Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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श्रमण परंपरा का इतिहास
हरिदास जी महाराज की आप समकालीन थीं। क्योंकि (४) अनुशास्ता साध्वी श्री खेमाजी श्री हरिदास जी महाराज अनुमानतः १७३० में अहमदाबाद आप रोड़ का मुहाना (रोहतक-हरियाणा) गांव की से पुनः पंजाब में पधारे थे।
थीं। आपकी माता का नाम जीवा देवी था। भरे-पूरे आपकी एक शिष्या का नाम प्राप्त होता है - श्री
गार्हस्थ्य को छोड़कर वि.स. १८०० में आपने आर्या वगताजी। आपकी समकालीन कुछ अन्य साध्वियों -
सीता जी से दीक्षा ली। आप अपने समयकी संयमी, श्री मीना जी, श्री ककोजी के नाम भी प्राप्त होते हैं।
अनुशासिका और कुशल प्रचारिका साध्वी थी। अनेक
साध्वियों की आप प्रमुखा थीं। संघ में आपका विशेष (२) श्री वगता जी आर्या
गौरव था। आपका जन्म स्थान अज्ञात है। वैसे आपकी माता दया जी, मंगला जी, फूलांजी-पूलांजी, सदाकुंवरजी का नाम श्रीमती वेगा और पिता का नाम श्रीमान रलसिंह आदि आपकी साध्वियां थीं। आपकी दो शिष्याएं हुईं - था। जाति से आप संभवतः राजपूत किसान थीं। पंजाब श्री वेनती जी और श्री सजना जी। में आपका अच्छा प्रभाव प्रतीत होता है क्योंकि धनी,
साध्वी खेमाजी ने अपने जीवन में नैतिक धर्म का मानी परिवारों की कई पुत्रियां और पुत्रवधुएं आपके
खूब प्रचार किया। आपने ढ़ाई सौ जोड़ों को ब्रह्मचर्य का चरणों में दीक्षित हुई थीं।
नियम दिलाया था। आप प्रभाविका साध्वी थीं। आपकी कई साध्वियां थीं - मीना जी, ककोजी आर्या फलां जी - दया जी, फूलो जी आदि । किन्तु शिष्या के रूप में श्री
आपके लिए 'पूलांजी' नाम भी लिखा हुआ मिलता सीताजी का ही नाम प्राप्त होता है। आपके संघ में सुजानी ही माती टया जी की शिष्या थीं। साध्वी वषतांजी नाम की एक आर्या हुई हैं जो कुशल लिपिक थीं। उनका ।
आपकी शिष्या थी। पंचेवर ग्राम में सोमजी ऋषि की चार लिखा हुआ ४३ पृष्ठों का “निशीथ सूत्र टब्बार्थ” जो
सम्प्रदायों का सम्मेलन १८१० में हुआ था। उक्त सम्मेलन १७६५ में लिखा गया था, प्राप्त होता है।
में आप आचार्य हरिदास जी महाराज के साध्वी संघ की आर्या वगता जी का देहावसान १७८० वि.सं. में प्रमुखा आर्या खेमा जी की प्रतिनिधि के रूप में कई हुआ।
साध्वियों के साथ सम्मिलित हुई थीं। आप अपने समय
की महान् धर्म प्रभाविका साध्वी थी। संभवतः आप (३) धर्म प्रचारिका सीता जी आर्या
१८७७ तक विद्यमान थीं। शेष इतिवृत्त अनुपलब्ध है। आप अमृतसर के जौहरी परिवार की पुत्री थीं। (५) आर्या सजना जीआपकी माता अमृता देवी धर्म प्राण सन्नारी थीं। उन्हीं
____ आप खेमाजी की शिष्या थीं। आप देहली की रहने की प्रेरणा से वि.सं. १७५५ में आपने दीक्षा ग्रहण की वाली थीं तथा जाति से राजपूत थीं। वि.सं. १८६५ में थी। आप बालब्रह्मचारिणी साध्वी थीं तथा ओजस्विनी आपकी दीक्षा हुई थीं। आपकी दो शिष्याएं थीं- श्री वक्त्री थीं। आपके उपदेशों से सहस्रों लोगों ने मद्य मांस ।
ज्ञानाजी और श्री शेरांजी। ये दोनों ही सुयोग्य साध्वियां का त्याग किया। आपका देहावसान काल अज्ञात है।
थीं।
| पंजाब श्रमणी परंपरा
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