Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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श्री ने अनुमति दी तो गिरधारी पुनः बीकानेर की ओर प्रस्थित हो गया ।
बीकानेर पहुँचा तो गिरधारी ने सोचा - एकांत और शांति कहाँ मिल सकती है? संभवतः निर्जन वन में, गुफा में !
बीकानेर के बाहर गंगाशहर के मार्ग पर एक बगीची थी और बगीची में थी - एक गुफा । गिरधारी वहीं पहुँचा । यह गुफा नाथ संप्रदाय के संतों की गुफा थी जहाँ संत तपस्या करते थे जिनका नाम था - रामनाथ । बगीची के समीप ही पानी का निर्मल कुण्ड था । उद्यान रमणीय था । गिरधारी ने वहाँ दो दिन व्यतीत किये ही थे कि तीसरे दिन नाथ सम्प्रदाय के एक संत और वहाँ आ पहुँचे । भेंट हुई, वार्तालाप द्वारा परिचय प्राप्त किया एक-दूसरे ने । आगन्तुक महात्मा का नाम था- मंगलनाथ ।
मंगलनाथ एक दिन गिरधारी को साथ में लेकर बीकानेर के राणी - बाजार गये । एक सिंधी परिवार में सन्यासी आये हुए थे उन्हीं से भेंट-वार्ता करने-कराने के लिये मंगलनाथ वहाँ पहुँचे थे ।
ढोंगी और पाखंडी .....
महात्मा, सन्यासी का लिबास उन लोगों ने भले ही धारण कर लिया था किंतु पात्रता / गुण उनमें विद्यमान नहीं थे। रात में शराब का दौर चला, नशे में धुत हुए सभी निद्रालीन हो गये । गिरधारी को नींद कहाँ ? वह चिंतन कर रहा था - समयपूर्व की वेला पर! क्या यही महात्मापन है ? महात्मा की वेशभूषा की आड़ में यह ढोंग, पाखंड क्यों ? आदि-आदि कई प्रश्न गिरधारी के दिमाग में तैरते रहे। गिरधारी के मानस में घृणा के बीज अंकुरित हो गए। ऐसे धर्म, धार्मिकों के प्रति नफरत हो गई ।
मंगलनाथ वहाँ से रवाना हुए तो गिरधारी ने रास्ते में
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सर्वतोमुखी व्यक्तित्व
पूछा “रात में यह जो सब कुछ क्या हो रहा था ? क्या यह उचित है? " मंगलनाथ ने संक्षिप्तः जवाब दिया“ सब चलता है । " प्रत्युत्तर सुनकर गिरधारी का मन वितृष्णा से भर गया । मंगलनाथ ने पंजाव परिभ्रमण का वादा करके गिरधारी को अपने सन्निकट ही रखा ।
पंजाब की ओर :
...... और एक दिन पंजाब यात्रा आरंभ हुई मंगलनाथ और गिरधारी की ! बी. के. एस. ट्रेन के माध्यम से ! यह ट्रेन उस जमाने में बीकानेर सरकार चलाती थी । रेल यात्रा की समाप्ति के साथ ही भटिण्डा (पंजाब) की धरती पर थे; वे दोनों । भटिण्डा के बाहर ही एक उद्यान / अग्रवालों की बगीची में ठहरे, वहाँ अन्य सन्यासी भी थे भोजन के समय सभी सन्यासियों को भक्तजनों द्वारा आमंत्रित किया जाता था। मंगलनाथ, गिरधारी भी उन्हीं के साथ जाकर भोजन ग्रहण कर लेते । प्रसाद पाकर सभी सन्यासी तृप्त हो जाते और भक्तजनों को आशीर्वाद से कृतार्थ कर पुनः बगीची में आ जाते और असाधुता और दुरात्माओं की प्रवृत्ति में लीन हो जाते ।
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गिरधारी के लिए पंजाब का वातावरण नया था । कड़ाके की सर्दी के कारण वह जुकाम- बुखार से पीड़ित हो गया। शरीर कुछ अशक्त हो गया साथ ही साथ मन भी जरा अस्वस्थ हो गया था । स्वस्थ होने पर मंगलनाथ गिरधारी को लेकर कपूरथला ( रियासत) ले आये। रात्रि का नीरव समय जमनानाथ जी के डेरे पर सर्वप्रथम पहुँचे किंतु रात्रि का मध्यभाग होने के कारण डेरे के द्वार नहीं खुले तथा यह प्रत्युत्तर - “रात्रि अधिक हो रही है, डेरे के द्वार अब नहीं खुलेंगे - पाकर मंगलनाथ अमरनाथ जी के मठ / डेरे पर आ गये । यहाँ आसानी से प्रवेश मिल गया । दोनों ने राहत की सांस ली। गिरधारी ने प्रभात में देखा
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