Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
किशोर गिरधारी उत्साहपूर्वक औषधालय में दवाइयों को कूटने छानने उचित मात्रों में पूडिया बनाने का कार्य करने लगा। चूंकि उसने यति जी के पास रहते हुए भी श्री केसरी जैन औषधालय-बीकानेर में कार्य किया था अतः वह औषधियों आदि के नाम, गुण मात्रा आदि भलीभाँति जानता था । दुर्भाग्य ! औषधालय में पैसे एकत्र करने की एक पेटिका थी जिसमें चवन्नी-अठन्नी आदि एकत्र की जाती थी और लगभग अर्द्धमाह में एक ही बार खोलकर पैसे एकत्र करके जमा कर दिये जाते थे। एक दिन सहसा उस मंजूषा का ताला टूटा पाया और पैसे नदारद थे। वैद्य के संदेह की सुई का कांटा गिरधारी की ओर घूम गया। पूछा, डाँटा और चोरी का राज खुलवाने के लिए गिरधारी को पुलिस थाने में बिठा दिया। मैं बेकसूर हूँ !
पुलिस वालों ने लाते. घंसे आदि से गिरधारी पर कहर ढाया। बेरहमी दिखाई किंतु गिरधारी ने वह सब कुछ भी सहा। उसने स्पष्टतः कह दिया कि पैसे लेकर मैं कहाँ रदूंगा, किस परिचित को दूंगा, मेरा कोई ठोर नहीं, ठिकाना नहीं, मैं बेकसूर हैं। मैंने कोई चोरी नहीं की है। गिरधारी सत्य पर डटा रहा। अन्ततः पलिस-विभाग ने उसे मुक्त कर दिया। गिरधारी ने राहत की सांस ली। ___गिरधारी पुलिस के पिंड से छूट तो गया किंतु स्वयं को असहाय महसूस करने लगा, खाने-पीने की फिर से समस्या प्रारंभ हो गई।.... कुछ परिचित सज्जन मिल गये, खान-पान की व्यवस्था सम्पन्न होती रही। किंतु गिरधारी का मन.....?
गिरधारी के मस्तिष्क में बीकानेर प्रस्थान से लेकर पुलिस थाने से छूटने तक की घटनाएँ बार-बार आतीजाती रही सोचता रहा उस पर. विषयों की गहराई में डूबता रहा गिरधारी।
दुनिया क्या है?
पुलिस थाने से निकलकर गिरधारी शालीमार वाग में आया। गिरधारी ने प्रकृति के मध्य बैठकर अपने आप को सन्तुलित किया तथा कतिपय क्षण शून्य में निहारता रहा तदनंतर वह विगत दिन की स्मृतियों में खोया-सा सोचता रहा-दुनिया क्या है.....? निपट स्वार्थी...... खुदगर्जी.....इल्जाम लगाने वाली.....सुख में दुःख की बदली बरसाने वाली....। इस प्रकार दुनियाँ की स्वार्थ परायणता पर गिरधारी न जाने क्या-क्या सोचा करता।
शालीमार बाग जो कि प्राकृतिक छटा से विशालदार छायावाले वृक्षों से युक्त था, वही गिरधारी का घर बन गया। रात सीमेंट की बनी बेंचों पर सो जाता और दिन में किसी ने कुछ आग्रहवश खोने-पीने को दे दिया तो उसी को पाकर सन्तुष्ट हो जाता था। तथापि वह चिन्तित था कि इस प्रकार से जीवन-यापन कव तक होगा? पूछ बैठे यकायक
इन्ही दिनों में वहीं पर श्री शोरीलालजी जैन सियालकोट वालों से शालीमार बाग में परिभ्रमण करते हुए गिरधारी की भेंट हुई, वैद्यशाला में कार्य करने के कारण नगर के संभ्रान्त नागरिक जन गिरधारी को पहचानने लग गये थे। यकायक श्री शोरीलालजी जैन पूछ बैठे
“अरे गिरधारी तुम यहाँ? आजकल वैद्यशाला में दिखाई नहीं देते हो?" ___ “गिरधारी ने दोनों हाथ जोड़कर जैन साहब को नमस्कार किया और व्यावहारिकता निभाने के बाद कहने लगा
"हाँ, जैन साहब । आजकल शालीमार बाग ही हमारा निवास स्थान बना हुआ है। धरती मेरा घर ।...और आकाश मेरी छत।"
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