Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
आपने नैतिकता के नाते उसका डट कर मुकाबला किया है । सच्चाई की राह पर चाहे अकेला ही चलना पड़ा हो। आप अकेले ही चले हैं। अतः सच्चाई की जीत हुई है । नैतिक मूल्यों के पक्ष में आप कुछ हद तक हठवादी हैं । आपकी इस हठधर्मिता के कारण आपश्री को कड़े कष्ट भी झेलने पड़े किन्तु सत्पक्ष से आप डिगे नहीं ।
तेजराज सिंघवी अशोक रोड, मैसूर
| नई पीढ़ी के मार्गदर्शक
विश्व के किसी भी कोने में जब कोई समस्या उत्पन्न होती है तो वह पूरे विश्व को प्रभावित करती है । व्यक्ति, समाज या राष्ट्र की समस्या का इतना व्यापक प्रभाव होता है तो इसके समाधान का भी तो व्यापक प्रभाव होगा। समस्या की तरह समाधान भी देश और काल की सीमाओं में आबद्ध नहीं रहता किंन्तु वर्तमान काल की स्थिति कुछ विचित्र है। इस समय ऐसे व्यक्ति कम दिखाई देते हैं, जो समस्याओं से आहत होने के बजाए उनका समाधान खोजते हैं और युग के प्रवाह को बदल देते हैं । अर्थात् ऐसे कुछ ही गुरु होते हैं जो समयानुसार नई पीढ़ी को सही दिशा प्रदान कर सही राह पर प्रतिष्ठित करने में सक्षम होते हैं । ऐसे युगपुरुषों में श्री सुमनमुनि जी का भी स्थान है । सुषुप्त चेतना को जो प्रज्ञावल से सक्रिय बनाने हेतु जिन शब्दों का प्रयोग होता है वे शब्द हमारे अध्यवसाय एवं भावना जगत को छुए बिना नहीं रहते और वहीं से संवेदन परिवर्तन का क्रम चालू हो जाता है।
विचारों को संप्रेषण का सर्वाधिक शक्तिशाली और व्यापक माध्यम है - शब्द । सही अर्थ में प्रयुक्त शब्द क्रांति को जन्म देता है। गलत अर्थ में प्रयुक्त शब्द भ्रान्ति को जन्म देता है, किन्तु मुनिजी का शब्दों पर इतना
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व्यापक नियन्त्रण है कि एक-एक शब्द को अनेक अर्थों में और भिन्न-भिन्न भाषाओं के माध्यम से उसे विश्लेषण करते हैं ।
मेरी मुनिश्री जी से काफी निकटता है। के.जी.एफ. चातुर्मास के दौरान 'आत्म सिद्धि' का पारायण चलता था और मैसूर चातुर्मास के परिप्रेक्ष्य में आत्ससिद्धि के कुछ पदों का पुनरावर्त्तन करने का मौका मिला। बहुत दिनों की जो आत्म तत्त्व के बारे में भ्रान्ति थी, वह मिट् गई । अब मन और बुद्धि उस आत्मतत्त्व के अस्तित्व को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण कार्य संचालक के स्वामी के रूप में आत्मा को मानने में कोई शंका नहीं करता। कुछ ही ऐसे साधु होते हैं जिनकी साधना और ज्ञानबल से प्राणी मात्र पर अटूट प्रभाव पड़ता है। परिणाम स्वरूप चेतना उर्ध्वगमन में सक्षम बनती है ।
बड़ी विडम्बना की बात है कि समाज ऐसे व्यक्ति का पूरा लाभ नहीं उठा पा रहा है। इसे मैं पुरुषार्थ हीनता कहूं या अन्तराय कर्म का उदय कहूं किन्तु मैं आशावादी हूँ। ऐसे क्षण आएंगे कि इनके व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन होगा ही । साहित्य जगत् में पूज्य मुनि जी का व्यापक योगदान रहा है ।
ऐसे स्वनाम धन्य परम पूज्य श्री सुमनकुमार जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र को समयसमय पर उत्कृष्ट चेतना से प्रभावित करता रहेगा । और उनका कृत्य हमेशा जयवन्त रहेगा। इसी सकामना के
साथ ।
महावीरचंद जैन दरला
मैसूर
करुणाशील निर्ग्रन्थ
पूर्व संस्कारों की उर्वरक भूमि की यह संजीवनी आज जैन जगत को अपनी शुद्ध आत्मनिष्ठा से एक सुदृढ़ मार्ग
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