Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
रूप में जीवन जीया है। कांटों के बीच रहकर पुष्प जैसे मुदित हृदय से गाते हैं, गुरु तव गुणगान । कोमल रहता है, वैसे ही लोक में रहने वालों के बीच निष्ठावान श्रमण संघ के हो संत महान । उन्होंने पुष्प यानि समुन की तरह रहे हैं, अतः आपका जीतो सारे कर्मरिपु, पावो सुख महान ।। नाम सुमनमुनि सार्थकता का प्रतीक भी है।
'रत्नगर्भा वसुन्धरा' भारत भूमि अनेक अनमोल रत्नों ___ अल्प आयु में मुंडित होकर संसारी वैभवों को त्यागा की खान है। अनादि अनंत कालचक्र में समय-समय पर
और भोग की जगह त्याग को अपनाया। जीवन जीना अनेकानेक महान् पुरुषों का जन्म इस धरा पर हुआ है। भी एक कला है, जन्म और मृत्यु के बीच में जो समय यही कारण है कि भारत की समुज्ज्वल गौरवगाथा संसार रहता है, उसमें कई कार्य किये जाते है, एक-दूसरे के सुख | में सर्वोपरि है। असमान्य व्यक्तित्व के धनी, इतिहास दुःख में काम आते है। अपनी भलाई सभी चाहते है, केसरी, श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री, जिन शासन के गौरव, सुखी रहना भी सभी चाहते है। इससे भी बढकर वह परमोपकारी परमपूज्य श्री सुमन मुनि जी महाराज का होता है जो औरों को सुखी करना चाहता है। सचमुच में | संयमी जीवन भी ऐसी ही महान आत्माओं की श्रेणी में दूसरों की भलाई चाहने वालों को महापुरुष कहा जाता रख दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। है। पूज्य श्री सुमनकुमारजी महाराज भी स्वकल्याण करते
बचपन में ही माता-पिता का वियोग हुआ। अनाथ हुवे औरों को भी जिनवाणी का श्रवण कराकर मक्ति का
बन गए। किंतु श्री रुकमांजी जी की शरण प्राप्ति से मार्ग बतलाते हुए, इस संसार समुद्र से तारते है।
अनाथ से सनाथ बन गए। संसार की असारता, जीवन - पूज्य श्री सुमनकुमारजी महाराज ने अपने कठोर की क्षण भंगुरता ने आपको आध्यात्मिक जीवन की ओर संयम को ४६ वर्षों के दीर्घकाल को सफलता से पूर्ण आकर्षित कर लिया। आत्मोन्नति के प्रशस्त पथ पर आप किया है, इस अवसर पर आपको बधाई देते हुवे श्रद्धापूर्वक अग्रसर हो गए। सद्संगति व सद् प्रेरणा से आप 'गिरधर' नमन करती हूँ और आपका भावी जीवन यशस्वी हो, से सुमन बन गए। स्वर्गीय प्रवर्तक पाण्डित रत्न श्री तेजस्वी हो, ऐसी कामना करते हुए,
शुक्ल चन्द्र जी म. की 'शुक्ल धारा' व सरलमूर्ति शान्तहार्दिक अभिनंदन सहित!
मना स्व. श्री महेन्द्र कुमार जी म. की गुण महक से आप
का जीवन भी चमक उठा।..... और सुमन-सुमन ही नहीं, के. पिस्तादेवी बोहरा ।
सुरभित हो गया। सदस्य, अखिल भारतीय श्वे. स्था. जैन कान्फ्रेन्स. __महिला शाखा, मैसूर
__ आपके हृदय की सरलता, मन की निर्मलता एवं कार्य के प्रति जागरुकता ने जन-जन को आकर्षित किया
है। आप श्री के सर्वप्रथम दर्शन का सौभाग्य मुझे पुणे श्रमण संघ की शान
(महाराष्ट्र) में प्राप्त हुआ। उस समय श्रमणसंघ का सम्मेलन
आयोजित हुआ था, जिसका संचालन करना व शांति सु-मन से समर्पित है, जन कल्याण में। बनाए रखना अति कठिन कार्य था। वह कार्य भी आपने महावीर की वाणी फैलाते, इस जहान में।
शान्तिरक्षक के रूप में सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। आप नत मस्तक होते हैं हम सब चरणों मे....। उसके आधार स्तंभ बने रहे।
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