Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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श्रमण परंपरा का इतिहास
आपने अनेक वर्षों तक गुरुदेव के साथ रहकर तीन प्रशिष्य हैं - परम सेवाभावी श्री सुमन्तभद्र मुनि धर्मप्रचार किया। पं. श्री राजेन्द्र मुनिजी म. एवं व्याख्यान जी म., सरलात्मा श्री गुणभद्र मुनि जी महाराज एवं वाचस्पति श्री सुरेन्द्र मुनि जी म. के साथ भी आपने पर्याप्त शान्तमूर्ति श्री लाभमुनि जी म.। विचरण किया।
___ एक शिष्यानुशिष्य (पौत्र शिष्य) हैं- स्वाध्याय शील अपने जीवन काल के अन्तिम नौ वर्ष अस्वस्थता के श्री प्रवीण मनि जी म.। कारण आपने पंजाब के मालेरकोटला शहर में बिताए। लॅड प्रैशर और हार्ट की तकलीफ होते हुए भी आप
ये सभी मुनिराज संयमनिष्ठ, स्वाध्यायशील और अत्यन्त समाधि भाव में लीन रहते थे। स्वयं बीमार होते आत्माथा हा हुए भी यदि किसी श्रावक या श्राविका की बीमारी की पूज्य गुरुदेव श्री महेन्द्र कुमार जी म. के वर्षावामों सूचना पाते तो तत्काल उसके घर पहुंचकर उसे मंगलपाठ की तालिकाःसुना कर आते थे। उपाश्रय में एक बच्चा भी आकर मंगलपाठ सुनाने को कहता तो आप पूरे भाव से उसे
ई.सन् चातुर्मास स्थाल ई.सन चातुर्मास स्थल मंगलपाठ सुनाते थे।
१६३७ हांसी
१६६० कपूरथला
१६३८ जीरा १६६१ नवांशहर ___ आप के एक ही सुशिष्य हैं-श्री सुमन मुनि जी म.।।
१६३६ उदयपुर १९६२ संगरूर श्री सुमन मुनि जी महाराज ने अनेक वर्षों तक आपकी
१६४० अमृतसर १६६३ रायकोट सेवा आराधना की। आपकी इस महत्कृति से वर्तमान में १६४१ स्यालकोट १६६४ जयपुर श्रीसंघ लाभान्वित हो रहा है।
१६४२ स्यालकोट
१६६५ अलवर १६४३ रायकोट
१९६६ पटियाला महाप्रयाण का पूर्वाभास
१६४४ नवांशहर १६६७ जालंधर __ अपने महाप्रयाण से कुछ मास पूर्व ही आपको इसका १६४५ लाहौर १९६८ रायकोट आभास हो गया था। आपने अपने सुशिष्य श्री सुमन मुनि १६४६ रावल पिंडी १६६६ अम्बाला जी म. से स्पष्ट कह दिया था - मुनि! अब तू एक-दो शिष्य १६४७ रावलपिंडी। १६७० धुरी बना ले। मेरी विदायी की वेला सन्निकट है।
१६४८ रायकोट १६७१ मालेरकोटला
- १६४६ बलाचौर १६७२ रायकोट हुआ भी वही। कुछ ही मास बाद सन् १६८२ के
१६५० बंगा
१६७३ बलाचोर वर्षावास में संवत्सरी के आठ दिन बाद आप समाधि
१९५१ शाहकोट १६७४ मालेरकोटला पूर्वक महाप्रयाण कर गए। आपके स्वर्गगमन से जिनशासन
१६५२ सोजतसिटी १६७५ एक सच्चे आत्मार्थी मुनि और अध्यात्मयोगी महापुरुष से १६५३ दिल्ली १६७६ वंचित हो गया।
१६५४ जालंधरशहर १६७७ आपका शिष्य परिवार निम्नोक्त है -
१६५५ भटिण्डा १६७८
१६५६ जोधपुर १९७६ आपके एक शिष्य हैं - श्रमणसंघीय सलाहकार, १६५७ कान्धला १६८० मंत्री, उपप्रवर्तक श्री मुनि सुमनकुमार जी महाराज श्रमण। १६५८ चरखीदादरी १६८१
(इनका जीवन वृत्त सर्वतोमुखी व्यक्तित्व के अन्तर्गत पढ़िए।) १६५६ सुनाम १९८२
| श्री महेन्द्र कुमार जी म. संक्षिप्त जीवन झांकी
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