धनी हो या निर्धन वे सभी को एक भाव से लोगस्स के पाठ के साथ मंगलपाठ सुनाते थे । वे आत्मार्थ के सिवाय किसी प्रपंच में नहीं पड़ते थे । यही कारण था कि न केवल अम्बाला निवासी उन्हें अपना भगवान मानते थे अपितु सभी संतसाध्वी भी उन्हें अपना आराध्य देव मानते थे ।
पूज्य तपस्वी जी महारज मेरे गुरुदेव श्री के बड़े गुरुभ्राता थे। उनके देवलोक गमन पर मैं उन्हें कोटिकोटि श्रद्धांजलि.....सुमनाञ्जलि समर्पित करता हूं।
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