Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन-अभिनंदन!
प्रशस्त कर रही है जिसे हेय उपादेय की भेद रेखा को | अवश्य ही सफलता को प्राप्त करता है। बड़ी ही पैनी दृष्टि से समझा है। जो मन से शान्त पर
___ साधना की भूमि पर भौतिक सुखों से मुंह मोड़ गत वाणी से स्पष्ट एवं दृढ़, सत्य को निर्भयता, सटीक एवं
४६ वर्षों से अपनी मंजिल को प्राप्त करते समग्र भारत की निशंकता से प्रकट करनेवाला करुणाशील श्रमणसंघ का
पद यात्रा कर रहा है। जिन शासन की जाहोजलाली एक सच्चा निर्ग्रन्थ है।
करता हुआ यह मोक्षमार्गी, स्वाध्यायमार्गी स्वाध्यायरत __एक सुपुरुषार्थ का ज्वलन्त उदाहरण जिसने अल्पवय है। भगवान महावीर के बताए राजमार्ग पर चलनेवाले में साधना के मार्ग को अपना कर अपने आपको गुरुजनों
इस साधक ने संयम जीवन को पूर्णरूपेण समझा है। यह के चरणों में समर्पित कर दिया। समर्पण बलिदान, कुर्बानी
'जयं चरे' का हिमायती है। एवं त्याग मांगता है। इसे पाने के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती है। तन-मन का मोह छोड़ना पड़ता
तो फिर उठो। मेरे श्रावक-श्राविकाओं, बालकहै। स्वर्ण ताप से शुद्धता को पाता है। हीरा कट-कट कर
बालिकाओं, नवयुवक-युवतियों उठो, वेला सोने की नहीं बहुमूल्य बनता है। स्वर्ण ताप से शुद्धता को पाता है।
जागने की आई है। ऐसे महापुरुष जिनके सान्निध्य से हम नवनीत मन्थन होने पर निकलता है। आत्म कल्याण के
अपने कर्तव्यों को जानने एवं इस संघ व्यवस्था को/मूल मार्ग पर चलने वाले इस महाश्रमण ने गुरुवर्य पण्डित रत्न
को सुरक्षित रखने तथा पल्लवित करने में सहभागी बनें। श्री शुक्लचन्द जी म.सा. के सुशिष्य पण्डितरत्न शान्त
महामुनि भगवान महावीर की बगिया को सुन्दर अतिसुन्दर, स्वभावी श्री महेन्द्रकुमार जी म.सा. के शुभ चरणों का दृढ़ सुदृढ़ बनाने हेतु हम सभी अनुशासित होवे। पावन सान्निध्य प्राप्त किया था। आपने समकालीन बुजुर्ग आपके दीक्षा दिवस पर हार्दिक प्रणमांजलिआचार्यों एवं त्यागी-तपस्वी-विद्वान सन्तों का मार्ग दर्शन विनयांजलि। पाया। अनेक संत सम्मेलनों, पद-पदवियों एवं जिम्मेदारी पूर्ण कृत्यों ने आपको अनुभवशील बनाया। जिसके जीवन
- उत्तम राजेश जैन
बैंगलोर का सारा समय ज्ञान-ध्यान में ही निकलता है, पढनापढ़ाना जिसको भाता है, स्वाध्याय से जिसकी आत्मा
ज्ञानी एवं दार्शनिक प्रमुदित होती है, जिसको प्रमाद आलस ने छुआ नहीं है, जो हर समय सजग है और हर मुमुक्षु आत्मार्थी को
महापुरुष प्रोत्साहित करता है, समाज की किसी भी इकाई का ह्रास
यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है कि श्रमण जिसके मन को ग्लानित करता है, जो स्वाध्याय मार्गी है. स्वाध्याय मार्गी बनने का आह्वान करता है, ऐसा व्यक्तित्व
संघीय सलाहकार मंत्री मुनि श्री सुमनकुमार जी महाराज जिसको समय ने बनाया है, आज हमारे बीच है। यह
साहब की दीक्षा-स्वर्ण-जयन्ति के अवसर पर उनके सम्मान
में वन्दन-अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है। हमारा अहोभाग्य है।
मुनिश्री के व्यक्तित्व एवं विचारों का इस ग्रन्थ में समावेश इस आत्मार्थी अणगार के जीवन का ध्येय अत्यन्त होगा, तथा अन्य गणमान्य विशिष्ट सज्जनों एवं महानुभावों महत्त्वपूर्ण है। हर कार्य लक्ष्य प्राप्ति की ओर गतिशील | के संस्मरण तथा विचार भी इसमें होगे। अतः यह प्रकाशन है। ऊँचा, पूर्ण और निर्विकारता से परिपूर्ण है तो वह | निःसन्देह उपयोगी सिद्ध होगा।
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