Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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श्रमण परंपरा का इतिहास
एक साक्ष्य के आधार पर आप के सात शिष्य थे। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं - (१) श्री कान्हजी (२) श्री प्रेमचन्द जी (३) श्री वृन्दावनलालजी (४) श्री लालमणजी (५) श्री तपस्वी लाल जी (६) श्री मनसा राम जी और (७) श्री हरसहाय जी। ये सभी शिष्य बुद्धिमान, विद्वान, तपस्वी, संयमी और वर्चस्वी थे।
आचार्य श्री हरिदास जी का स्वर्गवास लाहौर में हुआ। इनके बाद इन्हीं के शिष्य श्री वृन्दावन लाल जी ऋषि पूज्यपाट पर विराजित हुए। (२) पूज्य श्री वृन्दावनलाल जी ऋषि __आप आचार्य श्री हरिदास जी महाराज के सुयोग्य । शिष्य और कुशल संघशास्ता थे। आप कितने वर्षों तक पूज्य पाट पर रहे यह जानकारी अनुपलब्ध है। (३) पूज्य श्री भवानीदास जी महाराज
आप आचार्य श्री हरिदास जी महाराज के प्रशिष्य और पूज्य श्री वृन्दावन लाल जी ऋषि के बाद संघशास्ता
श्री नन्दावन लाल जी कवि बाट संघशाता नियुक्त हुए। शेष परिचय अनुपलब्ध है। (४) पूज्य आचार्य श्री मलूकचन्द्र जी महाराज ___आप पूज्य श्री भवानीदास जी महाराज के देवलोक के पश्चात् उनके पाट पर विराजित हुए। आप अपने समय के महान तपस्वी, आगम निष्णात और उच्च क्रियाशील मुनिराज थे। आपकी महानता को संदर्शित करने वाली कुछ घटनाएं वर्तमान में भी सुनी जाती हैं। दो घटनाओं का यहां संक्षिप्त उल्लेख अभीष्ट लग रहा है ---
(१) एक बार आप विचरण करते हुए अपनी शिष्य मण्डली के साथ सुनाम नगर में पधारे। उस समय वहां पर यतियों का एकछत्र प्रभाव था। परिणामतः आहार पानी
र की प्रार्थना तो दूर रही किसी ने ठहरने के लिए विश्राम स्थल भी नहीं दिया। इस स्थिति में भी आपका मुनि मन
क्लान्त न बना। आप नगर के बाहर तालाब के किनारे बनी छत्रियों में जाकर ठहर गए। वहीं पर आप निराहारी रहते हुए अपने शिष्यों को शास्त्र स्वाध्याय कराने लगे। आठ दिन बीत गए। यतियों से प्रभावित जैन समुदाय आपकी शान्त साधना देखकर दंग रह गया। कुछ लोग आपके निकट आने लगे। आपकी तपस्विता, तेजस्विता और साधना से प्रभाक्ति लोगों ने आहार पानी की प्रार्थना की। इस पर आपने कहा-“जो व्यक्ति सविधि सामायिक तथा सन्तदर्शन का नियम ग्रहण करेगा उसी के यहां से साधुवृत्ति के अनुरूप आहार-पानी ग्रहण करेंगे।" यह सुनकर अनेक लोगों ने नियम ग्रहण किया और श्रमणोपासक बने। इस प्रकार सुनाम नगर में आपने सम्यक्त्व का प्रदीप प्रज्ज्वलित किया। यह घटना सं. १८१५ के लगभग की है। * *
(दो) एक बार आप अम्बाला की दिशा में विहार कर रहे थे। मार्ग घने जंगलों से गुजरता था। कुछ चोरों ने आपको घेर लिया। आप पर तलवार से प्रहार किए। पर चोरों की तलवार आपके शरीर पर घाव न कर सकी। आपकी इस अलौकिकता से चोर दंग रह गए और आपके श्री चरणों पर नत हो गए। ★ ★
आपके शासनकाल में धर्मसंघ का चहुंमुखी विकास हुआ। आपके अनेक शिष्य बने जिनमें श्री महासिंहजी, श्री भोजराजजी एवं श्री मनसाराम जी के नाम विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
पंजाब के अतिरिक्त राजस्थान आदि प्रदेशों में भी आपने विचरण किया। इतर प्रदेशों में आप “पंजाबीपूज" के नाम से विख्यात रहे । आपका मुनिसंघ “मलूकचन्दजी महाराज को टोलो” नाम से उस समय पुकारा जाता था।
आपके समय में संघ में ज्ञान-दर्शन-चारित्र गुणों की अच्छी वृद्धि हुई। आपके समय में ही अर्थात् वि.सं.
पंजाब श्रमणसंघ की आचार्य परम्परा
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