Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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संम्प्रदाय से परे
वस्तुतः सच्चा साधक वही है जो धर्मांधता या संप्रदायवाद से परे रहता है। कई साधु अपनी-अपनी सम्प्रदायों में बंधे रहते हैं । यह प्रवृत्ति जैन समाज की एकता एवं समन्वयकता में बाधक है किंतु आप श्री के मानस में उदारता के विचार प्रतिविम्वित है। आपने साहूकारपेट में रहते हुए अनेक महान पुरुषों की जन्मजयंतियाँ एवं पुण्य तिथियों में प्रवचन दिए तथा उन महान् आत्माओं की गुण गाथा का कथन किया, इससे यही उजागर होता है कि आप सभी संप्रदाय के धर्माचार्यों के प्रति आदर भाव एवं समान भाव रखते हैं तथा गुणज्ञ है। आपश्री कभी-कभी कहा करते हैं “साधु को सीमा में नहीं बाँधा जा सकता, साधु तो सभी का है। अगर साधु को ही बांट लिया तो उसमें फिर साधुत्व ही कहाँ रह जाएगा? वह तो निस्पृही होता है । सब उसके अपने है, और वह सभी का है । "
स्वाध्याय प्रेरक
आप स्वाध्याय को जीवन विकास और आत्मोन्नति का एक अभिन्न अंग मानते हैं । अतः श्रावक-श्राविकाओं को आप स्वाध्याय की सतत् प्रेरणा देते रहते हैं । वर्षावास में आपश्री ने प्रार्थना के पश्चात् स्वाध्यायी महिलाओं को प्रति दिन उत्तराध्ययन सूत्र का अध्ययन करवाया करते थे । स्वाधायियों को आपने सतत् यही प्रेरणा दी कि ज्ञान को और ठोस बनाओ। आपश्री के निर्देशन में स्वाध्यायियों का ज्ञान बढ़ा है । स्वाध्याय प्रेरक ! आपको वंदन !! दृढ़ संकल्पी
आप दृढ़ संकल्प के धनी है । मद्रास वर्षावास हेतु साहूकार पेट संघ के पदाधिकारी गण कई बार आपकी सेवा में पहुंचे। टी. नगर, चातुर्मास से ही संघ विनति कर रहा था किन्तु आपका एक ही संकल्प था, यथावसर चातुर्मास करने का । तदनंतर आप श्री ने यथावसर ही
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वंदन - अभिनंदन !
चातुर्मास की स्वीकृति प्रदान की । साहूकारपेठ का सघ चातुर्मास की स्वीकृति पाकर धन्य हो उठा और वह चातुर्मास भी ऐतिहासिक रहा ।
एकता के पुजारी
आप एकता एवं सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखने वाले संत हैं। साहूकारपेट में पाटे के विवाद को लेकर जब प्रकरण गहराने लगा तो आपने कहा कि चातुर्मास सम्पन्न होने तक शांति बनाए रखें। पक्ष-विपक्ष की अशांति और उद्विगनता को आपने दबाने का भरसक प्रयास किया और आपके कथन पर शांति भी वातावरण में बनी रही । चातुर्मास पूर्ण होने पर ही वह विषय पुनः उठा और उसकी चपेट में संघ, संघ के पदाधिकारी और कार्यकारी सदस्य आ गये । तथापि आपने अपनी विवेकभरी वाणी से उन अंगारों पर राख की परत चढ़ाने का काम किया। इसके लिए आपको क्या-क्या प्रयास नहीं करने पड़े। यहाँ तक कि आपने उनके संबंधित बुजुर्ग अभिभावकों तक को बुलाकर उन्हें यह समझाया कि विरोधियों को समझाओ, अन्यथा गजब हो जायगा। संघ में विभेद, दरारें पड़ जायगी । इस तरह आपने शांतिरक्षक की पूर्णतया जिम्मेवारी निभाई । हे एकता के समर्थक ! आपको श्रद्धा के साथ नमन !
संकल्प शील
. जो कार्य आप श्री को लगता है कि वह समाजोपयोगी है एवं धर्म के प्रसार-प्रचार में उपयोगी है तो उसको पूरा करने का संकल्प ले लेते हैं । आपकी विचारधारा में यह कार्य उभरा कि तमिलनाडु जैन स्थानकों की एक डायरेक्टरी होनी चाहिए तो उसके लिए आपने जैन युवा संगठन के युवाओं को प्रेरणा दी। उन्होंने आपकी भावनाओं को समझा एवं कई टीमें बनाकर तमिलनाडु के दौरे पर भेज दी, स्थानकों का विवरण, संस्थाओं का परिचय, फोटो, विडियोग्राफी आदि सामग्री इन टीमों ने एकत्र कर ली ।
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