Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन-अभिनंदन!
वन्दन - अभिनन्दन !
मुनिजी म. एवं श्री मुनि लाभचन्द जी म. आपकी शिष्य सुरभित हो ज्यों चन्दन !
संपदा में रनों के समान सुशोभित हैं। यश फैले चतुर्दिक
___आज हम इन उच्च व्रती, विद्यावान-विद्वान सन्त, श्रमण संघ संवर्द्धित !!
दृढ़ संकल्पी, साहित्य सेवी श्री सुमन मुनि जी म. को यह ० सोमप्रकाश जैन | श्रद्धापुष्प - 'सु-मन' से अर्पित करते हुए वर्तमान और मंत्री, एस.एस. जैन सभा, सुलतानपुर लोधी भावी पीढ़ियों से आग्रह भरी विनती करते हैं कि वे इन
विद्वान् सन्त को समझें और विशाल दृष्टिकोण रखकर अनुभव शास्त्र के घनी
उनसे लाभ लें।
. गुरुदेव के श्री चरणों में सहस्रशः वन्दन ! जैनधर्म निष्कलंक और परम श्रेष्ठ धर्म है। इसमें शैथिल्य का तनिक भी स्थान नहीं है। परन्तु समय-समय
0 प्रकाश चन्द डागा, पर कालवशात् जब-जब शिथिलता आई, तब-तब ऐसे
एम.ए. (जैन विद्या), मैसूर (कर्नाटक) तेजस्वी सन्त आते रहे, जिन्होंने समाज को सत्य का दिग्दर्शन कराया। ऐसे ही सन्तों में परम श्रद्धेय श्री सुमन
(अनंत उपकारी गुरुदेव ) मुनिजी म. भी हैं। जैन मुनि चलते-फिरते तीर्थ होते हैं।
हमारे जीवन में तप और त्याग का महत्त्व प्रतिपादित जैन मुनि जिस दिन से दीक्षा स्वीकार करता है उसी दिन
करने वाले, संयम-धन के संरक्षक, भौतिकता की चकाचौंध से सामाजिक व धार्मिक सेवा का व्रत भी साथ साथ
में भटकते प्राणियों के पथ-प्रदर्शक, ज्ञान-चक्षु-प्रदाता, अपना लेता है। मुनि श्री सुमन कुमारजी म. का योगदान
'अनन्त उपकारी परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री सुमनमुनिजी म. इस क्षेत्र में ४६ वर्षों से धर्म एवं समाज को समय-समय
के पावन चरणों में भावभीना सश्रद्ध वन्दन ! पर मिलता रहा है। आपने अपनी जीवन ज्योति जलाकर
जीवों को तारने वाले, औरों को प्रकाश दिया। जीवन सुमन चढ़ाकर समाज एवं
धर्म-दीप जलाने वाले धर्म को अलंकृत किया।
नैतिकता के पथ प्रदर्शक आपने अपने त्यागमय जीवन में बहुत कुछ सीखा, सद्गुणों के संवर्द्धक अनुभव किया और यही कारण है कि आज संसार को आपको करता हूँ - वंदना ! आपके जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। तिक्खुत्तो....मत्थेण वंदामि !! आपका जीवन अनुभव शास्त्र है। आपका व्यक्तित्व सूर्य दीक्षा-जयन्ति के शुभ प्रसंग पर हार्दिक मंगल कामना के समान तेजस्वी. ओजस्वी व प्राणवान है। आप धीर- | है कि आप स्वस्थ एवं प्रसन्न रहे। आपकी मंगलमयी वीर व गंभीर है। आपकी जिह्वा में सरस्वती का वास छात्रछाया सदैव बनी रहे तथा हम आपके नेतृत्व में संयमहै। आप गूढ़ से गूढ़ बात को सरल से सरल तरीके से तप-आराधना करते रहें, निर्विघ्न रूपेण ! इसी शुभेच्छा कहते हैं। आप हमें जो दे रहे है वह समग्रदान महादान है | एवं अनंत-अनंत आस्था के साथ पुनः पुनः वंदामि-नमंसामितथा श्रमण भगवान महावीर की वाणी ज्ञान, दर्शन एवं | मत्थएण वंदामि !!! चारित्र का ही उपदेश है। विद्याभिलाषी तपस्वी, सेवाभावी
. शांतिलाल खाबिया सुमन्तभद्रजी म., मुनि श्री गुणभद्र जी म. तथा प्रवीण
__मैलापुर, मद्रास-४
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