Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
उपाश्रय में ही सम्पन्न हुआ करती थी। रात्रि में भी अध्यापन करवाकर उपकृत किया तथा मातृवत् स्नेह और उपाश्रय' में पाठशाला आयोजित होती थी, उसमें व्यवहारिक प्रेम का वर्षण भी किया। आपके पुत्र पार्श्व कुमार जैन, शिक्षार्जन गिरधारी करता।
विमलकुमार जैन दोनों वैद्य हैं। प्रारंभिक ज्ञान
विद्रोह के बीज कँवलगच्छीय उपाश्रय की कक्षाएँ पास करने के बाद इस तरह गिरधारी की अध्ययन के प्रति रुचि बढ़ती किशोर गिरधारी ने उपाश्रय के सामने “श्री लक्ष्मीनारायण । ही गई और वह १२ वर्ष की अल्पायु में ही बहुत कुछ जी शास्त्री” (जो कि हिन्दी - संस्कृत के अध्यापक थे एवं ज्ञान ग्रहण कर चुका था। गिरधारी किशोर हुआ।... राजकीय पाठशाला में कार्यरत थे) से हिन्दी व्याकरण का बीकानेर में अब उसका मन लग नहीं पा रहा था। ज्ञान पाया तदुपरांत संस्कृत भाषा का प्रारंभिक ज्ञान भी
किशोर मन दिभ्रमित होता गया। किशोरावस्था ही इन्हीं से सीखा।
ऐसी अवस्था है कि विद्रोह के बीज एवं स्वर उत्पन्न करती ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्ष
है। गिरधारी यतिथी के कार्यों का अवलोकन करता
किंतु उनकी साधना आध्यात्मिक दृष्टिगोचर न होकर मात्र ज्ञानार्जन के साथ-साथ गिरधारी ने सेवा कार्य में भी
आजीविकोपार्जन तक ही सीमित थी। निपुणता हासिल की। ज्ञान और क्रिया का समन्वय बचपन से ही...कितना सखद योग! गिरधारी प्रातः पानी के घड़े
यति श्री ने उसे अन्यमनस्क देखकर नागौर यति श्री भर कर लाता, छानता एवं परिंडे की सफाई करता,
के पास भिजवा दिया। लोटा-ग्लास का प्रक्षालन करता। तदनंतर कपड़े धोता,
वातावरण नया, पर.....! सायंकाल के पश्चात् यति श्री के पैर दबाकर 'वैयावृत्य'
नागौर में यति श्री मुकनचंद जी का उपाश्रय हीरावाड़ी करता। सुबह-शाम विनीत भाव से वंदन-नमस्कार करता। उनकी आज्ञानुसार सेवा कार्य करना गिरधारी के जीवन
के समक्ष ही था। गिरधारी के लिए यह स्थान नूतन था, के अभिन्न अंग बन गये। .. गिरधारी का विनीत भाव
वातावरण भी नया। तथापि गिरधारी वहाँ दो माह निवसित एवं सेवा कार्य देखकर बीकानेर की ही निवसित एक
रहा किंतु मन को सन्तुष्टि कहाँ? मन तो चाहता था-एकांत सहृदय महिला ने भी ज्ञान-दान देने का संकल्प लिया,
और शांत वातावरण । जब-जब भी मन अशांत हुआ वह कौन थी वह महिला?
अनासागर के किनारे पहुँच जाता, जलाशय की लहराती -
बलखाती उर्मियों को देखता रहता एवं उनके निकट बनी स्नेह-प्रेम-वर्षण
छत्रियों में बैठकर अपने जीवन के ताने बाने बुनते रहता वह महिला थीं- श्रीमती केसरवाई। आप राजकीय मन की अशांतता एक दिन वाणी के द्वारा अभिव्यक्त हो कन्या महाविद्यालय की अध्यापिका थीं। आप एक विदुषी ही गई-“यतिवर्य! यहाँ मेरा मन नहीं लग रहा है, मैं महिला एवं सद्गृहिणी थी। आपने भी गिरधारी को आपश्री से जाने की अनुमति चाहता हूँ।” अनमने-से यति १. कंवलगच्छीय उपाश्रय में संध्या के पश्चात् रात्रि पाठशाला दो घंटे के लिए आयोजित होती थी, जिसमें कक्षा वार ज्ञान दिया जाता था।
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