Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
दिनांक २५-६-८६ का प्रवचन स्व. से. श्री भैरुलालजी । साथ आचार्य देव को श्रद्धा अर्पित की। इस शुभ अवसर रांका के बंगले पर पैंडरग्रास्टरोड पर हुआ। विनीत थे पर रामकोट में विराजित साध्वी रमणीक कंवर जी में. श्री जिनेन्द्र राज पारस मल जी रांका। दिनांक २-७-८६ अपनी शिष्यमण्डली सहित विशेष रूप से पधारी। का प्रवचन हुआ श्री मांगी लाल जी सुरेश कुमार जी २७ अगस्त १६८६ को जैन जगत के युग प्रवर्तक दुग्गड़ के निवास स्थान पर।
श्री अमोलक ऋषिजी म. का ५३वाँ स्मृति दिवस सोल्लास सन १६८६ का वर्षावास डबीरपुरा हैदराबाद में
एक तपत्याग पूर्वक मनाया गया। पावन सन्निधि परम होना सुनिश्चित हुआ था। यथा समय आप श्री का
श्रद्धेय गुरुदेव श्री की ही थी। और मुख्य अतिथि थे
हैदराबाद समाचार (हिन्दी दैनिक) के सम्पादक श्री मनीन्द्र मंगलप्रवेश हुआ एवं चातुर्मासिक धार्मिक गति विधियाँ सुचारू रप से सम्पन्न होने लगीं। आबाल वृद्ध जनों में
जी। मध्याह्न की वेला में सुसम्पन्न हुए इस समारोह की
अध्यक्षता कर रहे थे श्री मिश्री मल जी खिंवसरा अध्यक्ष एक नई चेतना एवं जागृति का शंख फूंका श्रद्धेय मुनिवर
श्री वर्द्धमान स्था. जैन संघ । इसी शुभ अवसर पर भाषण ने। प्रार्थना, प्रवचन एवं अन्य कार्य क्रमों में जनसमूह
प्रतियोगिता तथा मेहन्दी प्रतियोगिता क्रमशः प्रातः व उमड़ने लगा।
मध्याह्न में आयोजित हुई। भाषण प्रतियोगिता को दो पावन सत्रिधि में
वर्ग में विभक्त किया गया। विषय थे - १. युवा वर्ग
हेतु “समाज निर्माण में सन्तों का योगदान २. विद्यालय में __ आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी म. की ६० वीं
धार्मिक शिक्षण की आवश्यकता।" जन्म जयन्ति को श्री संघ ने त्रिदिवसीय आयोजन के रूप में मनाने का निश्चय किया। दि. ३१ जुलाई १६८६ के
बाल वर्ग हेतु : दिवस को आयंबिल दिवस' के रूप में मनाया। अनेक
१. सामाजिक समारोहों में बदले प्रदर्शन
२. आज का युवक धर्म के प्रति उदासीन क्यों ! तपस्वी भाई बहनों ने इस दिवसोपलक्ष में लूखा-सूखा
३. सितम्बर १६८६ को निबंध प्रतियोगिता भी आयोजित नीरस आहार ग्रहण कर अपने जीवन को धन्य बनाया
हुई। विषय थेएवं रसनेंद्रिय पर विजय पाई। १ अगस्त १६८६ को एकं धुन-एक ही सुस्वर में सम्पन्न हुए जाप से सामूहिक ।
किशोरवर्ग जाप रखा गया। वहाँ श्रद्धा और भक्ति का आलौकिक १. विश्व शांति में जैन दर्शन का योगदान वातावरण दृष्टिगोचर हो रहा था। दि. २ अगस्त १९८६ २. आधनिक समाज में नारी का स्थान को प्रातः प्रभातफेरी आयोजित हुई। प्रातः ६ बजे सार्वजनिक सभा प्रारंभ हुई। इस सभा के अध्यक्ष प्रसिद्ध युवा वा उद्योगपति श्री रतनचंद जी रांका थे। प्रमुख वक्ता पं. १. आज के युग में धर्म का स्थान । डॉ. श्री रामनिरंजन पाण्डेय थे। (भूतपूर्व अध्यक्ष हिन्दी २. जैन धर्म की विशेषता। एवं विभाग उस्मानिया महाविद्यालय)
दिनांक २ सितंबर ८६ को ही मध्याह्न में भक्तिगीत श्रद्धा गीत के साथ सभा प्रारंभ हुई। अनेक वक्ताओं प्रतियोगिता भी सानंद सम्पन्न हुई। इन प्रतियोगिताओं में एवं गायकों ने अपने-अपने विचारों एवं गीतिकाओं के जैन युवा मित्र मंडल हैदराबाद का स्तरीय उल्लेख रहा।
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