Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
लेखन, ध्यान, योग, ज्योतिष तथा औदार्य वैयावृत्य सेवादि गुणों से परिपूर्ण था। आपके शासनकाल में पंजाब स्थानकवासी संघ का विशेष उत्थान हुआ। साधु और साध्वी समुदाय की विशेष वृद्धि हुई। मुनिवर्ग और श्रावक वर्ग में संयम और क्रिया के प्रति विशेष रुचि जागी और वृद्धिंगत हुई।
आपका विहार क्षेत्र भी काफी प्रलम्ब रहा। पंजाब, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश तक की आपने यात्राएं की।
आपके बारह शिष्य बने। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं
१. मुनि श्री मुश्ताकराय जी म. २. मुनि श्री गुलाबराय जी म. ३. मुनि श्री विलासराय जी म. ४. मुनि श्री रामबक्ष जी म. ५. मुनि श्री सुखदेव राय जी म. ६. मुनि श्री मोतीराम जी म. ७. मुनि श्री मोहनलाल जी म. ८. मुनि श्री रत्नचन्द्र जी म. ६. मुनि श्री खेताराम जी म. १०.मुनि श्री खूबचन्द्र जी म. ११.मुनि श्री बालक राम जी म. १२.मुनि श्री राधाकृष्ण जी म.
वर्तमान पंजाब स्थानकवासी श्रमण वर्ग इन्हीं बारह मुनियों का शिष्य-प्रशिष्य परिवार है।
चली थी। अमृतसर श्रीसंघ की प्रार्थना पर आप वहां पधारे और स्थिरवासी बन गए। आपका यह स्थिरवास अधिक लम्बा नहीं चला।
पर्व-तिथियों पर आप नियमित तपाराधना करते थे। वि.सं. १६३८, ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा (पाक्षिक) को आपने उपवास किया। दूसरे दिन पारणा किया। पर पारणा भली प्रकार से न हो सका। शरीर में असमाधि उत्पन्न हो गई। दीर्घद्रष्टा आचार्य श्री ने अनुभव कर लिया कि विदायी की वेला सन्निकट है। इस अनुभूति के साथ ही आपने मृत्यु महापर्व में प्रवेश की पूर्व तैयारी शुरू कर दी। आषाढ़ कृष्णा प्रतिपदा को मध्याह्न तीन बजे आपने चौरासी लाख जीव योनि के प्राणियों से क्षमापना की। तदुपरान्त समग्र जीवन में लगे अतिचारों की आलोचना की और यावज्जीवन के लिए देह-ममत्व से मुक्त होते हुए संथारां ग्रहण कर लिया। आषाढ़ कृष्णा द्वितीया (वि.सं. १६३८) के दिन दोपहर एक बजे इस नश्वर देह का त्याग कर आप देवलोकवासी बन गए।
जैन समाज वज्राहत हो उठा। पर भवितव्यता के समक्ष तो सब विवश हैं। उत्तर भारत के हजारों श्रद्धालू श्रावक अमृतसर में अपने आराध्य देव को विदायगी देने पहुंचे। आपकी अन्तिम शोभा यात्रा विशाल और भव्यतम थी। उसे देखकर लोगों को महाराजा रणजीत सिंह की अन्तिम शोभा यात्रा स्मरण हो आई थी।
आपके देवलोक गमन के पश्चात् आपके ही चतुर्थ शिष्य श्री रामबक्ष जी महाराज आपके उत्तराधिकारी आचार्य बने।
पूज्यपाद शेरे पंजाब श्री अमरसिंह जी म. निरन्तर चालीस वर्षों तक जैन जैनेतर जगत् को अहिंसा, सत्य
और प्रेम का अमृतपान कराते रहे। अपने प्रलम्ब संयमीय जीवन में आपने स्व-पर कल्याणार्थ अथक श्रम किया। प्रलम्ब यात्राएं कीं। इसी क्रम में आप की देह जर्जर हो
(१०) आचार्य श्री रामबक्ष जी महाराज
आप श्री, आचार्य प्रवर श्री अमरसिंह जी महाराज के बारह शिष्यों में चतुर्थ शिष्य रल थे। आपका जन्म राजस्थान प्रान्त के अलवर नगर में एक सम्पन्न लोढ़ा
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पंजाब श्रमणसंघ की आचार्य परम्परा |
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