Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
बनारस के संस्कृत शास्त्री थे तथा प्रसिद्ध कथावाचक भी। वृद्धावस्था में भी उनकी आवाज सुरीली थी और कोई भक्तिगीत या भजन/पद सुनाते तो वातावरण में संगीत की लहरियाँ तैर जाती। तुलसीकृत रामायण उनको कष्ठस्थ थी। कथा-श्रवण करते समय लोग तन्मय हो जाते थे।
उन्होंने गिरधारी को वहाँ रखा लिया। गिरधारी ने भी पाया कि जमनानाथ जी विद्वान् व्यक्ति/संन्यासी है और हैं पूर्ण शाकाहारी भी। निरामिष भोजन एवं मदिरापान से वे कोसों दूर थे। स्वयं भोजन पकाते थे और रुचि अनुसार ग्रहण कर लेते थे। पूर्ण ब्रह्मचारी तथा नैष्ठिक संन्यासी जमनानाथ से गिरधारी अध्ययन करने लगा। गीता के कतिपय प्रमुख श्लोक एवं रामायण की प्रमुख चौपाइयाँ गिरधारी ने कण्ठाग्र की।
संन्यासी जमनानाथ जी अनुभव समृद्ध थे। समय- समय पर अपने जीवन का अनुभव-अमृत गिरधारी को पान करवाते थे। समय-समय गिरधारी को हितशिक्षाएं भी उनसे प्राप्त होती रही। गिरधारी भी तन-मन से उनकी सेवा-सुश्रूषा करने लगा किंतु उन्होंने कभी भी गिरधारी को झूठे बर्तन, मैले कपड़े नहीं धोने दिए। गिरधारी कभी-कभी हठाग्रह करता तो वे कहते - स्वावलंबी जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है।... वत्स, तुम तो दत्त-चित्त होकर खूब पढ़ा करो, जीवन में जितनी ज्यादा विद्या का अर्जन करोगे उतना ही सुख और सन्तोष मिलेगा। वत्स! रंगो मेरे रंग !
गिरधारी उनकी सेवा करता हुआ उनका विश्वासपात्र बन गया। सहसा एक दिन गिरधारी से कहा-“वत्स! तुम मेरे शिष्य बन जाओ,"
गिरधारी ने शांत भाव से कहा-मैं जैन धर्म को मानता हूँ, आपका शिष्य नहीं बन सकता! ऐसे मैंने हिन्दू जाति में जन्म लिया है किन्तु मैं कर्मणा जैन हूँ।
“तभी नास्तिक हो, जैन धर्म नास्तिकवादी है। ईश्वर को कर्ता नहीं मानता है। तुम यह नहीं जानते कि जैन धर्म से प्राचीन नाथ सम्प्रदाय है।" कुछ सोचा, फिर कहना प्रारंभ किया-तीर्थंकरों के नाम जानते हो।"
"चौबीसों नाम याद है।" "सुनाना तो.....!" गिरधारी ने सुनाना प्रारंभ किया - ऋषभनाथ जी, अजितनाथजी, संभवनाथ जी....!
जमनानाथ जी मुक्त कण्ठ से हंस पड़े! तदनंतर कहने लगे “कुछ समझे या नहीं भी।"
"नहीं।"
“तुम कितने भोले हो! अबोध हो! देखो इनके नाम के आगे भी नाथ शब्द है। नाथ संप्रदाय ही सबसे पहले सम्प्रदाय है, जैनियों ने तो हमारे नाम चुरा लिये है।"
गिरधारी नास्तिक-आस्तिक, कर्तृत्ववाद, अकर्तृत्त्ववाद, आदि का कोई प्रतिकार नहीं कर पाया। वह तो अबोध किशोर था उसे भला गहरा ज्ञान कौन दे पाया था? तथापि जैन धर्म की आलोचना उसे अच्छी नहीं लगी।
___ मन के उपरान्त भी मजबूरी वश वह किशोर वहीं रहा। नाथ जी समय-समय पर शिष्य बनने की बात छोड़ देते। वे कहते “नाथ सम्प्रदाय में दो प्रकार के शिष्य है - मुद्राधारी और ओघड़। मुद्राधारी कान फड़वाकर शिष्यत्व ग्रहण करते है और ओघड़ शृंगी, रुद्राक्ष आदि गले में धारण कर शिष्य बनते है।"
“तुम मेरे मुद्राधारी शिष्य बन जाओ। कर्ण छेदन का बहुत बड़ा आयोजन तुम्हारे लिए किया जाएगा। अपार जन समूह एकत्रित होगा। भोज भी आयोजित होगा।"
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