Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
१८१० वैशाख शुक्ला ५ मंगलवार को पंचेवर ग्राम में के पीछे क्या कारण रहे यह अज्ञात है। एक सम्प्रदाय के चार सम्प्रदायों का सम्मेलन हुआ था। उसमें आपके शिष्य शास्ता श्री छजमल जी ऋषि हुए तथा दूसरे सम्प्रदाय के श्री मनसाराम जी, श्री भोजराज जी आदि मुनि तथा शास्ता आचार्य श्री नागरमल जी महाराज हुए। महार्या खेमाजी की आज्ञानुवर्ती साध्वियां श्री दया जी,
पूज्यवर्य श्री छजमल जी ऋषि का इतिवृत्त अभी मंगला जी, फूलां जी आदि सम्मिलित हुए थे।
तक अनुपलब्ध है। इतना ही ज्ञात हो सका है कि आप उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर आपका शासन काल जाति के कुम्हार थे और तपस्वी सन्तरत्न थे। आपके १८३३ तक रहा।
शिष्यों की संख्या स्वल्प सी ही प्रतीत होती है। आपके
जो शिष्य थे वे आपके जीवन काल में ही दिवंगत हो गए (५) आचार्य श्री महासिंह जी महाराज
थे। वृद्धावस्था में आप भदौड़ नगर में स्थिरवासी बने, आप आचार्य श्री मलूकचन्द जी महाराज के योग्य अन्त में वहीं पर आपका स्वर्गवास हो गया। आपके शिष्य थे। गुरु के देवलोक गमन के पश्चात् आप आचार्य स्वर्गवास के पश्चात् आपकी सम्प्रदाय में साधु तीर्थ का पद पर प्रतिष्ठित हुए। आप तपस्वी, मनस्वी और यशस्वी विच्छेद हो गया। मुनिराज थे। आपकी शिष्य संख्या भी विशाल थी। मुनि
एक जनश्रुति एवं लिखित घटना से ज्ञात होता है श्री गोकुलचन्द जी, श्री कुशलचन्द्र जी, श्री अमोलकचन्द्र कि श्री मलां जी म. जिनकी दीक्षा वि.सं. १८६७ में तथा जी तथा श्री नागरमल जी के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। देहान्त वि.सं. १९०३ में हुआ के आप संसार पक्ष से ___सं. १८६१ में आश्विन सुदि पूर्णिमा के दिन सुनाम। मौसा लगते थे। इन्ही साध्वी की दादी गुरुणी श्री ज्ञानां नगर में आपने संथारा किया और कार्तिक वदी अमावस्या जी ने आपकी निथाय में शिष्य बना कर मुनि परम्परा को (महावीर निर्वाण दिवस) के दिन आप स्वर्गवासी हए। सुरक्षित रखा था। श्रद्धालु श्रावकों ने आपकी स्मृति में एक 'स्मृति स्तंभ' का ।
(८) पूज्य पं. रामलाल जी महाराज निर्माण कराया जो आज भी विद्यमान है।
___आपका इतिवृत्त अभी तक अनुपलब्ध है। कुछ (६) श्री कुशलचन्द जी महाराज
हस्तलिखित सामग्री तथा श्रुति परम्परा के अनुसार आपका आचार्य श्री महासिंह के बाद आप आचार्य पद पर
परिचय इस प्रकार हैआसीन हुए। आपका कार्यकाल वि.सं. १८६१ से १८६८ पूज्यवर्य श्री छजमल जी महाराज के स्वर्गवास के तक रहा। आप कुशल संघशास्ता और प्रभावक मुनिराज बाद एक अनुवदन्ति के अनुसार पंजाब में मुनि संघ/ थे। कई विद्वान और मान्य मुनि आपके आज्ञानुवर्ति थे। साधुतीर्थ का विच्छेद हो गया। उस समय पूज्य श्री आपके देवलोक गमन का समय शोध का विषय है। छजमल जी महाराज की परम्परा की कुछ साध्वियां जिनकी
प्रमुखा ज्ञानां जी थीं पंजाब प्रदेश में विचरण कर रही (७) श्री छजमल जी ऋषि
थीं। आर्या ज्ञानां जी की प्रशिष्या श्री मूलांजी के तपस्वी आचार्य कुशलचन्द्र जी महाराज के पश्चात् पंजाब श्री छजमल जी संसार पक्षीय मौसा थे। साधु तीर्थ के मुनि संघ दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया। इस विभाग विच्छेद से ज्ञानां जी का हृदय आहत हो उठा। उन्होंने
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पंजाब श्रमणसंघ की आचार्य परम्परा
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