Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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श्रमण परंपरा का इतिहास
श्री धनदेवी जी म. की दो शिष्याएं हैं- (१) श्री गुणमालाजी (फरीदकोटी) (२) श्री सौभाग्यवती महाराज। श्री सौभाग्यवती जी म. की दो शिष्याएं हैं - (१) श्री सीताजी म. एवं श्री कौशल्या जी म.।
श्री सीताजी की शिष्या श्री सावित्री जी एवं श्री महेन्द्रीजी हैं। श्री सावित्री जी म. की दो शिष्याएं हैं - (१) श्री शिमला जी (२) श्री शिक्षा कुमारी जी (वीनाजी म.)
श्री महेन्द्री जी की एक शिष्या हैं - श्री जनक कुमारी जी म. । अन्य यथा स्थान देखें।
श्री कौशल्या जी म. की तीन शिष्याएं हैं - (१) श्री विमला कुमारी जी (२) श्री प्रमिला कुमारी जी (३) श्री निर्मला जी म.। इनकी सात प्रशिष्याएं भी हैं।
(घ) तपस्विनी श्री माणकदेवी जी म. की शिष्याजयवंति जी म. थी। उनकी शिष्या श्री प्रकाशवती जी तथा उनकी श्री वल्लभवती जी म. थीं।
(ङ) स्थविरा साध्वी रत्न श्री रत्नदेवी जी म. की एक शिष्या थीं - श्री विनयवंती जी म.। इनकी दो शिष्याएं थीं - (१) श्री सत्यवती जी म. (२) श्री अमरावती जी म.। . श्री सत्यवती जी म. की तीन शिष्याएं हुईं - (१) श्री रमादेवी जी (२) श्री राम प्यारी जी (३) श्री सुभाषवती जी। इनमें से द्वितीया साध्वी की दुर्गा देवी जी थी। श्री सुभाषवती जी म. की शिष्या थीं- विश्रुत साध्वी श्री प्रवेश कुमारी जी म.। इनकी पांच शिष्याएं हुईं-(१) तपाचार्य श्री मोहनमाला जी म. (२) श्री शांति जी (३) श्री पवित्र ज्योति जी म. (४) श्री मंजु ज्योति जी म. (५) मधुर कण्ठ, तुपस्विनी श्री पूजा जी म. । इनकी एक दर्जन से अधिक प्रशिष्याएं हैं। श्री अमरावती जी की दो शिष्याएं हैं - श्री सुदेश कुमार जी एवं श्री प्रवीण कमारी जी।
(च) श्री ईश्वरा दीवी जी म. की चार शिष्याएं हुईं --(१) श्री पार्श्ववती जी (२) श्री जिनेश्वरी देवी जी (३) श्री प्रभावती जी (४) श्री आशा देवी जी।
श्री पार्वती जी की दो शिष्याएं हुईं - (१) स्थविरा श्री प्रियावती जी म. (२) विदुषी श्री स्वर्णकान्ता जी महाराज! श्री स्वर्णकान्ताजी का विशाल शिष्या-प्रशिष्या परिवार है। (देखें उनका अभिनन्दन ग्रन्थ)
(छ) साध्वी श्री राधादेवी जी म. परम्परा नहीं है। साध्वी श्री ताबोजी
आप श्री जी मूलांजी की शिष्या तथा तपस्विनी मेलो जी की गुरु बहन थीं। निम्न पंक्तियों में आपका परिचय तथा परम्परा प्रस्तुत की जा रही है।
आपका जन्म जालन्धर नगर में एक किसान परिवार में हुआ था। आपकी दीक्षा १६०० में हुई। आप अपने समय की अच्छी प्रतिभावान साध्वी थीं। उन्नीस दिन के संथारे के साथ रोहतक में आपने देहोत्सर्ग किया । आपकी तीन शिष्याएं हुईं - (१) जीवनी जी* (२) सुषमा जी * (३) श्री जयदेवी जी।
श्री जयदेवी जी महाराज की श्री गंगी देवी जी महाराज एक सुयोग्य शिष्या हुईं। ये अपने समय की प्रभावशाली साध्वी थीं। उग्रतपस्विनी थीं। इनकी दो शिष्याओं का प्रमाण प्राप्त होता है जिनके नाम हैं - (१) श्री नन्दकौर जी म. एवं (२) श्री मथुरा देवी जी म.।।
श्री मथुरादेवी जी म. की चार शिष्याएं हुईं - (१) श्री सत्यावती जी (२) श्री मगनश्री जी (३) श्री राजमति जी (४) श्री सुन्दरीजी। इनमें से प्रथम की शिष्या परम्परा नहीं है।
श्रीमगनश्रीजी की तीन शिष्याएंहैं - (१) श्री शकुन्तला जी (२) श्री वीरमतिजी (३) श्री मीनेशजी । इन तीन आर्याओं का लगभग सोलह साध्वियों का शिष्या-प्रशिष्या परिवार है।
इनका विशेष परिचय गुरुदेव श्री सुमनमुनि जी म. द्वारा लिखित पुस्तक "पंजाब श्रमणसंघ गौरव आचार्य श्री अमरसिंह जी म." __ में पृष्ठ १६७ पर देखें।
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