Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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'गिरधारी' महात्मा भारती जी की अनुमति लेकर शाहकोट हेतु प्रस्थित हो गया ।
मुफ़्त की रोटी कहाँ ?
गिरधारी को चलते-चलते भूख लगी, किन्तु पथ के लिए पाथेय उसके पास कहाँ था ? कुछ समय तक भूख बर्दाश्त की। जब भूख असह्य हो गई तो पंजाबी कृषकों के घर गया और कहा- मैं राहगीर हूँ, मेरे पास के पैसे समाप्त हो गये । आप कृपाकर मुझे रोटी दे दीजिये । ( वाह रे भाग्य की विडंबना.... । जीवन में धूप और छाँव का खेल देखना है तो इस चरितनायक जीवन में
मिलेगा )
पंजावी कृषकों का कथन था - भाई, मुफ्त की रोटी कहाँ है ? काम करो और रोटी खाओ। तुम्हारे हाथ-पैर तो सही सलामत है ? अरे, कोई लूला-लंगड़ा होता, अंधा- अपाहिज होता, दीन-हीन होता और इस तरह दरवाजे पर खड़ा होता तो हम स्वतः ही दयावश उसे भोजन दे देते।
...
गिरधारी के पास और क्या चारा था ? अपने पेट की आग को शान्त करने के लिए उसे खेतों में काम करना पड़ा। इस प्रकार गिरधारी काम करता और रोटी खाकर पुनः आगे के लिए चल पड़ता मेहनत करते...... रोटी पाते और चलते-चलते गिरधारी शाहकोट आ ही गया । जैनियां दे पूज कित्थेने ?
शाहकोट के मार्गों से गिरधारी अनभिज्ञ था, भ्रमण करता हुआ वह मुख्य बाजार में आ पहुँचा। कपड़े के एक व्यापारी से पूछा -
“लाला जी जैन संत किधर ठहरे हुए है?” संयोगवश दुकान के मालिक लाला अमरनाथ जी जैन थे। उन्होंने गिरधारी का परिचय और आने का प्रयोजन पूछा ; तदनंतर
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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
महावीर भवन ले गये। जैन संत यहीं विद्यमान थे ।
नीचे की मंजिल में ठीक सामने स्वाध्याय करते हुए पंडित मुनि श्री महेन्द्रकुमार जी म. के दर्शनों का सौभाग्य गिरधारी ने पाया तो ऊपरी मंजिल में पं.र. युवाचार्य श्री शुक्लचंदजी म.सा. के दर्शनों को पाकर वह निहाल हो उठा । आज का दिवस गिरधारी के लिए स्वर्णिम था | लाला जी ने गिरधारी का परिचय दिया और आने का प्रयोजन बताया तो पं. श्री शुक्लचंदजी म. की रहस्यमयी दृष्टि गिरधारी के चेहरे पर स्थित हो गई, मानो वह दृष्टि वहाँ कुछ पढ़ रही हो, आगत भविष्य का सुनहरा एक अध्याय पढ़ना था, देखना था, वह दृष्टि ने देख लिया किंतु युवाचार्य श्री का मानस तो शीघ्र ही कहीं और खो
गया।....
स्मृति-पंखी
र से आग किशोर को देखकर युवाचार्य श्री का मानस अपने बीकानेर प्रवास की स्मृति में खो गया.... । विगत समय का पंछी स्मृतियों के वातायन में अपने डैने फैलाने लगा.... आचार्य श्री जवाहरलाल जी म. जब रुग्ण थे तब उनकी सुखशांति पृच्छा हेतु श्री शुक्लचंदजी म. भीनासर / बीकानेर पधारे थे.... और उस समय आचार्य श्री कांशीरामजी म. जोधपुर प्रवास में थे तथा अस्वस्थ होने के कारण नहीं पधार सके थे।......
आई, श्रद्धा-बहार :
मासकल्पोपरान्त शाहकोट से विहार करके युवाचार्य श्री निकोदर गये । इस ग्राम में स्थानकवासी समाज का एकाकीगृह था, शेष घर श्वेतांबर मूर्तिपूजकों के थे तथापि साम्प्रदायिक सद्भाव का माहौल था । लाला श्री दौलतरामजी युवाचार्य श्री के अनन्य भक्त थे । गुरुदेव श्री का आगमन क्या हुआ निकोदर में मानो लालाजी के रोम-रोम में श्रद्धा की बहार आ गई ।
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