Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
अच्छी धनराशि की घोषणा की तो अनेक दान दाताओं ने अपने धन के सदुपयोग की घोषणा की।
सौभाग्य से बसन्त पंचमी के अवसर पर, शुभ दिन एक साथ दो मंगल अनुष्ठान सम्पन्न हुए - नये स्थानक भवन का उद्घाटन, मंत्री मुनि श्रीजी की ५८ वीं जन्म जयन्ती ।
युवाचार्य प्रवर श्री शिवमुनिजी महाराज ने नये स्थानक के लिए मंगल कामनाएँ एवं स्वाध्याय पीठ के लिए प्रेरणा देते हुए सलाहकार मन्त्री मुनि जी महाराज साहब की ५८वीं जन्म जयन्ति पर शुभ कामनाएँ प्रकट करते हुए उनको अनेक अनेक बधाइयाँ दी। उन्होंने कहा कि आज
इस युग में पूज्य सुमन मुनि जी जैसे कर्मठयोगी, स्पष्ट वक्ता, आगम ज्ञाता सन्तों की बहुत आवश्यकता है ।
अन्त में पूज्य श्री सुमन मुनि जी म. सा. का स्थानकपरम्परादि पर ओजस्वी उद्बोधन पाकर जनता गद्गद हो उठी ।
मंच संचालन का कार्य संघमन्त्री श्री भीखम चन्द्र जी गादिया ने कुशलता पूर्वक किया । धन्यवाद श्री चैनराज जी पीपाड़ा मैनेजिंग ट्रस्टी ने पढ़ा।
श्री संघ ने मद्रास नगर - उपनगरों तथा बाहर में आए हुए सब धर्म बन्धुओं के लिए भोजन की सुन्दर व्यवस्था की ।
हुई ।
पूज्य गुरुदेव के मंगलमय मांगलिक से सभा विसर्जित
स्थानक के उद्घाटन के उपलक्ष में ४८ घंटों का नवकार महामन्त्र का अखंड जाप हुआ। जिसमें सब भाई बहनों ने बड़े उत्साह से भाग लिया ।
टी. नगर स्थानक उद्घाटन के बाद आपकी विहार
यात्रा आरकोणम के लिए प्रारंभ हुई। टी. नगर से विहार
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यात्रा करते हुए अन्ना नगर, पाड़ी अम्बतूर, आवडी, पट्टाभिराम, तिन्नानूर, त्रिवलूर पधारे यहाँ पर प्रवर्त्तक पं. श्री शुक्लचन्द जी म. की पुण्य तिथि श्री प्रेमराज जी कड़ के छतरम में मनाई । यहाँ से विहार करके आरकोणम में होली चातुर्मास के लिए प्रवेश किया। ये सभी क्षेत्र साताकारी हैं यहाँ सभी स्थानों पर स्थानक एवं श्री संघ
हैं ।
माम्बलम वर्षावास की स्वीकृति
होली चातुर्मास के दिन अनेक संघ समुपस्थित थे । मद्रास का माम्बलम (टी. नगर ) संघ दो बसों से, एवं युवामंच एक वेन से वहाँ उपस्थित हुआ । १६६३ के चातुर्मास की पुरजोर विनती की गुरुदेव श्री ने विनती का मान रखते हुए सुख समाधे सागार आगामी वर्षावास की माम्बलम श्री संघ को स्वीकृति प्रदान कर दी । स्वीकृति पाकर संघ उत्फुल्ल एवं हर्षित हो उठा ।
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आरकोणम से विहार करके तिरतिनी, पुत्तूर, रेनीगुण्टा होते हुए तिरुपति गए वहाँ एक सप्ताह ठहरे धर्म ध्यान आदि का ठाठ रहा । तिरुपति में चित्तूर संघ आचार्य श्री आनंद ऋषि जी म. की पुण्य तिथि की विनती लेकर आया । गुरुदेव ने सुखे समाधि स्वीकृति प्रदान की । तिरूपति में जैन स्थानक है । स्थानकवासी, तेरापन्थी, मन्दिर मार्गी तीनों सम्प्रदाय हैं । सेवा भावी क्षेत्र है । चित्तूर में भी स्थानक है । ४-५ घर है जिनमें श्री सुभाषजी तातेड़, धर्मीचन्दजी छाजेड़ मुख्य हैं । वहाँ से महावीर जयन्ति के लिए काठपाड़ी होते हुए वेलूर पहुँचे । काठपाड़ी भी ७-८ घर हैं । सेवाभावी हैं।
तदन्तर चेतपेट तिरुवन्नामल्लै, तिरुकोईलूर, विल्लीपुरम, पनरुटी, नेलीकुप्पम, कड़लूर, पाँडीचेरी,
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