Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
भी अभाव था। रेल की पटड़ी-पटड़ी ही विहार करते हुए सूरतगढ़ पहुँचे। यहाँ मुनि समागम हुआ। मुनिवरों का दल बीकानेर हेतु प्रस्थित हुआ । लूणकरणसर होते हुए सथल आए । यहाँ बहुश्रुत पं. श्री ज्ञानमुनि जी म. तपस्वी श्री लाभचन्दजी म. ठाणा ४ के दर्शनों का लाभ भी अनायास ही मिल गया। ये भी सम्मेलन दिशा की ओर ही पधार रहे थे । यहाँ सार्वजनिक व्याख्यान हुए। स्मरण रहे हिसार से बीकानेर तक के जितने भी क्षेत्र है सभी तेरापंथी समाज की आम्नाय के स्थल हैं। स्थानकवासी इन ग्रामों में नगण्य हैं तथापि यहाँ के निवासियों में साम्प्रदायिक सद्भाव विद्यमान है । अंततः सभी सन्त मण्डली का पदार्पण बीकानेर में हो ही गया । सुन्दर अवसर : बेर-बेर नहीं आवे :
युवामुनि जी को बीकानेर में बड़े-बड़े महापुरुषों के दर्शनों का सौभाग्य मिला। होली चातुर्मास एवं केशलुञ्चन यहीं हुआ । मुनि श्री सुशीलकुमार जी म. प्रथम दर्शनों का सौभाग्य भी मुनिश्री को यहीं मिला। मुनिश्री सुशीलकुमारजी म. को सुनने का एवं उनसे विचार-विमर्श करने का तथा उनकी सर्वधर्म समभाव - व्याख्यान शैली से परिचित होने का यह सुन्दर अवसर था ।
प्रेरणा- पथ के सहारे :
बीकानेर से भीनासर पहुँचे। यहाँ युवामुनि श्री सुमनकुमार जी म. को भी प्रवचन करने का सुनहरा अवसर मिला। इतनी विशाल जनमेदिनी एवं बड़े-बड़े संत महारथियों के मध्य वक्तव्य देने का उनका यह प्रथम अवसर था । बलवती प्रेरणा थी- मरुधर केसरी श्री मिश्रीमलजी म.सा. की ।
समय की मांग : लाउडस्पीकर :
भीनासर में ही पंजाब निवासियों की ओर से ध्वनिवर्द्धक यंत्र के प्रयोग करने हेतु एक जुलूस निकला। आंदोलन -
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कारियों का नारा था - "समय की मांग, लाउडस्पीकर".... । एक बार व्याख्यान मंडप में भी इसी मांग को लेकर पक्ष विपक्ष के मध्य टकराव हुआ । संत-समाज भी इससे अछूता नहीं रहा । अन्ततोगत्वा इस वातावरण को शान्त करने के लिए मरुधर केसरी श्री मिश्रीमलजी म. आदि दिग्गज सन्त पधारे तब कहीं जनता शांत हुई ।
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जन्मस्थली इन्तजार करती रही
युवामुनि श्री सुमनकुमार जी म. के पारिवारिक जन भी बीकानेर पहुँचे तथा पांचू ग्राम फरसने के लिए अत्याग्रह किया किंतु सम्मेलन होने के कारण उधर जाना नहीं हुआ ।
बीकानेर सम्मेलन :
सम्मेलन की समस्त कार्यवाही युवामुनि ने भी देखी और अपने अनुभव खजाने में अभिवृद्धि की । यहीं पर आप श्री ने सर्वप्रथम बहुश्रुत पं. रत्न श्री समर्थमलजी म. आदि ठाणा के दर्शनों का सुअवसर पाया। सम्मेलन की कार्यवाही से जैन धर्म और साध्वाचार के विषय में सोचने के लिए मुनिश्री को नयी सामग्री प्राप्त हुई । पधारों नी जोधाणे देस :
पं. रत्न प्रवर्तक श्री शुक्लचन्द्र जी म. के आगामी वर्षावास हेतु जोधपुर श्री संघ ने अत्यधिक आग्रह भरी विनति प्रस्तुत की । फलतः गुरुदेव श्री ने सन् १६५६ के वर्षावास की स्वीकृति जोधपुर संघ को प्रदान कर दी । बीकानेर से प्रस्थान कर उदयरामसर, देशनोक, खजवाना, मुण्डवा, कुचेरा, गोगोलाव आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए नागौर पधारे। कुचेरा में स्वामी श्री हजारीमलजी म. स्वामी श्री बृजलालजी म. एवं पंडितरल (युवाचार्य) श्री मिश्रीमलजी म. (मधुकर ) के दर्शनों का आपश्री ने लाभ लिया । यहीं पर उपाध्याय श्री अमरमुनिजी म. श्री अखिलेश मुनिजी म. आदि ठाणा विराजमान थे ।
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