Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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श्रमण परंपरा का इतिहास __ श्री सुभाष मुनि जी महाराज ऐसी वीरांगना मां के पक्ष - दोनों पक्षों से अनुज हैं। पुत्र हैं। ६ मई १६७५ को नाभा (पंजाब) में दीक्षित
आप मधुर गायक, प्रवचन पटु और विद्याविनोदी होकर आप संयम पथ पर बढ़े। जैन जैनेतर दर्शनों का
मुनिराज हैं। आपको अर्बन एस्टेट करनाल के चातुर्मास अध्ययन किया। प्रवचन प्रवीणता हस्तगत की। आप
में 'प्रवचन-दिवाकर' की उपाधि से सम्मानित किया गया। अपने संयमीय जीवन के पच्चीस वर्ष पूर्ण कर चुके हैं।
अग्रज के चरण चिह्नों पर चलते हुए स्व-पर कल्याण रत सामाजिक बुराइयों के उच्छेदन और जनकल्याण के महान् । कार्यों में आप अहर्निश संलग्न रहते हैं।
(३) श्री संजय मुनि जी महाराज (२) श्री सुधीर मुनिजी महाराज
आप पूज्यवर्य, युवामनीषी श्री सुभाष मुनि जी महाराज आप पूज्यवर्य व्याख्यान वाचस्पति श्री सुरेन्द्र मुनि के शिष्य तथा व्याख्यान वाचस्पति श्री सुरेन्द्र मुनि जी जी महाराज के द्वितीय शिष्य रत्न हैं। आपका जन्म महाराज के प्रशिष्य है। दिनांक २०-४-६६ को मेरठ, उत्तरप्रदेश में हुआ। श्री आप सेवाभावी, अध्ययनशील और संयमनिष्ठ मुनिराज सुभाष मुनि जी महाराज के आप संसार पक्ष तथा मुनि हैं।
जो भोग से योग की ओर, राग से विराग की ओर मन को मोड़ने में समर्थ है तथा आत्मा और परमात्मा के साक्षात्कार का मार्गदर्शन करता हो, वही शास्त्र है।
ज्ञान के नेत्र खोलो, ज्ञान के नेत्र खोले बिना तुम्हें कोई चीज मालूम नहीं होगी, केवल वाणी के गुलाम मत बनो, वाणी का अहंकार मत करो।
जव-जब संत पुरुषों का सम्पर्क/सत्संग हुआ है व्यक्ति कुटेवों/बुरी आदतों से मुक्त हो गया।
हर व्यक्ति मन से तो चिंतन करता ही रहता है किन्तु जाग्रत अवस्था का चिन्तन/सोच सम्यक् होता है। सुप्तावस्था-प्रमादवश होने से चिन्तन भी सम्यक नहीं होता।
ऊँचे आसन पर बैठने से गौरव प्राप्त नहीं होता। गुण से ही गौरव की प्राप्ति होती है। महल के शिखर पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं बन जाता।
- सुमन वचनामृत
| पंजाब श्रमणी परंपरा
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