Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
चेन्नई
मद्रास टी. नगर एवं साहूकार पेट चातुर्मास के दौरान ज्ञान पिपासु व्यक्तियों एवं जिज्ञासुओं, विद्वद्जनों एवं मुझे इनका सामीप्य, प्रवचन-श्रवण का तथा धर्मचर्चा का शोधार्थियों के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त ही लाभप्रद सिद्ध सुअवसर प्राप्त हुआ जिसे मैं अपना परम सौभाग्य समझता होगा।
आराध्य गुरुदेवश्री के श्रीचरणों में विनत होते हुए साधु का जीवन-दर्शन उसके प्रवचनों में प्रकट होता | मैं उनकी दीर्घायु एवं स्वस्थता की मंगलकामना करता हूँ है। मुनि श्री अपने प्रवचनों में विभिन्न उदाहरण प्रस्तुत तथा यही शुभेच्छा करता हूं कि आपका जीवन जन-जन कर उन का जो विवेचन एवं विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं, के कल्याण के लिए सदैव संलग्न रहे। पुनः चरणारविन्दों टिप्पणी देते हैं, भावार्थ बतलाते हैं वे अत्यंत प्रभावशाली,
में प्रणति। मार्मिक एवं बोध प्रद होते हैं। वस्तुतः उन टिप्पणियों में शुभेच्छु - ही उनकी विद्वत्ता, दार्शनिकता, मौलिकता एवं भाव गांभीर्य
0 एस. मदनलाल गुन्देचा बी.कॉम एफ.सी.ए. प्रतिबिम्बित होता है।
भूतपूर्व चेयरमेन, साउथ इंडिया हायर पर्चेज एसोसियेशन, मुनिश्री मूलतः ज्ञानी एवं दार्शनिक महापुरुष हैं। इनके प्रवचन श्रवण करते समय ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी चिन्तन दृष्टि अनन्त में समा चुकी है। विश्व के |जिनवाणी के सफल जादूगर समरत प्राणी सुख शान्ति एवं स्नेहपूर्वक रहें यही इनकी सदैव मनोकामना रहती है।
परमपूज्य श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री गुरुदेव श्री बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी मुनिश्री के व्यक्तित्व एवं | सुमनमुनि जी महाराज के चरणों में वन्दन ! विचारों को शब्दों की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। इस महान व्यक्ति के व्यक्तित्व पर लिखना आकाश कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जो केवल तात्कालिक प्रभावित को छूने की कल्पना करना होगा, भुवन भास्कर को दीपक करते हैं और कुछेक व्यक्तित्व का प्रभाव स्थायी होता दिखाना होगा, जल में दिखाई दे रहे चन्द्र के प्रतिबिम्ब को है। कालान्तर में मुनिश्री के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते पकड़ना होगा, और उफनती लहरों के मध्य सागर को समय सन्त कबीर की यह आध्यात्मिक पंक्ति इतिहासकार
बाहों से तैरने की इच्छा करना होगा। फिर भी गुरुदेव के दोहराएगा
व्यक्तित्व का मेरे मन में अटल स्वरूप तथा स्नेह व भक्ति
की उद्दाम सरिता का प्रवाह इतना तेज है कि मुझे कुछ "ज्यों की त्यों धर दीनि चदरिया"
लिखना ही होगा। अर्थात् एक सन्त महापुरुष जीवन रूपी धवल चादर
___मेरे प्रगाढ़ पुण्य के संयोग से फूलों की सुरम्य नगरी लेकर इस धरती पर अवतरित हुआ, जीवन पर्यन्त उसने
मैसूर में ऐसे महामनीषि गुरुदेव का सान्निध्य मिला तथा मानवता की एकनिष्ठ सेवा की और अन्त में अपनी वह
आपके प्रवचन सुने। आपके ओजस्वी व्याख्यान जन-जन अमानत बेदाग ज्यों की त्यों समर्पित कर गया।
को लुभाते हैं। भाषा बहुत ही मधुर एवं सरल होने से समारोह और उत्सव तो आयोजित होते ही रहते जैन-अजैन, शिक्षित अशिक्षित भी आपके प्रवचन सुनकर हैं। किंतु मूल्य स्थायी मूल्य होता है। जैन दर्शन विषयक | अपने आप को लाभान्वित मानते हैं। आप निस्पृही,
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