Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
(शीघ्र ही प्रकाश्य है वह सामग्री) आपने जो सोचा था, | गोष्ठियों का भी आयोजन करवाते हैं। आपने मद्रास में उसे पूरा कर ही लिया। इस प्रकार धर्म एवं समाजोपयोगी भी “जैन विद्या गोष्ठी" का आयोजन करवाया। जिससे जो भी संकल्प करते हैं। उसे पूर्णता की ओर ले जाते मद्रास के अनेक सुप्रतिष्ठित विद्वानों को आमंत्रित कर हैं। साथ ही साथ आपका संकल्प था कि एक ऐसी संस्था उनकी प्रवचन शृंखलाएं दो दिवस तक करवाई। अत्यंत बनायी जाये, जो विहार रत साधु-साध्वियों की परिचर्या
। सराहनीय एवं प्रशंसनीय यह विद्या गोष्ठी रही। हे विद्वान में संलग्न रहे । ७५ वर्ष के इतिहास में जो साधुगण कार्य प्रेमी, संस्कृति एवं ज्ञान प्रेमी ! आपको हृदय की निस्सीमता न कर सके वह आपके प्रयासों से सफलता की ओर के साथ वंदन ! अग्रसर है। सबके प्रति सेवा के सद्भाव रखने वाले
सहृदयता एवं सदाशयता महामना संत ! आपके चरणों में विनीत वंदन !
__ आप श्री के मन में सहृदयता एवं सदाशयता कूटअप्रमादी संत
कूट कर भरी हुई है। आपके जीवन एवं व्यक्तित्व में ___ आप अप्रमादी संत हैं। जब कभी भी देखे तो ज्ञान
चुम्बकीय आकर्षण है। श्री प्रवीण मुनि जी म. आपके चर्चा में ही निमग्न पायेंगे। आप पर यह दोहा चरितार्थ
प्रेम भाव एवं सद्भाव के कारण ही २५०० कि.मी. की होता है -
सुदूर यात्रा सम्पन्न कर सेवा हेतु शीघ्रातिशीघ्र उग्र विहार
करते हुए पधारे। आपसे कोई भी व्यक्ति एक बार मिल क्षण निकमो रहणो नहीं, करणो आतम काज।
लेता है तो आपके धर्म स्नेह एवं सद्भाव के कारण हमेशा भणणो, गुणणो, सीखणो, रमणो, आत्म-आराम ।। आप का ही बनकर रह जाता है। हे प्रेमभाव के सूत्रधार
आप अस्वस्थ रहते हुए भी प्रवचन दिया करते थे, आपको नमन! प्रचंड ज्वर में भी आपने अपनी प्रवचन-शृंखला बंद नहीं
जैसा गुरु वैसा चेला : की। एक समय ऐसा भी आया, गुरु शिष्य दोनों ज्वर से पीड़ित हो गये तथापि “यथा गुरु तथा शिष्य” दोनों ने | मुनि श्री सुमन्तभद्रजी भी आपका अनुसरण करते से हिम्मत नहीं हारी। अपने अपने कार्य, गुरुदेव प्रवचन प्रतीत होते हैं। गुरुदेव श्री ज्ञान-ध्यान संयम यात्रा में करते रहे और शिष्य सेवा कार्य। हे अप्रमादी संत ! संकल्पित है तो शिष्यवर्य सेवा भाव में निपुण है एवं आपकी अप्रमदता को भाव सहित वंदन ।
तनिक भी आलस नहीं करते हैं। मैंने देखा कि वे २५
२५ सीढ़ियां दिन में अनेकों बार चढ़ते-उतरते थे। कभी विद्वान प्रेमी
आहार के लिए तो कभी प्रासुक पानी के लिए, कभी दवा मेरी भावना में आता है कि -
आदि के लिए। अतः कहा जा सकता है शिष्य भी गुरु गुणीजनों को देख, हृदय में, मेरे प्रेम उमड़ आवे। की राह पर निरंतर अग्रसर है। बने जहाँ तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे।।
दृढ़ महाव्रती __ आप विद्वानों की बड़ी कद्र करते हैं। तथा उनका
एक बार आपको प्रचंड ज्वर आया। उस दिन देरी उचित आदर अभिनन्दन भी संघ से करवाते हैं। विद्वानों से दर्शनार्थ गया तो पाया कि गुरुदेव प्रचंड ज्वर से ग्रसित की विचार धारा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए विद्या | है और वह भी १०४ डिग्री बुखार! शरीर की नाड़ी का
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