Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
प्रसंग था। श्री संघ संगरूर पूरे समारोह पूर्वक महावीर नवांशहर में महासाध्वी श्री रमा जी म. के सान्निध्य में जयंति आयोजित कर रहा था। आमंत्रण पत्रिकाएं प्रकाशित एक दीक्षा होने जा रही थी। वहां का श्री संघ मालेरकोटला कराई गई थीं। श्रद्धेय चरितनायक भी श्रीसंघ की भावभीनी में गुरुदेव के पास आया और दीक्षा प्रसंग पर पदार्पण की विनति को स्वीकृत करके मुख्य उपाश्रय में पधारे। प्रार्थना की। साध्वी श्री रमा जी चाहती थीं कि उनकी
आमंत्रण पत्रिका पर ध्वजारोहण के लिए जिलाधीश शिष्या को दीक्षा पाठ श्रद्धेय सुमनमुनि जी म. अपने मुख कुंवर महेन्द्रसिंह वेदी का नाम देखकर आपका अहिंसाराधक। से प्रदान करें। संघ की प्रार्थना तथा साध्वी जी की मानस उद्वेलित बन गया। आपने संघस्थ अधिकारियों के भावना को देखते हुए गुरुदेव श्री ने स्वीकृति प्रदान कर समक्ष अपना प्रतिवाद प्रस्तुत करते हुए कहा- हमारे अहिंसा दी। ध्वज को आमिष भोजी व्यक्ति स्पर्श करे यह मुझे स्वीकार नहीं है।
प्रवर्तक श्री जी का आमंत्रण ___ संघ के समक्ष कठिन स्थिति उपस्थित हो गई।
उन्हीं दिनों श्रद्धेय पंजाब प्रवर्तक उपाध्याय 'श्रमण' पदाधिकारियों ने कहा - गुरुदेव। आमंत्रण पत्रिकाएं श्री फूलचन्द जी म. ने एक प्रतिनिधि मण्डल श्रद्धेय प्रकाशित हो चुकी हैं। कार्यक्रम को बदल पाना संभव न चरितनायक के पास मालेरकोटला भेजा। प्रतिनिधि मण्डल होगा।
आपके लुधियाना पधारने के लिए प्रवर्तक श्री जी का चरितनायक अपने विश्वास पर अटल थे – “तो इस आमंत्रण पत्र लेकर आया था। कार्यक्रम में मैं सम्मिलित न हो सकूँगा।"
आपके गुरुदेव पं. श्री महेन्द्र मुनि जी म. ने अहोभाव पर्याप्त उहापोह के बाद अन्ततः श्री संघ द्वारा कुंवर
से प्रवर्तक श्री जी का आमंत्रण स्वीकार करते हुए प्रतिनिधि महेन्द्र सिंह को दिया गया ध्वजारोहण आमंत्रण वापिस ले मण्डल को वचन दिया कि वे शीघ्र ही श्री सुमनमुनि जी लिया गया तथा श्री गुलाबराय जैन (एक्शियन बिजली । को प्रवर्तकश्री जी के चरणों में भेजेंगे। विभाग) तथा श्री रूपचन्द जी जैन एस.डी.ओ. से क्रमशः
प्रवर्तक श्री जी के चरणों में ध्वजारोहण तथा समारोह की अध्यक्षता कराई गई। ___ साधारणतः बात छोटी लगती है। पर गुरुदेव की
गुर्वाज्ञा के समक्ष प्रणत होकर श्रद्धेय चरितनायक सिद्धान्त निष्ठा और संस्कृति-सुरक्षा की भावना इस छोटी
मालेरकोटला से प्रस्थित हुए। अहमदगढ़ होते हुए लुधियाना सी बात में स्पष्ट उजागर होती है।
पधारे। पूज्य प्रवर्तक श्री जी ने बाहें फैलाकर आपका
स्वागत किया। आपने भी अपने हृदय की श्रद्धा का महावीर जयन्ति के पश्चात् श्रद्धेय गुरुदेव सुनाम, भीखी, बुढ़लाडा, रतिया, मानसा, बरनाला और रायकोट
__ अमृतकलश श्रद्धेय चरणों पर उंडेल दिया। होते हुए मालेर-कोटला पधारे। वर्ष १६८१ का वर्षावास ___पं.रत्न श्री हेमचन्द्र जी म., विद्वद्रत्न श्री रत्न मुनिजी श्रद्धेय गुरुदेव के श्री चरणों में ही किया।
म. ग्रामोद्धारक श्री क्रान्ति मुनि जी म. आदि मुनिवृन्द के वर्षावास के बाद आपके श्री चरणों में एक दीक्षा का
दर्शनों का लाभ भी प्राप्त हुआ। यह मिलन अत्यन्त मधुर
रहा। कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
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