Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
आध्यात्मिक साधना के प्रभावी उद्घोषक
हमारी पावन भारत माँ युगों-युगों से आध्यात्मिक साधना की उर्वरा भूमि रही है । इतिहास और वर्तमान इस बात के प्रबल साक्ष्य हैं कि यहाँ अनेकों साधकों ने जन्म लिया और उच्चकोटि की आध्यात्मिक साधना में समग्रता के साथ सदैव जिनके चरण अविराम बढ़ते रहे। ऐसी एक विरल विभूति, जिनके जीवन का एक-एक कण साधना के स्वर को प्रवाहित कर स्वयं के होने को सार्थक कर रहा है, जिनके रोम रोम में रम चुका है - आध्यात्मिक पुरुषार्थ, जिन्हें भौतिक वासनाओं की कामना नहीं बल्कि विशुद्ध आत्मिक साधना से जिनका जीवन निष्काम व निष्कपट है, जैन परम्परा के महान साधक हैं, वे हैं - श्रमण संघीय सलाहकार श्रद्धेय गुरुवर श्री सुमन मुनि जी महाराज साहब ! मेरी मानसिक व हार्दिक आस्था आपके श्री चरणों में सदैव नमन करती है।
मैंने आपश्री के प्रथम बार माम्बलम चातुर्मास के वक्त दर्शन किए और प्रवचन श्रवण का सौभाग्य भी प्राप्त किया। मैंने जब-जब भी आपश्री की वाणी सुनी, मुझे गहरा आत्मिक सन्तोष एवं परम शान्ति का अनुभव हुआ । यह एक कटु सत्य है कि जहाँ आज वर्तमान समाज साधना से स्खलित हो बाह्य आडम्बर की ओर ज्यादा अभिमुख होता जा रहा है, जिनके जीवन की पवित्रता
धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है ऐसी स्थिति में आपका सौहार्दपूर्ण, निर्भीक, स्वच्छ जीवन व्यवहार हम सबके लिए प्रेरणाप्रद तथा मिसाल बन रहा है । बाह्य आडम्बरों पर गहरा प्रहार एवं जन जीवन में नई चेतना का संचार करते हुए गुरुदेव भी भीतर की यात्रा के प्रबल समर्थक हैं। मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि माम्बलम चातुर्मास में तपस्यार्थी भाई बहनों की झड़ी लगी थी। एक के बाद एक तपस्यार्थी बाजे गाजे के साथ प्रत्याख्यान के लिए आ
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रहे थे ऐसे में आपने व्याख्यान में जो उद्गार व्यक्त किए दृष्टव्य
है
“ तपक्रिया मान सम्मान, समाज से वाह वाही प्राप्त करने, यश-कीर्ति, इहलोक - परलोक के सुखों के लिए नहीं बल्कि कर्म निर्जरा के लिए, आत्मशुद्धि के लिए होनी चाहिए। तपक्रिया के प्रदर्शन में हमारा जीवन-दर्शन ही लुप्त होता जा रहा है। आडम्बर, प्रदर्शन हमारे कर्मों को क्षय करने के स्थान पर बंध का कारण बन जाते हैं । "
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जो भी आपके सम्पर्क में आया आप श्री के पवित्र जीवन की अमिट छाप लेकर लौटा। वैसे तो हर प्रभाव वक्त के साथ साथ कभी न कभी समाप्त हो जाता है पर आपके निष्कपट जीवन का प्रभाव अमिट है । आपके प्रवचन सदैव साम्प्रदायिक संकीर्णताओं से परे होते हैं । निडर व स्पष्ट वक्ता होने पर भी, शान्ति, सौहार्द और मैत्रीपूर्ण वातावरण में आपकी गहरी रुचि ही नहीं अपार श्रद्धा है। सच है, पवित्र जीवन में ही धर्म का निवास होता है। हालांकि मैं अपनी लेखन शक्ति की मर्यादा को जानती हूँ फिर भी आत्मिक प्रेरणा व आन्तरिक रूचि के कारण भक्ति भाव भीने हृदय से कुछ लिखने को प्रेरित हुई हूँ । प्रवचन के दौरान गुरुवर ने अपनी मधुर, गम्भीर और सटीक वाणी द्वारा अनेक पुण्यात्माओं को धर्म का रसिक बनाया है। जब मैंने गुरुदेव के प्रथम दर्शन किए थे तो सहज ही मनवीणा के तार इस प्रकार झंकृत हुए
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" अद्भुत हैं आपके अनुपम गुण ! कैसी है - आपकी सौम्य शांत आत्मस्पर्शी आकृति ! और कैसा है – मंगलमय नाममुनि सुमन !” नाम तो सुवासित और मंगल है ही साथ ही आपके मांगलिक मस्तिष्क की उर्वरा भूमि पर सदैव शुभ ही स्थित रहता है । जीवन में कहीं कोई लाग लपेट नहीं; मिलावट नहीं । निष्पक्ष रूप से समाज के हितचिन्तक हैं। तभी तो बड़े-बड़े विद्वान्, ज्ञानी, प्रतिष्ठित जैन और जैनेतर लोग श्रद्धा से नतमस्तक हो एक आवाज में आपश्री के गुणगान करते हैं । गुरुदेव के उपकार सीमातीत हैं। स्मृत . हैं माम्बलम चातुर्मास के वे दिन, जहाँ प्रवचन के माध्यम
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