Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन-अभिनंदन!
यशोगानम्
मेरे मन को 'सुमन' बना दो
श्रमण संघ के सलाहकार मंत्री को वंदन । जगत्सु सन्तो बहवो महान्तः
शुभ प्रसंग पर गुरुवर लो मेरा अभिनंदन ।। परन्तु सन्तं महतां महान्तम् । शान्तं नितान्तं विदुषां विशिष्टम्
आगम की वाणी के हो तुम महाप्रचारक । स्तवीमि पूज्यं सुमनाभिधानम् ।।१।।
आत्म-ज्ञान के महा प्रणेता, महान्, साधक।। पदे-पदे सत्यकथं सुतथ्यम्
आत्म-सिद्धि की व्याख्या तुमने की है उत्तम । निरन्तरं यस्य मुनेश्चरित्रम्।
प्रभु-वाणी के प्रवचन देते हो सर्वोत्तम । । समीक्ष्य सन्तोऽपि पुनर्नमन्ति
तेरा जीवन मेधाशाली, महाप्रभावक । मुनिं तमाराध्यमहं ब्रवीमि ।।२।।
दर्शन-ज्ञान चारित्र गुणों से गुज्जित, भावक।। तीर्थ-स्वरूपं मनसापि मन्ये,
तुम हो महामनस्वी, हो तत्त्वों के ज्ञाता । प्रयागराजस्य सुसङ्गमं वः।
मेरे मन को 'सुमन' बना दो, ज्ञान प्रदाता ।। यतो हि रत्नत्रितयस्य सङ्गात्
श्रद्धा, ज्ञान, कर्म से पूरित हो यह जीवन । समन्वितं रूपमतो विभाति ।।३।।
सदाचरण का भाव रहे मुझ में आजीवन ।। यदा मुनीनां विदुषां कथायाः
अर्द्ध-सदी से तुमने धर्म की धार बहाई । प्रसङ्ग आयाति तदा ममाग्रे।
आगम की यह पावन धारा सब मन भाई।। तदाह मेवं कथयामि भक्त्या
करते हैं हम तव चरणों में शत-शत वंदन । न कोऽपि किं पूज्य वरं न वेत्ति । । ४ ।। धर्म-भावना कर दे सब को हर्षित, पावन ।। सुनिश्चितं मे मतमेवदेवम्
- दुलीचन्द जैन 'साहित्यरत्न' जिनप्रभो शासन मन्दिरेऽस्मिन् ।
सचिव, जैन विद्या अनुसंधान प्रतिष्ठान ज्वल प्रभापूर्ण विकासिदीपः
चेन्नई प्रकाशमायाति मुनीश एषः ।।५।। उपाध्युपाध्याय धरस्य तस्य
| जिनशासन - सिणगार || मुनेरयं शिष्यक एव वर्णी रमेश नामा गुरुपुष्करस्य
महावीर रो मारग धार्यो, शासन खूब दीपायो । यशस्विनः स्तौति यशःप्रसङ्गम् ।।६।। सुमनमुनि री वाणी सुण' र, मन घणो हरखायो।। - रमेश मुनि “शास्त्री" |
वृद्धावस्था पिण धर्म री चर्चा, बांचे सूत्तर पाठ। (उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म.सा. के सशिष्य) | श्रावक - श्राविका दौड्यां आवे लोग गेहरो ठाठ।।
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