Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
हमारे क्षेत्र को अपनी चरणरज से पावन किया है। यह | चातुर्मास मेरे लिए अविस्मरणीय है और रहेगा। मुनिश्री हमारा परम सौभाग्य है।
जी के व्याख्यान देने की विशेष शैली, कर्ण प्रिय मधुर आप अपने संयमी जीवन के पचासवें वर्ष में प्रवेश
कण्ठ, स्पष्टवादिता को लिए हुए उनके व्याख्यान सहज ही कर रहे हैं। इस सुअवसर पर मैं अपनी ओर से. अपने
सभी को अपनी ओर आकर्षित करते थे। दूर-दूर से परिवार की ओर से तथा बुढ़लाडा श्री संघ की ओर से
श्रावक-श्राविकाएँ आपका प्रवचन सुनने के लिए आते आपका शत-शत अभिनन्दन करता हूँ।
थे। विशाल जन समुदाय से प्रभावित होकर चातुर्मास
समिति ने हर रविवार को गौतम-प्रसादी का आयोजन बनारसी दास जैन
करवाया। मुनिश्री ने प्रेरणा देकर स्थानक को नया स्वरूप अध्यक्ष- एस.एस. जैन सभा, पुरानी मण्डी बुढ़लाडा, (पंजाब)
दिया। एक घटना को मैं भूल नहीं सकता। श्री संपतराज जी कीमती का धर्मनिष्ठ परिवार धर्म और समाज से कटता
जा रहा था। लोग उन्हें भूलने लगे थे, मुनिश्री जी ने उन्हें “अविस्मरणीय हैं और रहेंगे"
पुनः धर्म एवं समाज की ओर आकृष्ट किया। उनके पुत्रों परम पूज्य श्रमणसंघ सलाहकार मन्त्री, मुनि श्री सुमन
के मन में धर्म एवं सेवा की ऐसी लगन लगाई कि श्री कुमार जी “श्रमण" उत्तरभारत को अपने मधुर कण्ठ
राजेन्द्र कीमती हैदराबाद श्री संघ के मंत्री बने। काचीगुडा द्वारा, धर्म अमृत से सिंचने के पश्चात दक्षिण की ओर
में नया स्थानक बनवाने में पूर्ण सहयोग दिया। आज रुख बनाया। विचरण करते हुए १६८६ में ऐतिहासिक
उसके संरक्षक भी हैं। इस प्रकार समाज के सभी नवयुवकों नगरी हैदराबाद पहुँचे। हैदराबाद जो कुली कुतुबशाही
को धर्म को ओर आकृष्ट किया। सरलता एवं मधुरता से तहजीब की शान एवं निज़ाम सल्तनत की राजधानी रही
उन्हें व्यसनों से दूर रहने को प्रेरणा दी। है। इतिहास में हैदराबाद इन्द्रधनुषी सतरंगी संस्कृति एवं | मुझे मेरे मंत्रीकाल में कई संकटों एवं विवादों का सभ्यता के कारण आकर्षण का केन्द्र रहा है। इस हैदराबाद समाना करना पड़ा, ऐसे में श्री सुमनमुनिजी का श्रावकनगरी में भी वहां का पुराना शहर अपने आप में महत्व वात्सल्य, एवं मार्गदर्शन एवं सहयोग को मैं कभी भूल रखता है। उसी पुराने शहर के बीचों बीच डबीरपुरा में नहीं सकता। मुनि श्री जी की दृष्टि में उच्चवर्गीय श्रावक, मुनिश्री जी का चातुर्मास भी अपने आप में अविस्मरणीय मध्यम वर्गीय श्रावक एवं निम्न वर्गीय श्रावक में कोई है। कई वर्षों के अन्तराल के पश्चात् मुनिश्री जी के भेदभाव नहीं था। वे हर एक से हर समय मिलने के लिए चातुर्मास से स्थानक की शोभा में चार चांद लग गए। उपलब्ध रहते थे। यही उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी चारों ओर से श्रावकों के आगमन से वीरान बस्ती में जो उन्हें अन्यों से अलग रखती थी। श्री सुमनमुनि जी, चहल-पहल आ गई।
| निर्भीक, दृढ़संकल्प, सिद्धान्तवादी एवं समन्वयवादी इतिहास की हर घटना वर्तमान से अतीत में जा कर
के धनी हैं। श्री सुमनमुनि जी का जीवन-चरित्र अपने नाम विस्मृति के गहन अन्धकार में विलुप्त हो जाती है। परन्तु
एवं साधुत्व को सार्थक करता हुआ एक निर्लिप्त सुगन्धित यह भी सत्य है कि इतिहास की प्रत्येक घटना मानव के
पुष्प की तरह सदा धर्म एवं ज्ञान की खुशबू बिखेरता सजग मन एवं मस्तिष्क पर एक बोध-पाठ अवश्य अंकित
रहेगा। कर जाती है जिसे मनुष्य जीवन में कभी नहीं भूल
मोतीलाल जैन बुरड सकता। इसी क्रम में श्री सुमनमुनि जी का डवीरपुरा का |
मंत्री-हैदराबाद श्री संघ (१६८८-१६८६)
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