Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन-अभिनंदन !
तत्वदर्शी एवं समन्वय शील है। संघ एवं समाज की | के साथ-साथ हर मानव को मानवता के पथपर अग्रसर एकता के प्रमुख हिमायती रहे हैं। जैनत्व का सन्देश, | एवं ‘आत्म अनुभूति' कराने में आपने मिशाल कायम की महावीर की वाणी जन-जन तक पहुँचे इसी लक्ष्य को | है। ध्यान में रखकर भारत के कई प्रान्तों में भ्रमण करके हर मायने में आप अनुभवी तथा दीर्घ संयमी सन्त आपने अपने व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व की छाप अंकित की | रत्न हो। श्रमण संघ की महान विभूति हो। हे गुरुदेव !
आपने भव्य आत्माओं को पार लगाने हेतु आध्यात्मिक __ पूज्य गुरुदेव क्षमावान हैं, शीलवान हैं, तपवान हैं,
मल्लाह के रूप में बेजोड़ कार्य किया है। कुल मिलाकर
आप जिनवाणी के सफल संवाहक हैं। आपका व्यक्तित्व ज्ञानवान हैं, वैराग्यवान हैं, सन्तोषवान हैं, भूलों को राह बताने वाले हैं और हमारे हृदय के हार हैं। धन्य है वह
एवं कृतित्व महान् है। प्रभु से यही मंगल प्रार्थना करता हूं रत्नकुक्षी धारिणी माता वीरादे जिन्होंने आप जैसी महान्
कि आप चिरायु हो और ज्ञानपिपासुओं को सदैव अमृत चरित्रात्मा को जन्म दिया। आप विद्या प्रेमी हैं, शिक्षा एवं
का रसपान कराते रहें।
पारसमल दक, संस्कारों के सफल प्रचारक हैं, दुखियों के हितैषी हैं।
हुनसूर, कर्नाटक निखालस एवं गुणग्राही हैं। जैनत्व एवं संस्कारों के प्रति आपकी तड़फ सराहनीय एवं प्रशंसनीय है। आपसे प्रेरणा लेकर संघ एवं समाज ने जगह-जगह धार्मिक अध्ययन
सरस्वती पुत्र अध्यापनों हेतु धार्मिक शालाओं एवं शिविरों का आयोजन
मुनि श्री सुमन कुमार जी संचालन किया है। हे पूज्य गुरुदेव ! आप निर्भीक, स्पष्टवक्ता हो आपकी
विद्या जीवन का आभूषण है संस्कृति की प्राण है। वाणी में सत्यवादिता, कर्मण्यता, उदारता, वात्सल्यता एवं विद्या मानव का तृतीय नेत्र है। यह नेत्र मानव को जन करुणा के भाव भरे हैं। आप कुशल प्रवचनकार हो।
प्रिय बना देता है। इसीलिए नीतिकारों ने कहा है। आपके प्रवचन हृदयस्पर्शी हैं, और यह लिख दूँ तो कोई
'स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते' । हमारे विद्यार्थियों अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आप जिनवाणी के सफल |
पर अमीदृष्टि का वर्षण करने वाले एवं उन्हें विद्या का जादूगर हैं। संघ एवं समाज का कोई भी विवाद हो, कैसा |
दान प्रदान करने वाले सरस्वती पुत्र श्रीसुमनमुनि जी भी कठोर दिलवाला व्यक्ति क्यों न हो आप उसे अपने | म.सा. अपने संयमी जीवन के ५०वें यशस्वी वर्ष में प्रवेश अकाट्य तर्कों एवं समन्वयता के सिद्धान्त से उसे सरलता
कर रहे हैं। प्रत्येक क्षण आपकी सुमन की तरह कोमल से सुलझा देते हैं। यह आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की दृष्टि सभी को मंत्रमुग्ध करती है तो सुमन के पराग की तेजस्विता ही है। गुरुदेव आप धन्य हो-धन्य हो। तरह आकर्षित भी करती हैं। हमारे साढ़ौरा श्रीसंघ पर
इस भौतिक युग में धर्म पर से लोगों की आस्था | पूज्य महाराज साहब की सदैव अमीदृष्टि रही है। इसी के दिनों दिन घटती जा रही है। मानव, मानव धर्म से हटकर | फलस्वरूप हमारे यहाँ एस.डी. आदर्श जैन कन्या अन्याय एवं अधर्म को निःशंक अपना रहा है वहाँ आपने | महाविद्यालय विगत बहुत समय से शिक्षा-सेवा का कार्य महावीर के सिद्धान्तों को हू-ब-हू अपने जीवन में उतारने | चला रहा है। यह संस्था आपके ही प्रताप से पल्लवित
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