Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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पद व प्रशंसा की आशा रखे बिना अपना उत्तरदायित्व पूर्ण करने में संलग्न रहते हैं । आप में निर्भीकता है। सदैव न्याय-संगत पक्ष का समर्थन करना आपकी अनूठी विशेषता है। संघर्ष झेलने में तथा समाज को संगठित बनाने में आप विशेष पुरुषार्थ करते हैं । वस्तुतः आपने अपने सद्-गुणों से सभी का हृदय जीत लिया है।
दक्षिण भारत की 'काशी' कोप्पल में आपश्री जी को निकटता से देखा । आपने अल्प समय एवं चन्द शब्दों में हमें सुंदर बोध दिया जिसे श्रवण कर हमारी आत्मा पुलकित हो उठी। आप अपने विचार स्पष्टता से व्यक्त करते हैं जिसे हर व्यक्ति ग्रहण कर लेता है। आपके प्रभावी व्यक्तित्व की छटा भी सम्मोहक है । साहित्य - क्षेत्र में भी आपका विशिष्ट स्थान है । इतिहास में आपको विशेष अभिरुचि है । 'जैन इतिहास' का आपको गहन ज्ञान है । यह भी अत्यंत हर्ष का विषय है कि हम आपश्री के प्रव्रज्या / दीक्षा दिवस की स्वर्णिम वेला एवं अभिनन्दन के रूप में मना रहे हैं। आप यशस्वी - दीर्घायु हों, यही अन्तर्मानस की कामना ।
सौ. शकुन्तला मेहता बैंगलोर
मेरे विचार
जयइ जगजीवजोणी, वियाणओ जगगुरु जगाणंदो । जगणाहो जग बन्धु, जयइ जगप्पियामहो भयवं । ।
गुरुवर श्री सुमनमुनि जी म. के व्यक्तित्व पर लिखना मुश्किल हो रहा है क्योंकि सच्चे भावों को दर्शाने के लिए उपलब्ध शब्दकोष अपर्याप्त लग रहा है। मुझ जैसे अल्पज्ञ के लिए उनके व्यक्तित्व का अंकन करना आसान नहीं है । औपचारिकता हेतु कुछ शब्द लिखना अलग बात है । किसी महान् व्यक्तित्व को शब्दों में ढालना एक अलग बात है। लाख प्रयत्नों के बावजूद भी अनेक तथ्य
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वंदन - अभिनंदन !
अछूते ही रह जाते हैं। ऐसे में संक्षिप्तता का बहना काम आ ही जाता है ।
मेरा आपश्री से सम्पर्क इतना अल्प है कि निवन्ध लिखने की हिम्मत कैसे हुई ? यह भी एक आश्चर्य है । सर्वप्रथम गुरुदेव के दर्शन दोड्डवालापुर के चातुर्मास में किए उसी दिन आपश्री का प्रवचन भी सुना। आपने एक विषय लिया, उसकी विस्तृत व्याख्या भी की। प्रवचन में एक भी शब्द ऐसा नहीं था जिससे श्रोता के ध्यान की डोर टूटे । आगम के गूढ़ रहस्य को जिस सरलता से आप समझा रहे थे, मुझे लगा कि ज्ञान की गंगा सरलता से प्रवाहित होकर मन्द मन्द रूप से मस्तिष्क में आसानी से प्रविष्ट हो रही है। ऐसे अलौकिक क्षणों का शब्दों से वर्णन करना संभव प्रतीत नहीं होता ।
आप श्री के व्यवहार में विपरीतता का अनुभव तब होता है जब एक तरफ भोले भाले श्रावकों को समझाते हैं तो लगता है कि वात्सल्य एवं ममत्व की बाढ़ सी आ गई है और दूसरी तरफ धूर्त और चापलूसों को ऐसा अनुभव होता है, जैसे किसी चट्टान से टकरा गए हों। आप श्री ने चापलूसों को कभी प्रोत्साहन नहीं दिया। कपर्टी और धूर्त को जैसे आप दूर से ही भांप लेते है। आप श्री में नैतिकता, निष्पक्षता, निडरता, निर्मोहता, निष्कपटता आदि अनेक स्वभावों का संमिश्रित भण्डार विद्यमान है ।
जहा दुम्मस्स पुष्फेसु, भमरो आवियइ रसं । नय पुष्कं किलामेइ, सो य पीणेइ अप्पयं । । एमे समणा मुत्ता जे लोए संति साहूणो । विहंगमा व पुप्फेसु दाणभत्तेसणे रया । ।
आपश्री का विचार है कि आगमों की कोरी तोता रट मात्र ही काफी नहीं है। आचरण आवश्यक है और समझे बिना भी आचरण अंध विश्वास की तरह है । अतः ज्ञान की महती आवश्यकता है । आपश्री ने नैतिकता का हनन और अन्याय को कभी नहीं सहा । अनुचितता चाहे बड़े से बड़े श्रमण से हुइ हो चाहे प्रभावशाली श्रावक से
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