Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
भूमिका : पूना आगमन की
तथा कुछ पलों के लिए दादागुरु श्री शुक्लचन्दजी म.सा. वस्तुतः महामहिम आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि जी की स्मृति मन-मस्तिष्क में उभर आई। म.सा. ने श्रद्धेय मुनि श्री सुमनकुमार जी म.सा. को इस आचार्य श्री की आज्ञा एवं निर्देश को परिप्रेक्ष्य में सम्मेलन हेतु विशेषरूपेण आमंत्रित किया था। सर्वप्रथम रखते हुए मुनिवर श्री ने 'सुखे समाधे' स्वीकृति प्रदान कर आचार्य श्री ने जो प्रतिनिधि मंडल आपश्री को आमंत्रित दी। करने पंजाब प्रेषित किया था उनमें सर्व श्री संचालालजी
पूना की ओर प्रयाण बाफणा (अध्यक्ष-श्री अ.भा.श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेन्स, पूना श्रमण संघ सम्मेलन समिति के अध्यक्ष श्री बंकटलालजी समय अल्प था तथा लगभग २२०० कि.मी. यात्रा कोठारी, सम्मेलन समिति के कोषाध्यक्ष श्री बालचंदजी तय करके पद-विहार करते हुए पूना पहुँचना था। स्वीकृति संचेती आदि तथा पंजाब महासभा के श्री टी.आर. जैन तो दे ही दी थी। पूना सम्मेलन में आने हेतु ऐसे सचिव हीरालाल जी जैन, लुधियाना संघ के अध्यक्ष श्री डॉ. शिवमुनि जी म., प्रवर्तक भंडारी श्री पदमचंदजी म. हरवंशलालजी जैन, श्री वेदप्रकाश जी जैन आदि थे। आदि गणमान्य विशिष्ट मुनिवरों का भी आग्रह रहा था कि आचार्य श्री का पत्र लेकर ये मुनि श्री को खोजते-खोजते आपश्री को पूना सम्मेलन में अवश्यमेव पधारना है। तपामंडी और रामपुरा-फूल के मध्य एक छोटे से ग्राम में पंजाब-भटिंडा से चातुर्मास करके मालेर कोटला पधारे। पहुँचे थे। वो भी ऐसे समय में जब पंजाब उग्रवाद के जहाँ उपाध्याय श्री मनोहर मुनिजी म. विराजमान थे और कारण बारूद के ढेर पर बैठा हुआ था, साहसी ही थे ये साध्वी श्री कुसुमलताजी म. की पावन निश्रा में वैराग्यवती गणमान्य सज्जन !
कुमारी सुमन की प्रव्रज्या के समारोह में सम्मिलित हुए। सुखे-समाधे...
विहार दर विहार मुनि श्री उस छोटे से ग्राम में विहार जनित थकान वहाँ से रायकोट, बरनाल, भीखी, बुढलाढ़ा, रतियां मिटा रहे थे एवं विश्रांति पा रहे थे कि उपर्युक्त सज्जनों (हरियाणा) बरवाला, हाँसी, भिवानी, चरखी दादरी, नारनौल, ने जाकर ‘मत्थएण वन्दामि' के माध्यम से महाराज श्री को इन क्षेत्रों को पावन करते हुए राजस्थान प्रान्त की ओर सचेत किया। सुखशान्ति पृच्छा के पश्चात् शिष्ट मण्डल ने
___ बढ़े। नाथों की ढाणी में उपप्रवर्तक श्री फूलचन्दजी म. आने का प्रयोजन बताते हुए आचार्य श्री का पत्र आपश्री
___ठाणा ३ से विराजमान थे, उनकी जन्म भूमि भी यही थी के कर कमलों में प्रदान किया।
और यही स्थानक का भी निर्माण हुआ था। वहाँ से नीम
का थाना, खण्डेला, हरमाड़ा, मदनगंज-किशनगढ़ होते __मुनि श्री ने पत्र को पढ़ा। पत्र में श्रमणसंघ के
हुए अजमेर पधारे। अजमेर एक सप्ताह की स्थिरता प्रवर्तक पं. रत्न श्री शुक्लचंद जी म. के श्रमण संघ के
रही। वहाँ पर प्रवर्तक श्री पन्नालालजी म. की पुण्य निर्माण एवं उसके संरक्षण के लिए प्रदान किये गये
तिथि-समारोह में सम्मिलित होने का भी शुभावसर मिला। योगदान की चर्चा का समुल्लेख था तथा पूना श्रमण संघ
इसी दिन मुनि श्री सुमनकुमार जी म.सा. की जन्म-जयंति सम्मेलन के शुभावसर पर आने का भावभीना आग्रह भी। का भी सुखद प्रसंग भी अनायास ही उपस्थित हो गया श्रद्धेय मुनिवर का हृदय आस्था और कृतज्ञता से भर उठा था।
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