Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
संत समुदाय किसी एक राष्ट्र, एक प्रान्त या एक जाति की सम्पत्ति नहीं। अपितु वह विश्व की अमूल्य सम्पदा होता है। भारत विविध संस्कृतियों की निर्माण भूमि है। जिसमें जैन दर्शन भी आध्यात्मिक जगत में अपनी विशेष गरिमा का प्रतीक है और इस भौतिक युग में जैनत्व की सौरभ महका रहे हैं हमारे धर्मगुरु सन्त मुनिराज ।
हार्दिक अभिवन्दन
जैन जगत के यशस्वी संत प्रवर्तक पंडित रत्न श्री शुक्लचन्द्र जी म.सा. के शिष्य रत्न शान्त मुद्रा पंडित रल मुनि श्री महेन्द्रकुमार जी म.सा. के सुशिष्य पंडित प्रवर श्रमण संघीय मंत्री श्री सुमनकुमार जी म.सा. 'श्रमण' की दीक्षा स्वर्णजयन्ति के उपलक्ष में प्रकाशित अभिनन्दन ग्रंथ के लिए हार्दिक शुभकामनाएं प्रकट करते हुए आदरणीय महाराज साहब के स्वस्थ एवं दीर्घायु की मनोकामना व्यक्त करता हूं।
वास्तव में ऐसे महान व्यक्तित्व और साधुत्व के बहुमान और अभिनन्दन के निमित्त से हम स्वयं उनके आदर्श जीवन और सिद्धान्तों से परिचित एवं लाभान्वित होते हैं । हमें सत्य का साक्षात्कार और सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
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परम आराध्य गुरुदेव के १६६३ में मद्रास के उपनगर माम्बलम - टी. नगर के चातुर्मास में भी एस. एस. जैन संघ, माम्बलम के मंत्री पद पर रहकर आपकी सेवा करने का सुअवसर मुझे मिला ।
आप का जीवन स्वयं एक दर्शन है जो अपने करीब आने वालों को चेतना का एक दृष्टिकोण प्रदान करता है । मैंने उनका सान्निध्य पाया, उनमें देखा है एक अलौकिक तेजोमय व्यक्तित्व जो उनके भीतर छिपे विराट स्वरूप का प्रतिबिम्ब है, उनके भीतर पैदा हुआ यह विराट स्वरूप रूपान्तरण की प्रक्रिया है, इस विशाल, उत्क्रान्त चेतनामय जीवन का यह वैशिष्ट्य है - उनमें साधुत्व के दर्शन हुए हैं, प्रदर्शन के नहीं ।
साधुता के इस दर्शन की जीती जागती साधना को असीम आस्था के साथ आत्म वन्दन / अनन्तवन्दन !
जैन स्थानक
दि. २२-१०-६६
४६, बर्किट रोड, टी. नगर
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भीकमचन्द गादिया चातुर्मास समिति अध्यक्ष श्री एस. एस. जैन संघ माम्वलम चेन्नै ६०००१७
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