Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
जान नहीं-पहचान नहीं और आचार्य श्री की अनुमति भी बुलाया था। अश्वों को शृंगार-विभूषित किया गया। नहीं।" विरादरी ने कहा- “आप यह किस आधार पर । बड़ी बन्दोली एवं अभिनिष्क्रमण महायात्रा धूमधाम से कह रहे है?"
निकाली गई। दीक्षा विषयक गीत व नारों से साढोरा का “आधार! आधार!! आधार!!! मैं अभी कुछ दिनों
जनपथ गूंज उठा। पूर्व ही आचार्य श्री के दर्शन करके आया हूँ, वहाँ दीक्षा स्थानक/सभा भवन के सामने ही विशाल पंडाल विषयक कोई चर्चा ही नहीं है। अतः आप यह दीक्षा निर्मित किया गया। दीक्षा की पूर्व विधि हिन्दी प्राईमरी स्थगित कर दीजिये।” श्री विलायतीराम ने कहा ।......रंग स्कूल में सम्पन्न हुई। आज भी वह स्कूल सरस्वती देवी में भंग कर ही दिया विलायतीरामजी ने, तथापि साढोरा जैन विद्यालय का अभिन्न अंग है। सभा मण्डल के वरिष्ठ सदस्य आचार्य श्री की सेवा में
पावन भागवती प्रव्रज्या लुधियाना पहुँचे । एवं अपना विनम्र निवेदन प्रस्तुत किया। आचार्य श्री ने कहा-“दीक्षानुमति एवं तद्विषयक लिखित
___ पावन दीक्षा की शुभ वेला आसोज शुक्ला त्रयोदशी पत्र मैंने युवाचार्य श्री के पत्र के प्रत्युत्तर के रूप में पूर्व ही
के दिन त्रि-चतुः सहस्र जनमेदिनी के बीच मुमुक्षु गिरधारी में दे दिया था फिर भी मेरी स्वीकृति है। आप दीक्षा की
सांसारिक परिधानों को त्याग कर, सिर से मुंडित तथा मन तैयारियाँ करो। साढोरा संघ में नया प्राण फूंक दिया
से भी मुंडित हो श्वेतवस्त्रों से सुसज्जित होकर गुरुचरणों में आचार्यवर्य श्री की पीयूषपूर्णा वाक्धारा ने। हर्ष-विभोर उपस्थित हो गया। जैन भागवती दीक्षा का पाठ श्रद्धेय हो वे साढोरा की ओर-प्रस्थित हुए।
श्री हर्षचन्द्रजी महाराज की पावन निश्रा व अन्य संतों की
उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। दीक्षा पाठ प्रदान करने के सनिकट आया दीक्षा-दिवस
पश्चात् जय-जयकारों से सभा मंडप गूंज उठा। बड़ी वैरागी के हृदय में अपार हर्ष था। संघ में भी दीक्षा भी चातुर्मास होने के कारण साढोरा में ही सम्पन्न प्रसन्नता की लहर छा गई। मुनिवरों का मानस तो प्रसन्न हुई। नवदीक्षित मुनि को विद्वद्वर्य श्री महेन्द्रकुमारजी महाराज था ही।
का शिष्य घोषित किया गया। श्रीमती श्री युत मदनलालजी जैन सुपुत्र श्री मक्खनलाल
गिरधारी से मुनि श्री सुमन कुमार जी जैन दीक्षार्थी के धर्म के माता-पिता बने। (आज भी उनके परिवार में डॉ. अमरचन्द्रजी जैन जो एक ख्याति
नाम रखा नवदीक्षित मुनि का - मुनि श्री सुमनकुमार! प्राप्त विद्वान् है तथा मदनलालजी के पुत्र विजयराजजी दीक्षोपरान्त मुनि श्री सुमनकुमार जी म. का अध्यापन राजकुमार जी आदि साढोरा में ही रहते हैं) परिवार में साढोरा में ही प्रारम्भ हो गया। पण्डित श्री विद्यानन्दजी खुशियाँ छा गई। धर्म मेला आयोजित होने लगा। संघ शास्त्री (राजकीय विद्यालय के शिक्षक) से अध्ययन और ने भी दीक्षा-विषयक समुचित तैयारियाँ प्रारंभ कर दी, लघुसिद्धान्त कौमुदी का प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त करने लगे। आबाल, वृद्धजनों ने दीक्षा महोत्सव को अपूर्व बनाने का
. चातुर्मासोपरान्त वहाँ से विहार हुआ। साढोरा का ठान लिया। दिन-प्रतिदिन दीक्षा-दिवस निकट आने लगा।
जन समुदाय मुनिराजों को विदा देने अगले विश्राम स्थल सभा संघ ने अपने ग्राम के निकट ही २० माईल की तक आये, सजल नेत्रों से मुनिवरों की मांगलिक श्रवण दूरी पर नाहन रियासत (हिमाचल) से सवारी लवाजमा की और साढोरा की ओर चल पड़े।
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